जैविक खेती में जैव उर्वरकों की भूमिका और महत्व : जैविक खेती में जैव उर्वरकों की भूमिका और महत्व Role and Importance of Biofertilizers in Organic Farming जैविक कृषि एक उत्पादन प्रणाली है जो मिट्टी, पारिस्थितिक तंत्र और लोगों के स्वास्थ्य को बनाए रखती है। यह पारिस्थितिक प्रक्रियाओं, जैव विविधता और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल चक्रों पर निर्भर करता है। जैव उर्वरक प्राकृतिक खाद हैं जिसमें जीवाणुओं, शैवाल के सूक्ष्म जीवाणु , बीजाणु के रूप में रहते हैं।
परिचय
अकेले कवक या उनका संयोजन पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि करते हैं। कृषि में जैव उर्वरक की भूमिका विशेष महत्व रखती है, विशेष रूप से वर्तमान में रासायनिक उर्वरक की बढ़ती लागत और मिट्टी के स्वास्थ्य पर उनके खतरनाक प्रभावों के संदर्भ में।
आधुनिक कृषि, संकर बीज और उच्च उपज देने वाली किस्मों का उपयोग करने पर जोर देती है जो की रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई की बड़ी खुराक के लिए उत्तरदायी है। कृत्रिम उर्वरकों का अंधाधुंध उपयोग मृदा और जल नालियों के प्रदूषण का कुछ हद तक कारण बना है। इससे मिट्टी क़े आवश्यक पोषक तत्व और कार्बनिक पदार्थ का भी छरण हो रहा है। इससे लाभकारी सूक्ष्म जीवों का कमी हो रहा है और जिसके कारण नुकसान पहुचने वाले कीट की अप्रत्यक्ष रूप से जनसंख्या मिट्टी में बढ़ रही है और फसलों में बीमारियों की समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है I
हरित क्रांति के बाद से रासायनिक उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है मृदा पारिस्थितिकी में रहने वाले मृदा सूक्ष्म वनस्पतियों और सूक्ष्म जीवों, जो की मृदा स्वास्थ्य में मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और कुछ आवश्यक पौधों के पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं| जैव उर्वरक सूक्ष्मजीवों की एक या एक से अधिक प्रजातियों वाले उत्पाद हैं जो की नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फॉस्फेट घुलनशीलता, वातावरण में खाद और अन्य पदार्थों या सेल्यूलोज के जैविक पतन को बढ़ावा देकर, पौधों के विकास का उत्सर्जन जैसे जैविक प्रक्रियाएं, के माध्यम से उपयोग महत्वपूर्ण पोषण तत्वों को जुटाने की क्षमता प्रदान करते हैंI
कृषि में जैव उर्वरक की विशेष भूमिका हैं विशेष रूप से वर्तमान संदर्भ में रासायनिक उर्वरक की लागत में वृद्धि और मिट्टी के स्वास्थ्य पर उनके खतरनाक प्रभाव, को ध्यान में रखते हुए ।
पिछले दशकों में आत्मनिर्भरता की स्थिति तक कृषि की वृद्धि में उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों, सिंचाई जल एवं पौध संरक्षण का उल्लेखनीय योगदान है। वर्तमान ऊर्जा संकट और निरन्तर क्षीणता की ओर अग्रसर ऊर्जा स्त्रोतों के कारण रासायनिक उर्वरकों की कीमतें आसमान को छूने लगी हैं। फसलों द्वारा भूमि से लिए जाने वाले प्राथमिक मुख्य पोषक तत्वों-नत्रजन, सुपर फास्फेट एवं पोटाश में से नत्रजन का सर्वाधिक अवशोषण होता है क्योंकि इस तत्व की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं भूमि में डाले गये नत्रजन का 40-50 प्रतिशत ही फसल उपयोग कर पाते हैं और शेष 50-60 प्रतिशत भाग या तो पानी के साथ बह जाता है या वायु मण्डल में डिनाइट्रीफिकेशन से मिल जाता है या जमीन में ही अस्थायी बन्धक हो जाते हैं। अन्य पोषक तत्वों की तुलना में भूमि में उपलब्ध नत्रजन ही मात्रा सबसे न्यून स्तर की होती है यदि प्रति किलो पोषक तत्व की कीमत की ओर ध्यान दें तो नत्रजन ही सबसे अधिक कीमती है। अतः नत्रजनधारी उर्वरक के एक-एक दाने का उपयोग मितव्ययता एवं सावधानी से करना आज की अनिवार्य आवश्यकता हो गई है।
भारत जैसे विकासशील देश में नत्रजन की इस बड़ी मात्रा की आपूर्ति केवल रासायनिक उर्वरकों से कर पाना छोटे और मध्यम श्रेणी के किसानों की क्षमता से परे है। अतः फसलों की नत्रजन आवश्यकता की पूर्ति के लिए पूर्णरूप से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर रहना तर्क संगत नहीं है। वर्तमान परिस्थितियों में नत्रजनधारी उर्वरकों के साथ-साथ नत्रजन के वैकल्पिक स्त्रोंतों का उपयोग न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि मृदा की उर्वराशक्ति को अक्षुण रखने के लिए आवश्यक है। ऐसी स्थिति में जैव उर्वरकों एवं सान्द्रिय पदार्थों के एकीकृत उपयोग की नत्रजन उर्वरक के रूप में करने की अनुशंसा की गई है। भूमि में सूक्ष्म जीवों की सम्मिलित सक्रियता के लिए निम्न दशायें अनुकूल होती हैं।
- जीवाशं पदार्थों की उपस्थिति
- नमी
- वायु संचार
- बफरिंग के आसपास पी.एच. मान। यह चारों आवश्यकतायें एक मात्र कम्पोस्ट से पूरी की जा सकती हैं।
जैव उर्वरक: मौजूदा समय की आवश्यकता
वर्तमान समय में, वातावरण और स्थायी कृषि के लिए खतरों के बारे में चिंता बढ़ रही है उपर्युक्त तथ्यों के मद्देनजर, जैव उर्वरकों का दीर्घकालिक उपयोग किफायती साबित होता है रसायन के मुकाबले सीमांत और छोटे किसानों के लिए पर्यावरण के अनुकूल, अधिक कुशल, उत्पादक और सुलभ खाद के लिए जैव उर्वरक एक अच्छा विकल्प है I इस प्रकार मुख्य रूप से दो कारणों से जैव उर्वरक के उपयोग की आवश्यकता उत्पन्न होती है पहला, क्योंकि उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि से कृषि लागत में वृद्धि होती है I दूसरा, क्योंकि रासायनिक उर्वरक के उपयोग से मिट्टी की बनावट को नुकसान पहुंचता है और अन्य पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देता है।
जैव उर्वरक क्या है
सभी प्रकार के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मुख्यतः 16 तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें नाइट्रोजन एवं फास्फोरस अति आवश्यकता तत्व हैं। यह पौधों को तीन प्रकार से उपलब्ध होती है।
- रासायनिक खाद द्वारा
- गोबर की खाद द्वारा
- नाइट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणुओं द्वारा
प्राकृतिक रूप से मिट्टी में कुछ ऐसे जीवाणु पाये जाते हैं, जो वायु मण्डलीय नत्रजन को अमोनिया में एवं स्थिर फास्फोरस को उपलब्ध अवस्था में बदल देते हैं। जीवाणु खाद ऐसे ही जीवाणुओं का उत्पाद है, जो पौधों को नत्रजन एवं फास्फोरस आदि की उपलब्धता बढ़ाता है
जैव उर्वरक निम्न प्रकार उपलब्ध हैं
- राइजोबियम
- एजोटोबेक्टर
- एजोस्पाइरिलम
- फास्फोटिका
- नील हरित शैवाल
राइजोबियम
यह एक नमीधारक पदार्थ एवं जीवाणु का मिश्रण है, जिसके प्रत्येक एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक केवल दलहनी फसलों में ही प्रयोग किया जा सकता है तथा यह फसल विशिष्ट होती है, अर्थात अलग-अलग फसल के लिए अलग-अलग प्रकार के राइजोबियम जैव उर्वरक का प्रयोग होता है। राइजोबियम जैव उर्वरक से बीज उपचार करने पर ये जीवाणु खाद से बीज पर चिपक जाते हैं। बीज अंकुरण पर ये जीवाणु जड़ मूलरोम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर, जड़ों पर ग्रन्थियों का निर्माण करते हैं। ये ग्रन्थियां नत्रजन स्थिरीकरण इकाइयां तथा पौधों की बढ़वार इनकी संख्या पर निर्भर करती है। अधिक ग्रन्थियों के होने पर पैदावार भी अधिक होती है।
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किन फसलों में प्रयोग किया जा सकता है
अलग-अलग फसलों के लिए राइजोबियम जैव उर्वरक के अलग-अलग पैकेट उपलब्ध होते हैं तथा निम्न् फसलों में प्रयोग किये जाते हैं।
- मूंग, उर्द, अरहर, चना, मटर, मसूर आदि।
- तिलहनी मूंगफली, सोयाबीन।
- अन्यः रिजका, बरसीम एवं सभी प्रकार की वीन्स।
कैसे प्रयोग करें
200 ग्राम राइजोबियम कल्चर से 10 किग्रा. बीज उपचारित कर सकते हैं। एक पैकेट को खोलें तथा 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर लगभग 500 मिली. पानी में डालकर 50 ग्राम गुड़ के साथ अच्छी प्रकार घोल बना लें। बीजों को किसी साफ सतह पर इकट्ठा कर जैव उर्वरक के घोल को बीजों पर धीरे-धीरे डालें और हाथ से तब तक उलटते-पलटते जायें जब तक कि सभी बीजों पर जैव उर्वरक की समान परत न बन जाये। अब उपचारित बीजों को किसी छायादार स्थान पर फैलाकर 10-15 मिनट तक सुखा लें और तुरन्त बो दें।
राइजोबियम जीवाणु के प्रयोग से लाभ
कैसे प्रयोग करें
200 ग्राम राइजोबियम कल्चर से 10 किग्रा. बीज उपचारित कर सकते हैं। एक पैकेट को खोलें तथा 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर लगभग 500 मिली. पानी में डालकर 50 ग्राम गुड़ के साथ अच्छी प्रकार घोल बना लें। बीजों को किसी साफ सतह पर इकट्ठा कर जैव उर्वरक के घोल को बीजों पर धीरे-धीरे डालें और हाथ से तब तक उलटते-पलटते जायें जब तक कि सभी बीजों पर जैव उर्वरक की समान परत न बन जाये। अब उपचारित बीजों को किसी छायादार स्थान पर फैलाकर 10-15 मिनट तक सुखा लें और तुरन्त बो दें।
- राइजोबियम जीवाणु के प्रयोग से लाभ
- इसके प्रयोग से फसल की उपज 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है।
- राइजोबियम जीवाणु कुछ हारमोन एवं विटामिन भी बनाते हैं,जिससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है और जड़ों का विकास भी अच्छा होता है।
- इन फसलों के बाद बोई जाने वाली फसलों में भी भूमि की उर्वराशक्ति अधिक होने से पैदावार अधिक मिलती है।
एजोटोबेक्टर/एजोस्पाइरिलम/जैव उर्वरक
यह जैव उर्वरक स्वतंत्रजीवी नत्रजन स्थिरीकरण, एजोटोबेक्टर या एजोस्पाइरिलम जीवाणु का एक नम चूर्णरूप उत्पाद है। इसके एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक किसी भी फसल (दलहनी जाति की फसलों को छोड़कर) में प्रयोग किया जा सकता है।
एजोटोबेक्टर/एजोस्पाइरिलम जैव उर्वरक से लाभ
- फसलों की 10 से 20 प्रतिशत तक पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है तथा फलों एवं दानों का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है।
- इसके प्रयोग करने से 20 से 30 किग्रा० नत्रजन की बचत भी की जा सकती है।
- इनके प्रयोग करने से अंकुरण शीघ्र और स्वस्थ होते हैं तथा जड़ों का विकास अधिक एवं शीघ्र होता है।
- फसलें भूमि से फास्फोरस का अधिक प्रयोग कर लेती हैं। जिससे किल्ले अधिक बनते हैं।
- इन जैव उर्वरकों के जीवाणु बीमारी फैलाने वाले रोगाणुओं का दमन करते हैं जिससे फसलों का बीमारियों से बचाव होता है तथा पौधों में रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है।
- ऐसे जैव उर्वरकों को प्रयोग करने से जड़ों एवं तनों का अधिक विकास होता है, जिससे पौधों में तेज हवा, अधिक वर्षा एवं सूखे की स्थिति को सहने की क्षमता बढ़ जाती है।
सरकारी नौकरी, परीक्षा परिणाम, भर्ती और प्रतियोगी अपडेट-
फास्फोटिका जैव उर्वरक
फास्फोटिका जैव उर्वरक भी स्वतंत्र-जीवी जीवाणु का ए नम चूर्ण रूप उत्पाद है। इससे भी एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं। यह जैव उर्वरक प्रयोग करने से मृदा में उपस्थित अघुलनशी फास्फोरस घुलनशील अवस्था में जीवाणुओं द्वारा बदल दी जाती है।
साधारणतया मृदा में भी उपरोक्त प्रकार के जीवाणु होते हैं, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि मृदा में उपस्थित जीवाणु सूक्ष्म एवं असरकारक हों। अतः कल्चर के माध्यम से किसानों को असरकारक जीवित पदार्थ या जीवाणु उपलब्ध कराये जाते हैं।
फास्फोटिका जीवाणु के लाभ
- फास्फोटिका जीवाणु खाद के प्रयोग करने से 10 से 20 प्रतिशत पैदावार में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ मिट्टी में उपलब्ध फास्फोरस की 30 से 50 प्रतिशत की बचत की जा सकती है।
- जड़ों का विकास अधिक होता है, जिससे पौधा स्वस्थ बना रहता है।
जैव उर्वरक का उपयोग करते समय बरती जाने वाली सावधानियां
- राइजोबियम जीवाणु फसल विशिष्ट होता है। अतः पैकेट पर लिखी फसल में ही प्रयोग करें।
- जैव उर्वरक को धूप व गर्मी से दूर किसी सूखी एवं ठंडी जगह में रखें।
- जैव उर्वरक या जैव उर्वरक उपचारित बीजों को किसी भी रसायन या रासायनिक खाद के साथ न मिलायें।
- यदि बीजों पर फफूंदी नाशी का प्रयोग करना हो तो कार्बेन्डाजिम का प्रयोग करें, यदि तांबा युक्त रसायन का प्रयोग करना हो तो बीजों को पहले फफूंदी नाशी से उपचारित करें तथा फिर जैव उर्वरक की दुगुनी मात्रा से उपचारित करें।
- जैव उर्वरक का प्रयोग पैकेट पर लिखी अन्तिम तिथि से पहले ही कर लेना चाहिए। जैव उर्वरक पैकेट को सीधे धूप और गर्मी से दूर ठंडी और सूखी जगह में संग्रहित करने की आवश्यकता होती है। जैव उर्वरक के सही संयोजनों का उपयोग किया जाना है। जैसा कि राइजोबियम फसल विशिष्ट है, किसी को केवल निर्दिष्ट फसल के लिए उपयोग करना चाहिए। अन्य रसायनों को जैव उर्वरक के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए। खरीद करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक पैकेट को उत्पाद के नाम, फसल का नाम, जिसके लिए निर्माता का नाम और पता, निर्माण की तारीख, समाप्ति की तारीख, बैच संख्या और उपयोग के लिए निर्देश जैसी आवश्यक जानकारी होनी चाहिए I पैकेट का उपयोग इसकी समाप्ति से पहले किया जाना चाहिए, केवल निर्दिष्ट फसल के लिए और उपयोग की अनुशंसित विधि द्वारा। जैव उर्वरक जीवित उत्पाद हैं और भंडारण में देखभाल की आवश्यकता होती है I सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजनीस और फॉस्फेटिक बायोफर्टिलाइज़र दोनों का उपयोग किया जाता है। रासायनिक उर्वरकों और जैविक खादों के साथ जैव उर्वरक का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। जैव उर्वरकों के प्रतिस्थापन नहीं हैं, लेकिन संयंत्र पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। जैविक खेती के आवश्यक घटक होने के नाते जैव उर्वरक दीर्घकालिक मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । वायुमंडलीय नाइट्रोजन का प्रयोग करके, सूक्ष्म जीवों को जुटाकर, ये पौषक तत्त्व पौधों को उपलब्ध कराने में सहायता करते है लागत और पर्यावरणीय प्रभाव, दोनों के संदर्भ में, रासायनिक उर्वरकों पर अत्यधिक निर्भरता व्यावहारिक नहीं है इस संदर्भ में, जैव उर्वरक विकल्प साबित होगा किसानों के लिए प्रति इकाई क्षेत्र उत्पादकता बढ़ाने के लिए।
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जैव उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग विधियाँ
क्रम. सं. | प्रयोग विधि | फसल | जैवउर्वरक मात्रा/एकड़ |
---|---|---|---|
1 | बीजोपचार | ||
आवश्यकतानुसार जैव उर्वरक की मात्रा को लगभग 1.5 लीटर पानी प्रति एकड़ बीज के ढ़ेर पर धीरे-धीरे डालकर हाथों से तब तक मिलायें जब तक कि जैव उर्वरक की बीजों पर समान रूप से परत न चढ़ जाये। उपचारित बीज को छाया में रखें अथवा तुरन्त बीजाई कर दें। | गेहूं ज्वार मक्का, कपास सूरजमुखी, सरसो | 1 किग्रा. 500ग्राम 200ग्राम | |
2 | पौध जड़ उपचार | ||
आवश्यकतानुसार जैव उर्वकर की मात्रा की 4 लीटर पानी प्रति 1 किलोग्राम के हिसाब से किसी चौड़े मुंह वाले बर्तन में घोल बनायें, इस घोल को पौधे की जड़ों को 2 से 3 मिनट तक डुबोकर पौध उपचार करें तथा फिर, उपचारित पौध की तुरंत खेत में रोपाई कर दें। | धान मिर्च, टमाटर, गोभी, बैगन, प्याज आदि | 1.5 किग्रा. सें 2 किलोग्राम | |
3 | कन्द उपचार | ||
आवश्यकतानुसार जैव उर्वरक की मात्रा को 15 ली. पानी प्रति 2 किग्रा. जैव उर्वरक के हिसाब से घोल बनाकर कन्द को 5 से 10 मिनट तक डुबोये रखें या जैव उर्वरक के घोल को कन्द पर समान रूप से छिड़काव करें तथा उपचारित कन्दों की तुरन्त बीजाई कर दें। | फसलों के लिए (अर्थात् 6 माह से कम समय में पकने वाली) | 2 किग्रा. 2.5 किग्रा. | |
4 | मृदा उपचार | ||
आवश्यकतानुसार जैव उर्वरक को 35 से 50 किग्रा. कम्पोस्ट खाद या भुरभुरी मिट्टी में मिश्रण बनाकर अन्तिम जुताई के समय अथवा फसल की पहली सिंचाई से पूर्व समान रूप से एक एकड़ खेत में छिड़क कर मिट्टी में मिला दें। | लम्बी अवधि वाली फसलों के लिये (अर्थात् 6 माह से अधिक समय में पकने वाली) | 1.5 किग्रा. | |
5 | नील हरित शैवाल | ||
धान में नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक 12.5 किग्रा. प्रति हेक्टर रोपाई के एक सप्ताह बाद प्रयोग करें। इसका प्रयोग करते समय खेत में 3-4 सेमी. पानी अवश्य भरा रहना चाहिए यदि धान में किसी खरपतवार नाशी का प्रयोग किया है तो नील हरति शैवाल का प्रयोग खरपतवार नाशी के प्रयोग के 3-4 दिन बाद प्रयोग करें। |
जैव उर्वरक के उपयोग से अच्छी प्रतिक्रिया पाने का सूत्र
बायोफर्टिलाइज़र उत्पाद में उचित जनसंख्या में अच्छा प्रभावी तनाव होना चाहिए और यह सूक्ष्मजीवों को दूषित करने से मुक्त होना चाहिए। जैव उर्वरक के सही संयोजन का चयन करें और समाप्ति तिथि से पहले उपयोग करें। उपयोग की सुझाई गई विधि का प्रयोग करें, और लेबल पर दी गई जानकारी के अनुसार उपयुक्त समय पर प्रयोग करें।
बीज उपचार के लिए बेहतर परिणामों के लिए पर्याप्त चिपकने का उपयोग किया जाना चाहिए। समस्याग्रस्त मिट्टी के लिए सुधारात्मक तरीकों का उपयोग करें जैसे कि चूने या जिप्सम बीज का छिड़काव या चूने के उपयोग से मिट्टी के पीएच का सुधार। फास्फोरस और अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति सुनिश्चित करें।