परिचय
म.प्र. में मूंगफली प्रमुख रूप से शिवपुरी, छिंदवाड़ा, बड़वानी, टीकमगढ, झाबुआ, खरगोन जिलों में लगभग 220 हजार हैक्टेयरक्षेत्रफल में होती है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली का क्षेत्र विस्तार धार, रतलाम, खण्डवा, अलीराजपुर, बालघाट, सिवनी, होशंगाबाद एंव हरदा जिलों में किया जा सकता है।
मूंगफल में तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे मानव शरीर को स्वस्थ रखनें वाले खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
मूंगफली की उन्नत किस्में
किस्म | अवधि (दिन) | उपज (क्विं/हैक्टर) | विमोचन वर्ष |
जे.जी.एन.-3 | 100-105 | 15-20 | 1999 |
जे.जी.एन.-23 | 90-95 | 15-20 | 2009 |
टी.जी.- 37ए. | 100-105 | 18-20 | 2004 |
जे.एल.- 502 | 105-110 | 20-25 | 2020 |
जी.जी.-20 | 100-110 | 20-25 | 1992 |
मृदा एवं भूमि की तैयारी
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जावें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें। खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए।
भूमि उपचार
मूंगफली फसल में मुख्यतः सफेद लट एंव दीमक का प्रकोप होता है। इसलिए भूमि में आखरी जुताई के समय फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित करते है। दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे पूर्व फसलो के डण्ठल आदि को खेत से हटाना चाहिए और कच्ची गोबर की खाद खेत में नहीं डालना चाहिए। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहाँ 50 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 2 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./है. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए। मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अतः गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करें। मूंगफली के लिये 5 टन गोबर की खाद के साथ 20:60:20 कि.ग्रा./हैक्टर नत्रजन,फॉस्फोरस व पोटाश के साथ 25 कि.ग्रा./हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग आधार खाद के रूप में प्रयोग करने से उपज में 22 प्रतिशत वृद्धि प्रक्षेत्र परीक्षण व अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में पायी गयी है।
समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
यूरिया | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
43 | 375 | 33 |
समूह-2 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
डी.ए.पी.
|
सु.फा. | म्यू.पोटाश |
109 | 63 | 33 |
बीजदर
मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 100 कि.ग्रा. एवं फैलने व अर्द्ध फैलने वाली प्रजातियों का 80 कि.ग्रा. बीज (दाने) प्रति हैक्टर प्रयोग उत्तम पाया गया है।
बीजोपचार
बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए। बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
बुवाई एवं बुवाई की विधि
मूंगफली की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए। विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखनी चाहिए। मूंगफली फसल की बोनी को रेज्ड/ब्रोड-बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है। बीज की बुवाई ब्रोड बेंड पद्धति से करने पर उपज का अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है। इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है। और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वतः हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील हो से करना चाहिए। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है।
मूंगफली में किस उर्वरक की आवश्यकता होती है और किस तरह उसका प्रयोग किया जाये?
अच्छी पैदावार लेने के लिए उर्वरकों का प्रयोग बहुत आवश्यक है। यह उचित होगा कि उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाय। यदि परीक्षण नही कराया गया है तो नत्रजन २० किग्रा, फास्फोरस ३० किग्रा, पोटाश ४५ किग्रा (तत्व के रूप में ) जिप्सम २०० किग्रा एंव बोरेक्स ४ किग्रा प्रति हे. की दर से प्रयोग किया जाये।
फास्फेट का प्रयोग सिंगिल एंव बोरेक्स ४ किलोग्राम प्रति हे. की दर से प्रयोग किया जाय। फास्फोरस की निर्धारित मात्रा सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में प्रयोग किया जाय तो अच्छा रहता है। यदि फास्फोरस की निर्धारित मात्र सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में प्रयोग की जाये तो पृथक रूप से जिप्सम के प्रयोग की आवश्यकता नही रहती है।
नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश खादों की सम्पूर्ण मात्रा तथा जिप्सम की आधी मात्रा कूडों में नाई अथवा चोंगे द्वारा बुवाई के समय बीज से करीब २-३ सेमी. गहरा डालना चाहियें। जिप्सम की शेष आधी मात्रा तथा बोरेक्स की सम्पूर्ण मात्रा फसल की ३ सप्ताह की अवस्था पर टाप ड्रेसिंग के रूप में बिखेर कर प्रयोग करें तथा हल्की गुडाई करके ३-४ सेमी गहराई तक मिट्टी में भली प्रकार मिला दें।
जीवाणु खाद जो बाजरा में वृक्ष मित्र के नाम से जानी जाती है। इसकी १६ किग्रा. मात्रा प्रति हे. डालना अच्छा रहेगा क्योकि इसके प्रयोग से फलियों के उत्पादन मं वृद्घि के साथ साथ गुच्द्देदार प्रजातियों में फलियाँ एक साथ पकते देखी गई है।
खरपतवार नियंत्रण
बुवाई के १५ से २० दिन के बाद पहली निकाई गुडाई एवं बुवाई के ३० से ३५ दिन के बाद दूसरी निकाई गुडाई अवश्य करें । खूंटियां (पेगिंग) बनते समय निकाई गुडाई न की जाये।
रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डीमेथालीन ३० ई.सी. की ३.३ ली/हे० अथवा एलाक्लोर ५० ई.सी. की ४ली/हे. अथवा आक्सीलोरफेन २३.५ ई.सी. की ४२० मिली ली. मात्रा बाद तक द्दिडकाव करना चाहियें। इस छिडकाव से मौसमी घास एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार का जमाव ही नही होता है।
मूंगफली में साधारणतया कोन से रोग लगते हैं, उनकी पहचान किस प्रकार करें एवं रोग का उपचार किस प्रकार करें?
मूंगफली क्राउन राट
पहचान :
अंकुरित हो रही मूंगफली इस रोग से प्रभावित होती है। प्रभावित हिस्से पर काली फफूंदी उग जाती है जो स्पष्ट दिखाई देती है।
उपचार:
इसके लिए बीज शोधन करना चाहिये।
डाईरूट राट या चारकोल राट
पहचान :
नमी की कमी तथा तापक्रम अधिक होने पर यह बीमारी जडो मे लगती है। जडे भूरी होने लगती है। और पौधा सूख जाता है।
उपचार:
बीज शोधन करे। खेत में नमी बनाये रखे। लम्बा फसल चक्र अपनाये।
बड नेक्रोसिस
पहचान :
शीर्ष कलियां सूख जाती है। बडवार रूक जाती है। बीमार पौधों में नई पत्तियां छोटी बनती हैं और गुच्छे में निकलती है। प्रायः अंत तक पौधा हरा बना रहता है। फूल-फल नही बनते।
उपचार :
- जून के चौथे सप्ताह से पूर्व बुवाई न की जाय। थ्रिप्स कीट जो रोग का वाहक है का नियंत्रण निम्न कीटनाशाक दवा से करें।
- डाइमथोएट ३० ई.सी. एक लीटर प्रति हेक्टर की दर से ।
मूंगफली का टिक्का रोग (पत्रदाग)
पहचान :
पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के गोल धब्बे बन जाते है जिनके चारों तरफ निचली सतह पर पीले घेरे होते है। उग्र प्रकोप से तने तथा पुष्प शाखाओं पर भी धब्बे बन जाते है।
उपचार:
खड़ी फसल पर जिंक मैग्नीज कार्बामेट २ किग्रा. या जिनेब ७५ प्रतिशत घुलनशील चूर्ण २.५ किग्रा. अथवा जीरम २७ प्रतिशत तरल के ३ लीटर अथवा ८० प्रतिशत के २ किग्रा के २-३ द्दिडकाव १० दिन के अन्तर पर करना चाहिये।
मूंगफली में लगने वाले कीट कोन-कोन से हैं एवं उनपर नियंत्रण किस प्रकार किया जाये ?
मुगफली की सफेद गिडार
पहचान
इसकी गिडारे पौधों की जडें खाकर पूरे पौधो को सूखा देती है। गिडार पीलापन लिए हुए सफेद रंग की होती है जिनका सिर भूरा कत्थई या लाल रंग का होता है। ये छूने पर गेन्डुल कें समान मुडकर गोल हो जाती है। इसका प्रौढ़ कीट मूंगफली को हानि नही करता है। यह प्रथम वर्षा के बाद आसपास के पेडों पर आकर मैथुन क्रिया करते हैं। पुनः ३-४ दिन बाद खेती में जाकर अण्डे देते हैं। यदि प्रौढ़ को पेड़ो पर ही मार दिया जाय तो इनकी संख्या में काफी कमी हो जायेगी।
उपचार
- मानसून के प्रारम्भ पर २-३ दिन के अन्दर पोषक पेड़ो जैसे नीम गूलर आदि पर प्रौढ़ कीट को नष्ट करने के लिए कार्बराइल ०.२ प्रतिशत या मोनोक्रोटोफास ०.०५ प्रतिशत या फेन्थोएट ०.०३ प्रतिशत या क्लोरपाइरीफास ०.०३ प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिये।
- बुवाई के ३-४ घन्टे पूर्व क्लोरोपायरीफास २० ई.सी. या क्यूनालफास २५ ई.सी. २५ मिली. प्रति खडी किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करके बुवाई करें।
- खडी फसल में प्रकोप होने पर क्लोरोपायरीफास या क्यूनालफास रसायन की ४ लीटर मात्रा प्रति हे. की दर से प्रयोग करे।
- एनीसोल फैरेमोन का प्रयोग किया जाय।
दीमक
पहचान :
ये सूखे की स्थिति में जडो तथा फलियों को काटती है। जड कटने से पौधे सूख जाते है। फली के अन्दर गिरी के स्थान पर मिट्टी भर देती है।
उपचार :
सफेद गिडार के लिए किये गये बीजोपचार से दीमक प्रकोप को भी रोका जा सकता है।
हेयरी कैटरपीलर
जब फसल लगभग ४०-४५ दिन की हो जाती है। तो पत्तियों की निचली सतह पर प्रजनन करके असंख्या संख्यायें तैयार होकर पूरे खेत में फैल जाती है। पत्तियों को छोदकर छलनी कर देते है। फलस्वरूप पत्तियां भोजन बनाने के अक्षम हो जाती है।
रोकथाम:
मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत २५ किग्रा/हे. की छिडकाव करे । अन्य कीटनाशक दवाये जो दी गयी है उसमें किसी का भी प्रयोग कर इसकी रोकथाम कर सकते है।
मूंगफली की फसल को सफेद लट से कैसे बचाएं और उत्पादन 20% से 30% बढ़ाएं?
मूंगफली की फसल को सफेद लट से कैसे बचाएं और उत्पादन 20% से 30% बढ़ाएं?
डॉ. एस. एल गोदारा, प्रोफेसर, पौध रोग विज्ञान, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर
जागरूक किसान, कृषि-वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों की सलाह लेकर मूंगफली फसल उत्पादन से जुड़ी समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। ऐसी ही एक विशेष समस्या सफेद लट है। अभी बुवाई के समय सफेद लट की समस्या का इलाज कर लिया जाए तो बाद में कीटनाशकों पर लाखों रुपए के खर्च से बचा जा सकता है। यहां विशेषज्ञों की राय है कि ना सिर्फ खर्च से बचा जा सकता है बल्कि उत्पादन में 20% से 30% तक भी वृद्धि होती है। आइए जानते हैं कैसे मूंगफली की फसल को सफेद लट से बचाया जाए।
मूंगफली में इस कीट की प्रौढ़ अवस्था (बिटल) एवं लट अवस्था दोनों ही हानि पहुंचाती है। पेड़ – पोधौ को प्रौढ़ कीटों द्वारा नुकसान होता है, जबकि मूंगफली की फसल में सफेद लट द्वारा जड़ों को काटकर नुकसान पहुंचाया जाता है। मानसून या उससे पूर्व की वर्षा होने पर सफेद लट के प्रौढ़ जमीन से निकल कर परपोषी वृक्षों जैसे -खेजडी, नीम, बेर पर सांयकाल में बैठते हैं। सफेद लट से प्रभावित क्षेत्रों में परपोषी वृक्षों पर ये प्रौढ़ रात में विश्राम करते हैं। इस कीट के प्रौढ़ कीटों को आकर्षित करने के लिए प्रकाश पाश का उपयोग करें और उनके नीचे परात में पानी डालकर थोड़ा मिट्टी का तेल मिला देवें, ताकि प्रौढ़ भृंग परात में गिरकर नष्ट हो जाएं। यह प्रक्रिया 3-4 दिन तक अपनाएं। इन वृक्षों पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल. या क्यूनालफोस 25 ई सी 2.0 मिली प्रति लीटर पानी की दर से शाम को छिड़काव करें। प्रौढ़ भृंग निकलने के तीन दिन बाद अण्डे देना शुरू होता है, इसलिए कीटनाशकों का तुरंत छिड़काव ही लाभदायक है। प्रौढ़ भृंग (नर व मादा मिलन के बाद) भूमि में अण्डे देते हैं इन अण्डो से 7-13 दिनों बाद छोटी सफेद लट (प्रथम अवस्था लट) निकलती है जो मूंगफली के पोधौं की जड़ों को खाने एवं काटने लगती है और पोधै मरने लगते हैं। खड़ी फसल में इस लट की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल. 75 मिली या क्यूनालफोस 20 ई सी 1.0 लीटर प्रति बीघा सिंचाई के साथ प्रोढ भृंग निकलने के लगभग 20 दिन बाद अवश्य देवें।
बीज उपचार- मूंगफली में सफेद लट के नुक़सान से बचाव हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल को 3.0 मिली या क्लोथाइनिडीन 50 डब्ल्यू जी को 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
सिंचाई प्रबंधन
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्थाऐं क्रमशः प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है। खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कीटों की रोकथाम
- सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें।
- दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।
- रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
- पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
रोगों की रोकथाम
मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें।
रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
खुदाई एवं भण्डारण
जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाये तथा बीज खोल रंगीन हो जाये तो खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें। मूंगफली खुदाई में श्रमह्रास कम करने के लिए यांत्रिक ग्राउण्डनट डिगर उपयोगी है।
मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। अन्यथा नमीं अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखाये तो अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है।
अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए
- उपयुक्त नमीं होने पर ही मूंगफली को जमीन से निकाले।
- मूंगफली को भूमि से उखाड़ने के बाद इसके पौधों को उल्टा करके, छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर फलियाँ हमेंशा धूप की तरफ होना चाहिए।
- पूर्णतया सूखी फलियों को हवादार स्थान में भण्डारित करना चाहिए। जहाँ पर नमीं ग्रहण नहीं कर सकें या फिर प्रत्येक बोरे में कैल्शियम क्लोराइड़ 300 ग्राम प्रति 40 कि.ग्रा. बीज की दर से भंडारण करें।
- भण्डारण के समय हानि पहुँचाने वाले कीट पतंगो से सुरक्षा रखें, जिससे भंण्डारण के समय फलियाँ खराब नहीं हो।
ज़ायद की मूंगफली बुवाई का है सही समय, इस सीजन में कम होता है बीमारियों और कीट का प्रकोप
मूंगफली खरीफ और जायद दोनों मौसम की फसल है, मूंगफली की फसल हवा और बारिश से मिट्टी कटने से बचाती है। खरीफ की आपेक्षा जायद में कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है। प्रदेश में यह झांसी, हरदोई, सीतापुर, खीरी, उन्नाव, बरेली, बदायूं, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, मुरादाबाद, और सहारनपुर के अधिक क्षेत्रफल में उगाई जाती हैI
हरदोई जिले के कोथावां ब्लॉक के काकूपुर गाँव के किसान धन्वन्तर प्रसाद मौर्य (34 वर्ष) पिछले कई वर्षों से मूंगफली की खेती कर रहे हैं। वो बताते हैं, “हमारे यहां दर्जनों किसान मूंगफली की खेती कर रहे हैं, गेहूं कटने के बाद खेत खाली होने के बाद हम लोग मूंगफली की बुवाई करते हैं। इससे काफी फायदा हो जाता है।”
कृषि विज्ञान केन्द्र, सीतापुर के वैज्ञानिक डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं, “ये समय मूंगफली की बुवाई का सही समय होता है, बुवाई करते समय बीज शोधन जरूर कर लेना चाहिए। मूंगफली के साथ दूसरी फसले भी लगा सकते हैं, इससे जमीन की मात्रा संतुलित रहती है।”
इसके लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है, मूंगफली की खेती के लिए दोमट बलुअर, बलुअर दोमट या हल्की दोमट भूमि अच्छी रहती है, जायद में मूंगफली की फसल के लिए भरी दोमट भूमि का चुनाव नहीं करना चाहिएI यह आलू, मटर, सरसो और गेहूं की कटाई के बाद खाली भूमि में की जा सकती है।
प्रजातियां- जायद के लिए जो प्रजातियां है- डीएच-86, आईसीजीएस-44,आईसीजीएस-1, आर-9251, टीजी37, आर-8808
बीज बुवाई और शोधन- जायद में बुवाई मार्च से अप्रैल तक की जा सकती है, जिससे की फसल अच्छी पैदावार दे सकेI बुवाई लाइनों में करना चाहिए, लाइन से लाइन की दूरी 25 से 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेमी रखनी चाहिए।
जायद की फसल में 95-100 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज बुवाई में लगता हैं बोने से पहले बीज को थीरम दो ग्राम और एक ग्राम 50 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के मिश्रण को दो ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करना चाहिएI इस शोधन के पांच-छह घण्टे बाद बोने से पहले बीज को मूंगफली के राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
सिंचाई- जायद की फसल में चार-पांच सिंचाई करना चाहिए। पहली सिंचाई जमाव पूर्ण होने पर और सूखी गुड़ाई के 20 दिन बाद दूसरी सिंचाई 35 दिन बाद तीसरी सिंचाई 50 से 55 दिन बाद साथ ही हर समय नमीं रहने के लिए गहरी सिंचाई करनी चाहिएI चौथी सिंचाई फलियां बनते समय 70-75 दिन बाद तथा पांचवी सिंचाई दाना बनने के बाद दाना भरते समय करना होता है।
खरपतवार प्रबंधन- खरपतवार भी नियंत्रण जरूरी होता हैI अच्छी पैदावार लेने के लिए निराई-गुडाई, खरपतवार निकलना बहुत ही आवश्यक हैI रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथिलिन 30 प्रतिशत की 3.3 लीटर या एलाक्लोर 50 प्रतिशत की चार लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 2-3 दिन तक और बीज जमाव से पहले छिड़काव करना जरूरी होता है।
मूंगफली की खेती का आर्थिक विश्लेषण
क्र. | विवरण | मात्रा एवं दर प्रति हैक्ट. | लागत (रु) |
1.भूमि की तैयारी | |||
क | जुताई की संख्या – 03 | @400रु/घंटा, 2 घंटा /हेक्टर | 2400 |
2. खाद और उर्वरक | |||
क | उर्वरक गोबर की खाद | 10 टन/हे./ 400रु/टन | 4000 |
अ | नत्रजन | 20 X 12.5 | 300 |
ब | फास्फरस | 60 X32.5 | 1950 |
स | पोटाश | 20X20 | 400 |
ख | मजदूरो की संख्या | 3 पर 200रु/मजदूर | 600 |
3. बीज एवं बुआई | |||
क | क बीज की मात्रा | 150 किग्रा @ 60 रु/किग्रा | 9000 |
ख | बीज उपचार | ||
अ | कार्बोक्सिम + थिरम | 188 ग्राम/किग्रा @1.8/gm. | 338 |
ब | राइपोबियम | 5 ग्राम/किग्रा @20/100gm. | 40 |
स | पी.एस.बी. | 5 ग्राम/किग्रा @20gm. | 40 |
ग | बुआई का खर्च | 2 घंटा /हेक्टर @400रु/ घंटा | 800 |
घ | मजदूरो की संख्या | 4 पर 250रु/मजदूर | 1000 |
4. निंदाई/खरपतवार | |||
क | इमेजाथापर | 750 ग्रा. | 1300 |
ख | निंदाई – मजदूरी 1 | 50 @ 200 रु/ मजदूर | 10000 |
5. फसल सुरक्षा | |||
क | ट्रायजोफास (2 बार) | 800 मिली/हेक्टर (1.5 लीटर) | 800 |
ख | कार्बेडाजिम + मैंकोजेब | 1 किग्रा. | 900 |
6.खुदाई/तुड़ाई | |||
क | मजदूरो की संख्या | 40 मजदूर / 200रु/ मजदूर | 8000 |
7 | कुल खर्च | 41868 | |
8 | उपज | 20 क्विंटल / हेक्टर / 5000 रु/ क्विं | 100000 |
9 | शुद्ध लाभ | 58132
|
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10 | लागत: लाभ | 2.38 |
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