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ग्वार उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

by | Mar 20, 2023 | दलहनी फसलें, रबी की फसल

ग्वार उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

भूमिका

ग्वार की खेती


ग्वार का शाब्दिक अर्थ गऊ आहार होता है अथार्त प्राचीन काल में इस फसल की उपयोगिता चारा मात्र् में ही थी, परन्तु वर्तमान में बदली परिस्थितियों में यह एक अतिमहत्वपूर्ण औद्योगिक फसल बन गई है । ग्वार के दानों से निकलने वाले गोंद के कारण इसकी खेती बीजोत्पादन के लिए करना आर्थिक रूप से ज्यादा फायदेमंद हो सकता है। ग्वार राजस्थान के पश्चिम प्रदेश की अतिमहत्वपूर्ण फसल है। अतः किसान भाइयों को उन्नत कृषि तकनीक से ग्वार उत्पादन करना चाहिये ताकि उन्हें फसल से अधिक से अधिक लाभ मिल सके।

देश के पश्चिमी भाग के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में किसानों की आय बढ़ाने के लिए ग्वार एक अति महत्वपूर्ण फसल है। यह सूखा सहन करने के अतिरिक्त अधिक तापक्रम को भी सह लेती है। भारत में ग्वार की खेती प्रमुख रूप से राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात व उत्तर प्रदेश में की जाती है। हमारे देश के संपूर्ण ग्वार उत्पादक क्षेत्र का करीब 87.7 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान में है। सब्जी वाली ग्वार की फसल से बुवाई के 55-60 दिनों बाद कच्ची फलियां तुड़ाई पर आ जाती हैं। अतः ग्वार के दानों और ग्वार चूरी को पशुओं के खाने और प्रोटीन की आपूर्ति के लिए भी प्रयोग किया जाता है। ग्वार की फसल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण करती है। अतः ग्वार जमीन की ताकत बढ़ाने में भी उपयोगी है। फसल चक्र में ग्वार के बाद ली जाने वाली फसल की उपज हमेशा बेहतर मिलती है। ग्वार खरीफ ऋतु में उगायी जाने वाली एक बहु-उपयोगी फसल है। ग्वार कम वर्षा और विपरीत परिस्थितियों वाली जलवायु में भी आसानी से उगायी जा सकती है। ग्वार की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि यह उन मृदाओं में आसानी से उगायी जा सकती है जहां दूसरी फसलें उगाना अत्यधिक कठिन है। अतः कम सिंचाई वाली परिस्थितियों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। भारत विश्व में सबसे अधिक ग्वार की फसल उगाने वाला देश है। दलहनी फसलों में ग्वार का भी विशेष योगदान है। यह फसल राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात,हरियाणा प्रदेशो में ली जाती हैं।

उन्नतशील प्रजातियॉं

उन्नत किस्में :

ग्वार की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं :

आर.जी.सी. 936 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है l यह असिंचित (बारानी) क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है l

आर.जी.सी. 986 : यह अशाखित व मध्यम पकने वाली किस्म है जो सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयोगी है l

आर.जी.सी. 1002 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है l यह असिंचित व सिंचित दोनों परिस्तिथियों के लिए उपयुक्त किस्म है l

आर.जी.सी. 1003 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है जो असिंचित  क्षेत्र  के लिए उपयुक्त है।

आर.जी.सी. 1066 : इस किस्म के पौधे शाखाओं रहित होते है । पौधे की ऊँचाई  60 – 90  सेमी. होती  है । इस किस्म में फलियाँ जमीन से 2-3 सेमी. ऊपर से ही लगने लग जाती है । यह एक जल्दी पकने वाली (85 -90 दिन) किस्म है । यह किस्म खरीफ व जायद दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है l

एच.जी. 365 : यह शाखित व जल्दी पकने वाली किस्म है जो हरियाणा व राजस्थान के लिए उपयुक्त है l

एच.जी. 563 : यह शाखित एवं जल्दी पकने वाली किस्म है जो की ग्वार उगाने वाले सभी क्षेत्रोँ के लिए उपयुक्त हैl

एच.जी. 2-20 : यह शाखित एवं जल्दी पकने वाली किस्म है जो असिंचित व सिंचित दोनों परिस्तिथियों के लिए उपयुक्त है l इसकी खेती जायद ऋतु में भी की जा सकती हैl

आर.जी.सी. 1031 : इस किस्म के पौधे भी अधिक लम्बाई वाले (74 – 108 सेमी.) व अधिक शाखाओं वाले होते है । यह देर से पकने वाली (110 – 114 दिन) किस्म  है l

आर.जी.सी. 1027 : इस किस्म के पौधे छोटे (55-60 सेमी.) व अधिक शाखाओं वाले होते हैं । पौधे की पत्तियां किनारों पर अधिक कटी होती है ।यह किस्म 90 -100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है ।

आर.जी.सी. 1038 : इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई 60-75 सेमी. व शाखाओं युक्त होती है । यह किस्म 95 – 100 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है व खरीफ व जायद दोनों ही परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है l

आर.जी.सी. 197 : यह बिना शाखाओं वाली किस्म है । इसके पौधे की लम्बाई 90 से 120 सेमी. होती है । यह किस्म 100 से 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है ।

आर.जी.एम. 112 : यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट व जड़ गलन रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है तथा लगभग 95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है l

बुन्देल ग्वार-1, बुन्देल ग्वार-2, बुन्देल ग्वार-3, आर.जी.सी.-986, आर.जी.सी.-1002 एवं आर.जी, सी.-1003

बुआई का समय

बुवाई : जुलाई का प्रथम पखवाङा (1 से 15 जुलाई) ग्वार की बुवाई के लिये सही होता है जबकी जल्दी पकने वाली किस्मों के लिये 20 से 30 जून सही समय होता है। 20 जून से पहले बुवाई करने पर पौधे की कायिक बढ़वार तो खूब होती है परन्तु उसमें फलियाँ कम लगती हैं जिससे बीज की उपज कम हो जाती है । 25 जुलाई के बाद बुवाई करने से भी बीज की उपज कम होती है। अतः ग्वार की बिजाई का उपयुक्त समय 02 से 15 जुलाई तक है।

बीजोपचार : ग्वार की जङों में जो मूलग्रंथियां होती है वे पर्यावरण की नत्र्जन के स्थरीकरण का कार्य-करती है, अथार्त जमीन को नत्र्जन की आपूर्ति करती हैं।  इन जड़ ग्रंथियों के अच्छे विकास के लिए बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए ।  इसके लिए 100 ग्राम गुड़ को 1 लीटर पानी में घोल लेवें।  घोल ठण्डा होने पर इसमें 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर अच्छी तरह से मिला लेवें। इस घोल में 10 किलोग्राम बीज को अच्छी तरह से उपचारित करें ताकि  सभी बीजों पर कल्चर की परत चढ जाये। अब बीजों को निकालकर छाया में सुखाकर शीघ्र ही बुवाई कर देवें। फसल को रोग मुक्त रखने हेतु बीज को ट्राईकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से भी उपचारित करना चाहिये l

बीज दर : ग्वार की अकेली फसल हेतु 12 से 15 किलो उन्नत किस्म का बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें। ग्वार की बुवाई कतार या पंक्ति में करें। कतार से कतार की दूरी 30 से 45 से.मी. रखें तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. रखें।

उर्वरक प्रबंधन : दलहनी फसल होने के कारण ग्वार को नत्र्जन की विशेष आवश्यकता नहीं होती है।  फास्फोरस की 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर मात्रा, ग्वार के लिये लाभदायक होती है जो की बुवाई के साथ ही दे देनी चाहिये । फास्फोरस की आपूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट से करने से पौधों को गंधक की आपूर्ति भी हो जाती है। बुवाई से लगभग 15 दिन पूर्व गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद 10 से 15 टन प्रति हैक्टर की दर से खेत में मिलानी चाहिये l खेत में गोबर की खाद मिलाने से मृदा की जल ग्रहण क्षमता बढ़ती है एवं पौधों को बढ़वार के लिये पोषक तत्व भी प्राप्त होते हैं l ग्वार दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ो में जड़ ग्रंथियां पाई जाती हैं, जो वातावरण से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है और मृदा की भौतिक दशा को सुधारने के साथ-साथ अन्य फसलों की उपज में वृद्धि करती है l

जल प्रबंधन : आमतौर पर ग्वार की खेती वर्षा आधारित शुष्क व अर्ध शुष्क क्षेत्रों में की जाती है l लेकिन यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है तो फसल को पानी की कमी होने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिये l मुख्यतः फूल आने पर एवं बीज बनने की अवस्था पर जीवन रक्षक सिंचाई अवश्य करनी चाहिये l बीज बनने के समय  ज्यादा तापमान एवं निम्न आर्द्रता होने से फसल की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है l  वर्षा आधारित क्षेत्रों में खेतों की मेढ़ बंदी कर वर्षा जल का संरक्षण किया जाना चाहिये l बुवाई के 25 व 45 दिन बाद थायोयूरिया के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करने से फसल में जल कि कमी को सहने की क्षमता बढ़ती है l

निराई गुड़ाई : बुवाई के 25 से 30 दिन  बाद पहली निराई गुड़ाई करनी चाहिये । दूसरी निराई गुड़ाई यदि आवश्यकता हो तो 40 से 45 दिन पश्चात करनी चाहिये।  समय पर निराई गुड़ाई करने से खरपतवार तो समाप्त  होती ही है साथ ही भूमि में हवा का प्रवाह भी अच्छा होता हैं।

पौध व्याधि एवं कीट प्रबन्धन : ग्वार की फसल अन्य फसलों की तुलना में व्याधियों एवं कीटों के प्रकोप में कम आती है।  फिर भी कुछ बिमारियाँ एवं कीट अनुकूल मौसम होने पर इसे प्रभावित करते हैं । ग्वार की प्रमुख बिमारियाँ जीवाणु पर्ण अंगमारी, अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट, जङ गलन व चूर्णिल आसिता हैं जो की फसल को आर्थिक रूप से हानि पहुँचाती हैं।  जीवाणु पर्ण अंगमारी खेत में फैलने पर फसल को 50-60 प्रतिशत तक नुकसान पहुँचा सकती हैं। बिमारियों के प्रकोप से बचने हेतु निम्न बचाव करने चाहिये

  1.  रोग प्रतिरोधी किस्म का प्रयोग करना चाहिए ।
  2.  उचित फसल चक्र अपनाना चाहिये ।
  3.  समय समय पर खरपतवार निकालना ।
  4.  मई माह में खेत की गहरी जुताई कर छोङ देना चाहिये।

खङी फसल मे बीमारी का प्रकोप होने की स्थिति में निम्न उपचार करने चाहिये।

पौधे के रोगग्रस्त भागों को तोड़ कर जला देना चाहिये।

ज्यादा संक्रमित पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिये।

ऐसे खेत जहाँ कीट बिमारियों की संभावना ज्यादा रहती है उनमें बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय नीम की खल (नीम केक) को अच्छी तरह कूट पीस कर खेत में मिलाने से खेत में कीटों व बिमारियों के बीजाणु नष्ट हो जाते हैं।

ग्वार में कीटों का प्रकोप भी कम होता हैं, परन्तु तैलिया (जैसिड) कभी कभी कुछ स्थानों पर फसल को नुकसान करता है। इसके बचाव के लिये ग्वार की जल्दी पकने वाली किस्में उपयुक्त रहती हैं साथ ही ज्यादा प्रकोप की स्थिति में किसी भी नीम आधारित कीटनाशक (निम्बीसिडिन) से उपचार करना चाहिये।

रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग ग्वार की फसल में नहीं करने से हमारे उत्पाद (ग्वार गम ) की गुणवत्ता अच्छी होती है l चूँकि ग्वार की फसल मुख्य रूप से बीज के लिये उगाई जाती है जिससे ग्वार गम बनता है जो कि विदेशों में निर्यात किया जाता है।  ग्वार गम का प्रमुख उपयोग खाद्य पदार्थों में होता है।  खाद्य पदार्थों में रासायनिक कीटनाशकों के अवशेष रह जाने पर मानव शरीर को नुकसान पहुँचा सकते हैं l अतः ग्वार की फसल में एंव कटाई पश्चात रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग जहाँ तक सम्भव हो सके नहीं करना चाहिये ताकि हमारा उत्पाद आन्तरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता वाला हो सके।

कटाई व गहाई : जल्दी पकने वाली किस्में लगभग 90 दिन में पक जाती हैं जबकि अन्य किस्में 110 से 125 दिन में पक जाती हैं । सामान्यतः जब पौधे की पत्तियाँ सूखकर गिरने लगे तथा फलियाँ भी सूखकर भूरे रंग की होने लगे, तब फसल की कटाई कर देनी चाहिये।  गहाई (थ्रेशिंग) के लिये फसल को धूप में अच्छी तरह सुखा लेना चाहिये एवं उसके बाद श्रमिकों या थ्रेशर मशीन से थ्रेशिंग कर लेनी चाहिये।

इस तरह उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर ग्वार की फसल से अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

दूरी

पंक्ति से पंक्ति – 45 से0मी0 (सामान्य)    30 से.मी. (देर से बुआई करने पर

पौध से पौध – 15-20 से0मी0

बीजदर

15-20 कि0ग्रा0 प्रति हे0।

सिंचाई एवं जल निकास

लम्बी अवधि तक वर्षा न होने पर 1-2 सिंचाई आवश्यकतानुसार।

खरपतवार नियंत्रण

खुरपी से 2-3 बार निकाई करनी चाहिए। प्रथम निकाई बोआई के 20-30 दिन के बाद एवं दूसरी 35-45 दिन के बाद करनी चाहिए। खरपतवारों की गम्भीर समस्या होने पर वैसलिन की एक कि.ग्रा. सक्रिय मात्रा को बोआई से पूर्व उपरी 10 से.मी. मृदा में अच्छी तरह मिलाने से उनका प्रभावी नियन्त्रण किया जा सकता है।kisan

ग्वार की फसल को खरपतवारों से पूर्णतया मुक्त रखना चाहिए। सामान्यतः फसल बुवाई के 10-12 दिन बाद कई तरह के खरपतवार निकल आते हैं जिनमें मौथा, जंगली जूट, जंगली चरी (बरू) व दूब-घास प्रमुख हैं। ये खरपतवार पोषक तत्वों, नमी, सूर्य का प्रकाश व स्थान के लिए फसल से प्रतिस्पर्धा करते हैं। परिणामस्वरूप पौधे का विकास व वृद्धि ठीक से नहीं हो पाती है। अतः ग्वार की फसल में समय-समय पर निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए। इससे पौधें की जड़ों का विकास भी अच्छा होता है तथा जड़ों में वायु संचार भी बढ़ता है। दाने वाली फसल में बेसालिन 1.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में बुवाई से पूर्व मृदा की ऊपरी 8 से 10 सेंमी सतह में छिड़काव कर खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसके अलावा पेंडिमिथेलीन का 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के दो दिन बाद छिड़काव करना चाहिए। इसके लिए 700 से 800 लीटर पानी में बना घोल एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है।

फसल सुरक्षा

ग्वांर मे कीट प्रबंधन

रस चूसने वाले कीट:

ग्वार में जेसीड, तेला और सफेद मक्खी रस चूसते हैं।

इन पर नियंत्रण के लिए कीटनाशक इमिडाक्लोप्रिड या डाइमेथोएट या मोनोक्रोटोफोस 0.75-1.25 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव किया जा सकता है।

दीमक:

दीमक जड़ और तने को खाकर पौधों को नुकसान पहुँचाती है।

नियंत्रण उपाय:

गोबर की खाद का अच्छी तरह से सड़ने पर ही उपयोग करें

2 मिली प्रति किग्रा की दर से क्लोरपाइरीफोस से बीजोपचार करें

बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय क्लोरपायरीफॉस धूल 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें

पत्ती छेदक

पत्ती छेदक को कार्बेरिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर या क्विनालफॉस 25 ईसी 2 मिली प्रति लीटर का छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता।

रोग प्रबंधन

बैक्टीरियल ब्लाइट:

यह ग्वार की प्रमुख बिमारियों में से एक है जो जीवाणु द्वारा फेलती है। इसमें पतियों का रंग पीला हो जाता है ।

नियंत्रण उपाय:

प्रतिरोधी / सहनशील किस्मों और प्रमाणित बीज का उपयोग करें ।

स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से बीज उपचार करने के लिए बीज को 200 पीपीएम (0.2 ग्राम प्रति लीटर) स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल में 3 घंटे तक भिगोएँ।

स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 5 ग्राम का 100 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव बुवाई के 35-40 दिन बाद करना चाहिए ।

एन्थ्रेक्नोज और अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट:

इस बीमारी में पौधे की पतियों एंव तने पर काले रंग के धब्बे बन जाते है ।

नियंत्रण उपाय:

इन रोग को नियंत्रित करने के लिए मैनकोजेब 75 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से पर्णीय छिड़काव किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव को दोहराएं।

चूर्णिल आसिता:

इसमें पौधे की पतियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर बन जाता है ।

चूर्णिल आसिता को सल्फर धूल 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर या सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर के छिड़काव से नियंत्रित किया जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव को दोहराएं।

  • कीट नियन्त्रण

जैसिड एवं बिहार हेयरी कैटरपिलर यह मुख्य  शत्रु हैं। इसके अतिरिक्त मोयला, सफेद मक्खी,

हरातैला द्वारा भी फसल को नुकसान हो सकता है।

मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू0एस0सी0 (0.06%) का छिड़काव एक या दो बार करें।

  • ब्याधि नियन्त्रण

खरीफ के मौसम में बैक्टीरियल ब्लाइट सर्वाधिक नुकसान पहुँचाने वाली बीमारी है। एल्टरनेरिया

लीफ स्पाट एवं एन्थ्रैकनोज अन्य नुकसान पहुँचाने वाली बीमारियॉं हैं। एकीकृत ब्याधि नियन्त्रण हेतु निम्न उपाय अपनाने चाहिए।

रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग।

    • बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रभावी नियन्त्रण हेतु 56 डिग्री से0 पर गरम पानी में 10 मिनट तक बीजोपचार करना चाहिए।
    • एन्थ्रैकनोज एवं एल्टरनेरिया लीफ स्पाट पर नियन्त्रण हेतु डायथेन एम-45 (0.2%) का 15 दिन के अन्तराल पर एक हजार लीटर पानी में 2 कि.ग्रा. सक्रिय अवयव/है0 के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।

उपज

उन्नत विधि से खेती करने पर 10-15 कुन्तल प्रति हे0 प्राप्त होती है।

  1. बीज मिनीकिट कार्यक्रम के अन्तर्गत खण्ड (ब्लाक) के प्रसार कार्यकर्ताओं द्वारा चयनित कृषकों को आधा एकड़ खेत हेतु नवीन एवं उन्नत प्रजाति का सीड मिनीकिट(4 कि0ग्रा0 /मिनीकिट) राइजोवियम कल्चर एवं उत्पादन की उन्नत विधि पर पम्पलेट सहित निःशुल्क उपलब्ध कराया जाता है।
  2. ‘बीज ग्राम योजना’ अन्तर्गत चयनित कृषकों को विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण एवं रू0 375/- प्रति क्विंटल  की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
  3. यदि एकीकृत पेस्ट नियंत्रण प्रभावशाली न हो, तभी पादप सुरक्षा  रसायनों एवं खरपतवारनाशी के प्रयोग पर प्रयुक्त रसायन की लागत का 50% जो कि रू0 500/- से अधिक नहीं हो की सहायता प्रदान की जाती है।
  4. पादप सुरक्षा यंत्रों की खरीद में मदद हेतु लागत का 50% की सहायता उपलब्ध है। (अधिकतम व्यक्ति संचालित यन्त्र रू0 800/-, शक्ति चालित यन्त्र रू0 2000/-)।
  5. कम समय में अधिक क्षेत्रफल में उन्नत विधि से समय से बोआई तथा अन्य सस्य क्रियाओं हेतु आधुनिक फार्म यन्त्रों को उचित मूल्य पर कृषकों को उपलब्ध कराने हेतु राज्य सरकार को व्यक्ति/पशु चालित  यन्त्रों पर कुल कीमत का 50: (अधिकतम रू.2000/-) एवं शक्ति चालित यन्त्रों पर कुल कीमत का 30: (अधिकतम रू.10000/-) की सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
  6. जीवन रक्षक सिंचाई उपलब्ध कराने तथा पानी के अधिकतम आर्थिक उपयोग हेतु स्प्रिंकलर सेट्‌स के प्रयोग को प्रोत्साहन के लिए छोटे सीमान्त एवं महिला कृषकों को मूल्य का 50 प्रतिशत या रू0 15000/- (जो भी कम हो) तथा अन्य कृषकों को मूल्य का 33 प्रतिशत या रू0 10000/- (जो भी कम हो) की सहायता उपलब्ध है। किन्तु राज्य सरकार अधिकतम कृषकों तक परियोजना का लाभ पहुँचाने  हेतु दी जाने वाली सहायता में कमी कर सकती है।
  7. राइजोबियम कल्चर तथा/या पी0एस0बी0 के प्रयोग को प्रोत्साहन हेतु वास्तविक लागत की 50 प्रतिशत (अधिकतम रू0 50/प्रति हे0 की आर्थिक मदद उपलब्ध है)।
  8. कृषकों को सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति सुनिश्चित करने हेतु लागत का 50 प्रतिशत (अधिकतम रू0 200/- की आर्थिक मदद उपलब्ध है)
  9. गन्धक के श्रोत के रूप में जिप्सम/पाइराइट के प्रयोग को प्रोत्साहन हेतु लागत का 50 प्रतिशत तथा यातायात शुल्क जो कि महाराष्ट्र  राज्य को रू0 750/- तथा अन्य राज्यों को रू0 500/- से अधिक न हो की सहायता उपलब्ध है।

10.  सहकारी एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा नाबार्ड के निर्देशानुसार दलहन उत्पादक कृषकों को विशेष ऋण सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।

कृषकों तक उन्नत तकनीकी के शीघ्र एवं प्रभावी स्थानान्तरण हेतु अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन आयोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एवं अन्य शोध संस्थाओं को प्रदर्शन की वास्तविक लागत या रू0 2000/एकड़/प्रदर्शन   (जो भी कम हो)ए तथा खण्ड प्रदर्शन आयोजित करने के लिए राज्य सरकार को उत्पादन के आगातों का 50 प्रतिशत तथा वास्तविक मूल्य के आधार पर रू0 2000/हे0 की सहायता प्रदान की जाती है।

कृषकों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराने हेतु प्रति 50 कृषकों के समूह पर कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं कृषि विश्वविद्यालयों को रू0 15000/- की सहायता प्रदान की जाती है।

Frequently Asked Questions

Q1: ग्वार की फसल क्या है?

Ans: ग्वार गम फल के पौधे के बीज के एंडोस्पर्म से आता है साइमोप्सिस टेट्रागोनोलोबा, एक वार्षिक पौधा, जो भारत के सूखे क्षेत्रों में पशुओं के लिए एक खाद्य फसल के रूप में उगाया जाता है। ग्वार की फलियों को मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान में उगाया जाता है, जिसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अफ्रीका में उगाई जाने वाली छोटी फसलें होती हैं।

Q3: ग्वार के लिए मिट्टी की आवश्यकता

Ans: क्लस्टरबीन को कई प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। फसल अच्छी तरह से सूखा, ऊपर की रेतीली दोमट और दोमट मिट्टी पर उगती है। यह बहुत भारी और पानी वाली मिट्टी पर अच्छी तरह से नहीं पनपता है। यह खारा और क्षारीय मिट्टी में भी अच्छी तरह से नहीं पनपता है। पीएच 7 से 8.5 तक की मिट्टी में इसे सफलतापूर्वक उठाया जा सकता है।

Q5: क्या ग्वार या क्लस्टर बीन्स स्वास्थ्य के लिए अच्छा है?

Ans:  ग्वार या क्लस्टर बीन्स गर्मियों की सब्जी है। इसमें गिलकोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जो ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। ये बीन्स ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कम होते हैं और इसलिए, जब आप इन्हें खाते हैं तो रक्त शर्करा के स्तर में तेजी से उतार-चढ़ाव नहीं होता है।

Q2: भारत में ग्वार की खेती कहाँ होती है?

Ans:  पश्चिमी भारत में राजस्थान प्रमुख ग्वार उत्पादक राज्य है, जिसका 70% उत्पादन होता है। गुजरात, हरियाणा, पंजाब और उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में भी ग्वार उगाया जाता है।

Q4: ग्वार की खेती के लिए आवश्यक खाद और उर्वरक

Ans:  क्लस्टरबिन एक सुपाच्य फसल होने के कारण, प्रारंभिक विकास अवधि के दौरान स्टार्टर की खुराक के रूप में नाइट्रोजन की थोड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। क्लस्टरबीन में 20 किलोग्राम एन और 40 किलोग्राम पी 2 ओ 5 प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन और फास्फोरस की पूरी खुराक बुवाई के समय लागू की जानी चाहिए। क्लस्टर बीन के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन प्रथाओं का पालन करना उचित है। बुवाई से कम से कम 15 दिन पहले लगभग 2.5 टन खाद या FYM लगाना चाहिए।

Q6: ग्वार किस मौसम की फसल हैं?

Ans:  ग्वार गर्म परिस्थितियों में अच्छी तरह से बढ़ता है। इसलिए मार्च से सितंबर इन्हें उगाने के लिए अच्छे महीने हैं। लेकिन भारी मानसून वाले स्थानों में वे अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं। ऐसे क्षेत्रों के लिए आपके बीज बोने के लिए सबसे अच्छे महीने मार्च से मई हैं और फिर आप अगस्त तक कटाई कर सकते हैं।

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आज के रायसिंहनगर कृषि मंडी भाव

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आज के गंगानगर मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के गंगानगर मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Ganganagar Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे

आज के बारां कृषि मंडी भाव

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आज के बीकानेर मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के बीकानेर मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Bikaner Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे

आज के मेड़ता मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के मेड़ता मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest MERTA Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे

आज के फलोदी मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के फलोदी मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Phalodi Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

आज के ब्यावर मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के ब्यावर मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Beawar Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे

आज के किशनगढ़ मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के किशनगढ़ मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Kishangarh Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

आज के सुरतगढ़ कृषि मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के सुरतगढ़ मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Suratgarh Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

आज के नोखा मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के ओसियां मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के ओसियां मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Osian Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

आज के बिलाड़ा मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के बिलाड़ा मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Bilara Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

आज के भगत की कोठी मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के भगत की कोठी मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Bhagat Ki Kothi Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

आज के जोधपुर मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के जोधपुर मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Jodhpur Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

आज के डेगाना मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के डेगाना मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Degana Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे

आज के नोहर मंडी के भाव 10 जून 2023

आज के नोहर मंडी के भाव 10 जून 2023 ☘️ Amazing Latest Nohar Mandi Ke Bhav 10-06-23 का मुंग, मोठ, जीरा, ग्वार, सोयाबीन, रायडा, पीली सरसों और सौंफ आदि का भाव विस्तार से देखे.

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राजस्थान की महत्वपूर्ण मंडियों के भाव

🌾 आज 20 मई के भाव ☘️ श्री विजयनगर मंडी के भाव सरसों 4200 से 4630, गेहूं 2050 से 2280, नरमा 7500 से 7840, ग्वार 5100 से 5301, बाजरी 2000 से 2200, मुंग 6800 से 7700, जौ 1600 से 1850, चना 4500 से 4680, कपास 8000 से 8200 ☘️ अनूपगढ़ मंडी के भाव सरसों 4000 से 4650, ग्वार 5000 से 5265, नरमा 7200 से 7881, मुंग 7000 से 7880, गेहूं 1980 से 2260, चना 4500 से 4760, बाजरी 2100 से 2150, कपास 7500 से 8100 ☘️ ऐलनाबाद मंडी का भाव नरमा 7500 से 7800, सरसों 4000 से 4741, ग्वार 4900 से 5290, कनक 2150 से 2345, अरिंड 5700 से 6100, चना 4400 से 4700, मुंग 6500 से 7800 ☘️ आदमपुर मंडी का भाव नरमा 7500 से 7700, सरसों 4200 से 4850, ग्वार 5000 से 5311,गेहूं 2060 से 2300,जौ 1650 से 1800 🌾 अपडेट के लिए पढते रहे AGRICULTUREPEDIA

आज के ग्वार भाव

🌾 आज 20 मई ग्वार के भाव मेड़ता मंडी ग्वार का भाव : 5050 से 5530 डेगाना मंडी ग्वार का भाव : 4500 से 5480 नागौर मंडी ग्वार का भाव : 4800 से 5450 नोखा मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5480 बीकानेर मंडी ग्वार का भाव : 5400 से 5460 बिलाड़ा मंडी ग्वार का भाव : 5200 से 5400 जोधपुर मंडी ग्वार का भाव : 4800 से 5465 फलोदी मंडी ग्वार का भाव : 4900 से 5451 ओसियां मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5460 किशनगढ़ मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5370 ब्यावर मंडी ग्वार का भाव : 4900 से 5441 बिजयनगर मंडी ग्वार का भाव : 4800 से 5430 भगत की कोठी मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5420 नोहर मंडी ग्वार का भाव : 5400 से 5460 सूरतगढ़ मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5450 श्रीगंगानगर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5651 रायसिंहनगर मंडी ग्वार का भाव : 5350 से 5501 आदमपुर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5480 गोलूवाला मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5450 अनूपगढ़ मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5460 पदमपुर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5440 करणपुर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5435 ऐलनाबाद मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5466 गजसिंहपुर मंडी ग्वार का भाव : 5200 से 5435 बारां मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5435 🌾 अपडेट के लिए पढते रहे AGRICULTUREPEDIA
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मध्य प्रदेश कृषि मंडियों के आज के भाव

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