उर्वरक प्रबंधन असिंचित अप व लोलेन्ड धान
उर्वरक प्रबंधन असिंचित अप व लोलेन्ड धान
खरीफ फसल – असिंचित लोलेन्ड धान
उर्वरक प्रबंधन
- असिंचित लोलेन्ड धान के लिए उर्वरक की उपयुक्त मात्रा इस प्रकार से है।
- फास्फोरस 40-50 कि.ग्रा./हे
- पोटाश 50 कि.ग्रा./हे
- नत्रजन 40-50 कि.ग्रा./हे ( 3 भागों में)
- सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक के लिए 40 कि.ग्रा./हे जिंक सल्फेट का उपयोग तीन साल में सामान्य से उदासीन मिट्टी के लिए डालें।
- अम्लीय क्षारीय भूमि के लिए 100 कि.ग्रा./हे जिंक सल्फेट तीन साल में डाले।
- जहां टॉप डेसिंग ज्यादा पानी जमाव के कारण संभव न हो वहां नत्रजन उर्वरक को बोनी के समय नीम केक डामर की परत चढ़ी यूरिया का उपयोग करें।
- जैविक खाद जैसे नील हरित शैवाल या एजोला के द्वारा 20-25 कि.ग्रा. नत्रजन /हे की प्राप्ति होती है।
- नील हरित शैवाल या एजोला को उगाने के लिए फॉस्फोरस ( 4-20 कि.ग्रा. फास्फोरस पेंटाऑक्साइड /हे एवं मौलीबिडनम ( 2 मि.ग्रा. सोडियम मौलीबिडेट- का उपयोग करें।)
- दूसरी विधि में एजोला को उगाने के लिए ठहरे हुए पानी में 1 टन /हे एजोला को रोपाई के 7 दिन बाद खेत में मिलाए। 15 दिन बाद यह एक जाल बना लेता है जिसे भूमि में मल्चिंग के द्वारा मिलाए।
- नील हरित शैवाल के लिए 10 कि.ग्रा./हे नील हरित शैवाल को ही खेत में रोपाई के बाद मिलाए।
- ील हरित शैवाल एवं एजोला को पूरे वर्ष प्राप्त करने के लिए छोटी सीमेंट की टंकी या नली में रखा जा सकता है।
- नील हरित शैवाल को रोपाई के 1 सप्ताह बाद देना चाहिए।
- नील हरित शैवाल का उपयोग करते समय खेत में 10 से 15 से.मी. पानी रहना चाहिए।
- फास्फोरस की अनुमोदित मात्रा को मिलाए।
- एक तिहाई नत्रजन की मात्रा को खेत में दे।
सिंचाई प्रबंधन
- यह वर्षा पर आधारित असिंचित फसल है।
- फसल की क्रान्तिक अवस्थायें निम्नलिखित है और इन अवस्थाओं में फसल को सूखे से बचाना चाहिए।
- अंकुरण, कल्ले फूटना, बाले निकलना, बूटिंग एवं हेडिंग।
- लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्रों में धान को इस विधि द्वारा उगाया जाता है।
अन्तर सस्य क्रियायें
- खेत में पानी जमाव की स्थिति में अन्तरसस्य क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती।
- पानी जमाव न रहने की स्थिति में जहां पर नींदा का प्रकोप हो वहां रोपाई के 25-45 दिन बाद निदाई करना चाहिए।
ख़रीफ फसल – असिंचित अपलेन्ड धान
उर्वरक प्रबंधन
- असिंचित अपलेन्ड धान के लिए उर्वरक की उपयुक्त मात्रा इस प्रकार से है।
- फास्फोरस 30-35 कि.ग्रा.हे बोनी के समय मिलाए।
- पोटाश 20-30 कि.ग्रा.हे
- नत्रजन 45-60 कि.ग्रा.हे ( 3 भागों में-ज्ञतनजप क्मअ 020अमय।
- फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन का एक तिहाई भाग बेसल मात्रा के स्प में डाले।
- नत्रजन के दूसरे एक तिहाई भाग का भुरकाव अकुंरण के 40 दिन के बाद करें।
- नत्रजन के तीसरे एक तिहाई भाग का भुरकाव बाली बनने की प्रांरभिक अवस्था में करें।
- जिस मिट्टी में कैल्शियम की मात्रा अधिक हो और वो क्षारीय हो इस मिट्टी में लौह तत्व की कमी हो सकती है।
- बोनी के पहले अगर बीज को 2 प्रतिशत फेरस सल्फेट के घोल में रात भर भिगोकर रखा जाए तो लौह तत्व की कमी नहीं होती है।
सिंचाई प्रबंधन
- असिंचित अपलेन्ड धान की खेती उन क्षेत्रों में की जाती है जहां वार्षिक वर्षा 750-1100 मि.मी. होती है।
- सूखी घास,भूसे आदि से ढाककर नमी को संरक्षित करें।
- बरसाती पानी का सरंक्षध करें जिससे कि भूमि में दाने के बनने तक उपयुक्त नमी रहे।
- अगर पानी की अत्याधिक कमी हो तो फसल की इन क्रान्तिक अवस्थाओं जैसे कल्ले फूटते समय, गभोट एवं दाने भरने के समय सिंचाई करें।
अन्तर सस्य क्रियायें
- अकुंरण के 20 और 40 दिन बाद हाथ से नींदा निकाले।
- नत्रजन की दूसरी एवं तीसरी मात्रा डालने के पूर्व नींदा नियंत्रण करें।
- जिन क्षेत्रों में मिट्टी में नमी की कमी हो तो उन क्षेत्रों में भूसे आदि को डाले जिससे नमी संरक्षण हो सके।
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