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वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प

by | Mar 20, 2023 | जैविक खेती

वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प

वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प

परिचय

केंचुओं द्वारा कृषि अवशिष्ट को पचाकर उत्तम किस्म का कंपोस्ट बनाया जाता है| केंचुए के अपशिष्ट यानि मल, उनके कोकून, सूक्ष्म जीवाणु, पोषक तत्व और विघटित जैविक पदार्थों का मिश्रण वर्मी कंपोस्ट कहलाता है|

 

प्रकृति ने केंचुओं को अद्भुत क्षमता प्रदान की है| वे स्वयं के भार से अधिक मल-मूत्र का त्यागकर उत्कृष्ट कोटि का कंपोस्ट बना सकते हैं| वर्मीकंपोस्ट में 1.2 – 2.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.6 – 1.8 प्रतिशत फॉस्फोरस तथा 1.0 – 1.5 प्रतिशत पोटाश की मात्रा पाई जाती है| इस कंपोस्ट में एक्टीनोमाइसीट्स की मात्रा गोबर की खाद की तुलना में 8 गुना अधिक पाई जाती है| इसके अतिरिक्त वर्मीकंपोस्ट में सूक्ष्म पोषक तत्व संतुलित मात्रा में तथा एंजाइम व विटामिन भी पाए जाते हैं |

जैविक खाद मूल रूप से एक व्यवस्थित कीट-पोषण प्रक्रिया है जिसमें मिट्टी के भीतर विद्यमान अन्य जैविक पदार्थों का अवशोषण कर मिट्टी को उपजाऊ बनाया जाता है। खाद बनाने संबंधी, यूएसडीए (USDA) के दिशानिर्देशों के अनुसार (21अक्तूबर 2002से प्रभावी) जैविक खाद में घास-फूस तथा/ अथवा पशुओं का अपशिष्ट होता है जिसमें मुख्यरूप से छोटे-छोटे केंचुओं का जैविक मिश्रण होता है। चूंकि यह पदार्थ केंचुओं के आंत से होकर गुजरता है, अतः यह जैविक पदार्थों का बायोआक्सीडेशन एवं स्टेबिलाइज़ेशन कर वायु में उपलब्ध माइक्रो आर्गनिज़्म और केंचुओं के संगम से गैर-थर्मोफिलिकल विधि से तैयार किया जाता है।

जैविक खाद विधि से बहुत कम समय में सामान्य तापक्रम के अंतर्गत अच्छी गुणवत्ता वाली खाद तैयार की जा सकती है जिसमें केंचुओं की समूचत प्रजातियों का उपयोग होता है। इसमें केंचुओं की आंतों में विद्यमान सेल्लुलाज तथा माइक्रो आर्गनिज़्म मिलकर निगले हुए जैविक पदार्थों का बड़ी तेजी से विघटन करते हैं।ये केंचुए अपनी पाचन क्रिया और जैव पदार्थों के संयुक्त मिश्रण के प्रभाव से एक अपशिष्ट पदार्थ बाहर छोड़ते हैं जिसे वर्मिकंपोस्टिंग कहा जाता है और यह खाद के गड्ढों में बिना केंचुओं के नहीं पाया जाता है।

केंचुआ बहुत आदिक मात्रा में खाना खानेवाले होते हैं, वे बायोडिग्रेडबल पदार्थ का अक्षण करते हैं और उसका कुछ भाग अपशिष्ट पदार्थ या वर्मिकास्टिंग्स के रूप में बाहर छोड़ते हैं। पोषक तत्वों से युक्त वर्मी-कास्टिंग पौधों के लिए एक पौष्टिक खाद है। यह कृमि खाद, पोषक तत्वों की आपूर्ति एवं पौधों में हार्मोन्स को बढ़ाने के अलावा, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाता है जिससे मिट्टी द्वारा पानी और पोषक तत्व धारण करने की क्षमता में वृद्धि होती है। जिन फल, फूल और सब्जियों तथा पौधों के अन्य उत्पादों में वर्मी- कम्पोस्ट का (केंचुआ) के उत्पादन में रुचि ले रहे हैं। इसकी लागत प्रति कि.ग्रा. 2 .0 रु. से भी कम होने के कारण, इसे 4 .0 से 4 .50 रु. प्रति कि.ग्रा. तक बेचने से भी काफी लाभप्रद है।

 

प्रक्रिया

उथली सतहों में कृषि कचरे और गाय के गोबर तथा फसलों के अवशेष इत्यादि के साथ कॅचुओं का उपयोग कर खाद बनाने की प्रक्रिया धीरे धीरे फैलती जा रही है। केंचुओं को गर्मी से बचाने के लिए गड्ढों को उथला रखा जाता है, ताकि केंचुओं को बननेवाली ऊष्मा से बचाया जा सके अन्यथा वे मर सकते हैं। उनके द्वारा अपशिष्ट पदार्थ को तीव्रता से बाहर छोड़ने के लिए सामान्य तापक्रम लगभग 30 डिग्री सेंटीग्रेड के आसपास रखा जाता है। अंततः इस प्रक्रिया ट्वारा उत्पन्न उत्पाद को वर्मीकम्पोस्ट कहा जाता है जो केंचुओं द्वारा खाये गए जैविक पदार्थों के अपशिष्ट से बनता है। इस प्रक्रिया में चारों तरफ से खुला एक शेड के अंदर ईंटों से बना 0 .9 से 1 .5 मीटर तक चौड़ा तथा 0 .25 से 0 .3 तक ऊंची एक क्यारी बनाई जाती है। वाणिज्यिक उत्पादन के लिए, यह हौदा (Bed) समानरूप से 15 मीटर तक लंबा, 1 .5 मीटर तक चौड़ा तथा 0.6 मीटर तक ऊंची बनाई जा सकती है। क्यारी की लंबाई सुविधानुसार बनायी जा सकती है, परंतु उसकी चौड़ाई तथा ऊंचाई नहीं बढ़ाई जा सकती है क्योंकि चौड़ाई अधिक रखने से संचालन सुविधा प्रभावित होती है तथा ऊंचाई अधिक रखने से गमों के कारण तापक्रम बढ़ सकता है। 2 .2 गोबर तथा खेत के कचरों को परतों में लगाया जा सकता है जिससे कि 0 .6 मीटर से 0 .9 मीटर तक ऊंचा ढेर लग जाए। परतों के बीच प्रति घनमीटर कयारी आयतन में 350 केंचुओं को रखा जा सकता है जिसका वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है। क्यारी पर पानी का छिड़काव कर 40-50% तक नमी और 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम रखा जाता है। 2 .3 जब उत्पादन का लक्ष्य व्यावसायिक पैमाने पर हो तो आरंभ में उत्पाटन लागत के अतिरिक्त पूंजीगत वस्तुओं में निवेश की ज्यादा जरूरत होती है। प्रति टन उत्पादन क्षमता के लिए पूंजीगत लागत लगभग 5000/- से 6000/- तक आती है। पूंजीगत लागत अधिक इसलिए होती है क्योंकि बड़ी इकाइयों के स्थापन में वर्मी-क्यारियाँ तैयार करने तथा उनके शेल्टर एवं मशीनरी हेतु शेड बनाने पर खर्च ज्यादा होता है ; हालांकि यह व्यय केवल एक बार ही होता है। 2 .4 परिचालन लागत के तहत कच्चे एवं तैयार माल की ढुलाई प्रमुख गतिविधियां हैं। जब जैविक कचरे एवं गोबर का स्रोत उत्पादन स्थल से दूर हो तथा तैयार माल को कहीं दूर मार्केट तक पहुंचाने के लिए परिवहन की आवश्यकता हो, तो परिचालन लागत बढ़ भी सकती है। 2 .5 यद्यपि, अधिकांश मामलों में वर्मी-कम्पोस्ट का उत्पादन आर्थिक रूप से व्यवहार्य तथा बैंक साध्य है; फिर भी, इसका उत्पादन इकाई स्थापित करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प

केंचुएं की प्रजातियाँ

अपने विविध प्रकार के आहार एवं बिल बनाने की आदतों के कारण भारत की मिट्टी में रहने वाले केंचुओं की लगभग 350 विभिन्न प्रजातियों में से एसनेसिया फेटिडा, एड्रिलस यूजीनिया और पेरिनोक्स एक्स्कैवाटस नामक कुछ ऐसी प्रजातियाँ हैं जो जैविक कचरों को बड़ी तेजी से खाद में बदल देती हैं। इसके अतिरिक्त, केंचुओं के संयुक्त रूप (जैसे एपिजिक प्रजातियाँ जो अपना स्थायी बिल नहीं बनाती हैं और मिट्टी के सतह पर रहती हैं, एनेकिक प्रजातियाँ जो अस्थायी एवं सतह से लम्बवत बिल बनाती हैं, तथा एंडोजिक प्रजातियाँ जो हमेशा मिट्टी के गहरे सतह में रहती हैं) के उत्पादन पर भी विचार किया जा सकता है।

किसी भी अवशोषित हो सकनेवाले पदार्थ और वर्मिकंपोस्टिंग इकाई में केंचुओं के आहार के लिए वह जगह/इकाई उपयुक्त होती है जहां पर्याप्त मात्र में जैविक कचरों का उत्पादन होता है। एक केंचुआ लगभग 6 हफ्तों में प्रजनन के लिए तैयार हो जाता है जो हर 7-10 दिनों में अंडा-कैप्सुल के रूप में एक अंडा देता है जिसमें 7 श्रूण रहते हैं। प्रत्येक कैप्सुल में से लगभग 3-7 केंचुए निकलते हैं। इस तरह, अनुकूलतम परिस्थितियों में केंचुओं की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती है। केंचुए लगभग 2 वर्ष तक जीते हैं। पूरी तरह से विकसित केंचुओं को अलग किया जा सकता है और उन्हें एक ओवन में सुखाकर कृमि-आहार के रूप में तैयार किया जा सकता है जिसमें 70% तक प्रोटीन का समृद्ध स्रोत पाया जाता है जिसे पशु-आहार के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

केंचुओं के प्रकार

प्रकृति में लगभग 700 किस्म के केंचुए पाए जाते हैं| इनमें से 293 प्रजातियों को लाभकारी पाया गया है| मुख्यतया तीन प्रकार के केंचुए अधिक लाभकारी है|

एपिजिक – ये भूमि में 1 मीटर की गहराई तक ही जाते हैं और कृषि अपशिष्टों को अधिक खाते हैं| इनकी कुछ प्रजातियां है| आईसीनिया फोईटीडा, फेरेटिमा इलोन्गेटा आदि |

इंडोज़िक – ये केंचुए भूमि में गहरी सुरंग बनाते हैं| ये केंचुए कृषि अपशिष्टो को कम व मिट्टी को अधिक खाते हैं|

डायोजिक – ये केंचुए 1 से 3 मीटर की गहराई पर रहते हैं एवं दोनों प्रजातियों के बीच की श्रेणी में आते हैं|

राजस्थान की परिस्थितियों से आईसीनिया फोईटीडा प्रजाति के केंचुए सबसे उपयुक्त पाए जाते हैं | इनकी लंबाई 3 – 4 इंच और वजन आधा से एक ग्राम तक होता है | ये लाल रंग के होते हैं जो 90 प्रतिशत कार्बनिक पदार्थ व 10 प्रतिशत मिट्टी खाते हैं | ये केंचुए 4 सप्ताह में वयस्क होकर प्रजनन योग्य हो जाते हैं |

वर्मीकंपोस्ट बनाने की विधि

वर्मीकंपोस्ट बनाने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करते हैं जो ऊंचा तथा छायादार हो | छाया नहीं होने की स्थिति में वर्मीबेड के ऊपर छप्पर डालकर छाया करनी चाहिए, क्योंकि केंचुओं को अधिक प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है |

 

वर्मीकंपोस्ट बनाने की विधि

वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प

केंचुए अंधेरे में अधिक क्रियाशील रहते हैं | प्रजनन एवं खाद निर्माण क्रिया के लिए 30 प्रतिशत नमी 25 – 30 डिग्री सेल्सियस तापमान आवश्यक है| वर्मीकंपोस्ट बनाने के लिए बेड (क्यारी) की लंबाई 40 – 50 फीट और चौड़ाई 3 – 4 फीट रखते हैं |

लंबाई व चौड़ाई को आवश्यकतानुसार कम या ज्यादा कर सकते हैं, परंतु वर्मीकंपोस्ट तैयार होने पर उसको एकत्र करने में सुविधा के लिए चौड़ाई 4 फीट तक ही रखते हैं | आवश्यकतानुसार एक छप्पर के नीचे एक से अधिक क्यारियां बना सकते हैं |

क्यारी में मामूली सड़ा हुआ भूसा, तिनके, कड़वी, जूट आदि को सतह पर 3 इंच की मोटाई में तह लगाकर बीछोना बनाया जाता है | बिछावन को पानी से नम कर दिया जाता है |

इस बिछावन पर 2 इंच मोटाई की एक परत कंपोस्ट या गोबर की बिछाई जाती है और पुनः इस परत को पानी से नम कर देते हैं | इस परत पर वर्मीकंपोस्ट, जिसमें केंचुए व कोकून होते हैं डाल दी जाती है | इस परत के ऊपर गोबर व मामूली सडा हुआ कृषि अपशिष्ट पदार्थ मिलाकर बिछा दिया जाता है |

 

वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प

इस तरह परतो की कुल ऊंचाई लगभग डेढ़ फीट तक हो जाती है | इसको टाट या घास-फूस से ढक दिया जाता है | इस ढेर पर समय-समय पर पानी का छिड़काव करना चाहिये |

उचित परिस्थितियों में वर्मीकंपोस्ट 60 दिन में बनकर तैयार हो जाता है | वर्मीकंपोस्ट तैयार हो जाने पर पानी का छिड़काव बंद कर देते हैं जिससे केंचुए क्यारी में नीचे की परत में चले जाते हैं | उसके बाद ऊपर से वर्मीकंपोस्ट को इकट्ठा कर लेते हैं |

वर्मीकंपोस्ट के लाभ –

  • वर्मीकंपोस्ट देशी खाद की तुलना में अधिक श्रेष्ठ किस्म का होता है | इसमें गोबर की खाद की तुलना में अधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं |
  • वर्मी कंपोस्ट के उपयोग से मृदा की जलधारण क्षमता बढ़ जाती है अतः भूमि का कटाव रुकता है |
  • वर्मीकंपोस्ट में एक्टीनोमाइसीट्स की मात्रा देशी खाद की तुलना में 8 गुना अधिक होने से फसलों में रोग प्रतिरोधकता बढ़ती है |
  • वर्मीकंपोस्ट के उपयोग से खेत में ह्यूमस की मात्रा बढ़ती है |
  • वर्मी कंपोस्ट के उपयोग से खेत में खरपतवार व दीमक का प्रकोप कम होता है |
  • केंचुए ऑक्सिन नामक हार्मोन का स्त्राव करते हैं जो पौधों की वृद्धि एवं रोगरोधी क्षमता बढ़ाता है |
  • वर्मी कंपोस्ट टिकाऊ खेती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है तथा यह जैविक खेती की दिशा में एक नया कदम है |

वर्मीकंपोस्ट प्रयोग विधि

वर्मीकंपोस्ट का उपयोग विभिन्न फसलों में अलग-अलग मात्रा में किया जाता है | खेत की तैयारी के समय 2.5 – 3.0 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग कर जुताई कर मिला लेते हैं|

खाधान्न फसलों में 5-6 टन प्रति हेक्टेयर वर्मीकंपोस्ट प्रयोग किया जाता है| वर्मीकंपोस्ट भुरभुरा होने के कारण कृषक इसका उपयोग बुवाई के समय ऊर कर भी करते हैं|

उपयुक्त स्थान

कच्चे माल की उपलब्धता एवं उत्पादों की मार्केटिंग को ध्यान में रखते हुए बड़े पैमाने की वर्मिकम्पोज़ इकाइयों की स्थापना कृषि प्रधान ग्रामीण क्षेत्रों, शहरों, उपनगरीय क्षेत्रों और गांवों की बाहरी परिधि में सबसे उपयुक्त मानी जाती है। चूंकि फलों, सब्जियों, पौधों तथा सजावटी फसलों के विकास में खाद को अत्यंत उपयोगी माना जाता है; अतः वर्मिकम्पोज़ इकाइयों की स्थापना के लिए ऐसी जगहों को उपयुक्त माना जाता है जहां पर अधिक मात्र में फल-फूल तथा सब्जियाँ उगाई जाती हॉ। इसके अलावा, यदि पास में कोई व्यावसायिक डेयरी इकाई अथवा जहां पर अधिक संख्या में पशुओं की गौशाला हो वहां पर सस्ते कच्चे माल यानी गाय के गोबर की आसान उपलब्धता का अतिरिक्त लाभ होगा।

व्यावसायिक इकाइयों के घटक

स्थानीय स्तर पर गोबर की उपलब्धता के आधार पर व्यावसायिक इकाइयों को विकसित किया जाना है। यदि कुछ बड़े डेयरी कार्य कर रहे हैं, तो ऐसी इकाई एक संबद्ध गतिविधि के रूप में हो सकती है। व्यावसायिक इकाइयों का सृजन आयातित गोबर के आधार पर नहीं होना चाहिए। इसमें प्राकृतिक-संसाधनों का उपयोग करते हुए स्थानीय विकास की परिकल्पना है।

छप्पर (शेड)का निर्माण

छोटा हो या बड़ा, वर्मिकम्पोज़ यूनिट के लिए शेड बनाना जरूरी है जिससे कि वरमी क्यारियों की सुरक्षा रहती है। यह घास-फूस की हो सकती है जो बांस की लकड़ियों पर बंधा हो तथा लकड़ी अथवा लोहे/ सीमेंट/ पत्थर के खंभों पर टिकी हो सकती है। पूंजी निवेश लागत को कम रखने के लिए छप्पर हेतु स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री अथवा एचडीपीई शीट्स का उपयोग किया जा सकता है। शेड का निर्माण करते समय यह ध्यान रहे कि श्रमिकों को क्यारियों के इर्द-गिर्द आने-जाने अथवा खड़े होने के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध हो जिससे कि वे तैयार माल को इकट्टा कर सकें।

क्यारियां

अतिरिक्त जल की निकासी व्यवस्था के आधार पर क्यारी की ऊंचाई आमतौर पर 0 .3 मीटर से-0 .6 मीटर तक होती है। यह ध्यान रखना चाहिए कि पूरी क्यारी की ऊंचाई सब जगह से एक समान हो ताकि उसका आयतन छोटा न पड़े और उत्पादन की मात्रा कम न हो। कयारी की चौड़ाई 1 .5 मीटर से अधिक न हो जिससे कि उसके बीच में आसानी से पहुंचा जा सके।

भूमि

एक केंचुआ उत्पादन इकाई स्थापित करने के लिए लगभग 0.5-0.6 एकड़ भूमि की आवश्यकता होगी। सुविधा के लिए उसके मध्य में कम से कम 6-8 शेडों के लिए जगह निश्चित होगी और तैयार माल रखने के लिए उसमें अलग से जगह निर्धारित होगी। पानी की व्यवस्था के लिए एक बोरवेल एवं पम्पसेट तथा योजना के आर्थिक पहलू में निर्दिष्ट अन्य उपकरण भी होने चाहिए। 10-15 वर्षों के लिए भूमि पट्टे (लीज) पर ली जा सकती है।

भवन

जब बड़े पैमाने पर व्यावसायिक कार्यों हेतु इस गतिविधि को हाथ में लिया जाता है, तो व्यावसायिक-स्थल के निर्माण पर ज्यादा खर्च आता है जिसमें एक कार्यालय, कच्चे एवं तैयार माल को रखने के लिए उपयुक्त जगह की जरूरत होती है। प्रबन्धक एवं मजदूरों के लिए न्यूनतम जगह का प्रावधान होना चाहिए। इसके अंतर्गत बिल्डिंग की लागत के साथ बिल्डिंग एवं वर्मी-शेडों का विद्युतीकरण भी शामिल किया जा सकता है।

बीज भंडारण

यह एक महत्वपूर्ण विषय है जिसमें पर्याप्त खर्चे की जरूरत होती है। यद्यपि 06 माह से लेकर 02 वर्ष की अवधि में केंचुओं का प्रजनन बड़ी तेजी से होता है, परंतु आधारभूत सुविधाओं में एक बड़ी राशि का निवेश कर इतनी अवधि तक इंतजार करना समझदारी नहीं है। अतः, आरंभ में क्यारी-वॉल्यूम का प्रति घन मीटर 02 कि.ग्रा. की दर से केंचुओं का उत्पादन शुरू किया जा सकता है जिससे कि अनुमानित उत्पादन को प्रभावित किए बिना 2 या 3 चक्रों में अपेक्षित संख्या में केंचुओं के उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त हो सके।

बाड़ लगाना तथा सड़कें/रास्ते

उत्पादन-स्थल पर आवश्यक मूलभूत सुविधाओं को विकसित करने की जरूरत है जैसे कि यह सड़क/ रस्तों इत्यादि से जुड़ा हो जिससे कि कच्चे एवं तैयार माल को वर्मी-शेडों से ठेला गाड़ी पर ढोने में आसानी हो। पूरे क्षेत्र को बाड़ से घेर देना चाहिए जिससे कि पशु तथा कोई अन्य अनावश्यक तत्व वहाँ तक न पहुँच सके। इसका अनुमान उत्पादन-स्थल की चौहद्दी एवं क्षेत्रफल तथा सड़कों एवं रास्तों के प्रकार पर निर्भर करता है। बाड़ तथा सड़कों/रास्तों इत्यादि के निर्माण पर से कम खर्च हो क्योंकि ये उत्पादन यूनिट के लिए आवश्यक तो है पर उनसे उत्पादन में वृद्धि नहीं होती है।

जल आपूर्ति प्रणाली

चूंकि वर्मी-क्यारियों को हमेशा 50% नमी में रखना पड़ता है, अतः इसके लिए जल स्रोत,लिफ्टिंग प्रणाली तथा वर्मी-क्यारियों तक पानी पहुंचाने एवं छिड़काव की व्यवस्था करने की आवश्यकता पड़ती है पानी की बचत को ध्यान में रखते हुए ड़िप्पर्स से 24 घंटे पानी देना आसान रहेगा। आरंभ में इस प्रणाली में कुछ निवेश की जरूरत पड़ती है, परंतु बाद में तुलनात्मक रूप से इसके संचालन लागत में कमी आती है और यह सस्ता पड़ता है। इसकी लागत ईकाई की क्षमता एवं जल प्रणाली के प्रकार पर निर्भर करती है।

मशीनरी

कच्चे माल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटने (श्रेडिंग) तथा उसे वर्मी-शेड्स तक ले जाने, लदाई एवं उतराई करने, खाद का संग्रहण, क्यारियों की वेंटिलेशन, पैकिंग से पहले खाद को निकालने एवं उसे हवा में सुखाने, उनकी स्वचालित पैकिंग तथा सिलाई इत्यादि के लिए कृषि मशीनरी एवं अन्य उपकरणों की आवश्यकता होती है जिससे कि उत्पादन इकाई को सुचारु रूप से चलाया जा सके।

माल की ढुलाई

किसी भी जैविक खाद यूनिट के लिए परिवहन व्यवस्था जरूरी है। यदि कच्चे माल की आपूर्ति का स्रोत उत्पादन इकाई से कहीं दूर स्थित है, तो परोक्ष परिवहन की व्यवस्था हेतु निवेश करना प्रमुख हो जाता है। प्रतिवर्ष लगभग 1000 टन की क्षमता के एक बड़े आकार की इकाई के लिए 3 टन क्षमता वाले एक मिनी ट्रक की आवश्यकता हो सकती है। छोटी इकाइयां जिसके आस-पास कच्चे माल की उपलब्धता रहती है वहाँ परिवहन पर व्यय करना कोई समझदारी नहीं होगी। भंडारण स्थल और वर्मी कम्पोस्ट शेडों के बीच कच्चे एवं तैयार माल की दुलाई के लिए ठेला-गाड़ियों को परियोजना लागत में शामिल किया जा सकता है।

फर्नीचर

भंडारण रैक तथा अन्य कार्यालय उपकरणों सहित एक कार्यालय- सह – स्टोर भी बनाया जा सकता है जिससे कार्य संचालन की दक्षता में वृद्धि होगी।

वित्तीय पहलू

लाभ

ऐसा माना जाता है कि पहले वर्ष में 2-3 उत्पादन चक्र होगा और तत्पश्चात प्रत्येक चक्र लगभग 65-70 दिनों की अवधि के साथ कुल 5-6 उत्पादन चक्र होगा। इसके अतिरिक्त, कुछ सीमाओं तथा परिचालन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, पहले वर्ष में क्षमता उपयोग 50% और उसके बाद से 90% तक माना जाता है। प्रति मीट्रिक टन रु.4500 /- की दर से जैविक खाद की बिक्री से प्राप्त आय तथा प्रति किलो 200/- की दर से केंचुए की बिक्री से प्राप्त आय लाभ के अंतर्गत शामिल है। दूसरे वर्ष से वार्षिक शुद्ध आय लगभग 6,48,000 होगा।

परियोजना लागत

वर्मी-कंपोस्टिंग का उत्पादन सालाना 10 लाख मेट्रिक टन (टीपीए) से शुरू कर 1000 (टीपीए) और उससे ऊपर किसी भी पैमाने पर शुरू किया जा सकता है। चूंकि इसका उत्पादन वर्मीक्यारियाँ हेतु उपलब्ध जगह के आनुपातिक आधार पर होता है, अतः आरंभ में कम क्षमता से शुरू करना लाभकारी होगा और बाद में उत्पादन अनुभव में बढ़ोतरी एवं उत्पादों हेतु सुनिश्चित मार्केट विकसित हो जाने पर इसकी इकाई क्षमता में विस्तार किया जा सकता है। छोटी-छोटी कुल 24 क्यारियाँ (प्रत्येक क्यारी का क्षेत्रफल 15मी लंबा, 1।5 मी चौड़ा तथा 0।6मी ऊंचा ) में विस्तृत 324 घन मी की एक क्यारी से साल में प्रत्येक 65-70 दिनों की 6 चक्रों/फसलों से 200 टीपीए वर्मी खाद का उत्पादन अनुमानित है। इन सभी 24 क्यारियों को अलग-अलग 2-4 खुले शेडों में बनाया जा सकता है। केंचुओं के प्रमुख-स्टॉक, मशीनरी एवं उपकरणों की लागत, परिचालन/उत्पादन लागत सहित पूंजीकृत लागतों का विवरण दर्शाया गया है। इकाई की लागत और लाभ दर्शाया गया है। इसमें निवेश लागत रु.13,50,000/-, परिचालन लागत रु 3,42,000/- देखा जा सकता है। इसके अंतर्गत दो चक्रों की परिचालन लागत की राशि रु.1,24,800/- को पूंजीकृत किया गया है।

बैंक ऋण

इस मॉडल में बैंक ऋण 75% माना गया है जो रु.10.125 लाख बनता है।

ब्याजदर

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय समय पर निर्धारित ब्याज सीमा के अंतर्गत बैंक अपना ब्याज दर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं। वित्तीय विश्लेषण एवं परियोजना की बैंक साध्यता को ध्यान में रखते हुए ब्याज दर 13 से 15% तक हो सकती है, परंतु अंततः उधार दर 13% मान ली गयी है।

प्रतिभूति

इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को समय समय दिशा निर्देश जारी किए जाते हैं।

वित्तीय विश्लेषण

वित्तीय विश्लेषण अनुबंध IV में दर्शाया गया है। यह संकेत देता है कि मॉडल व्यवहार्य है। प्रमुख वित्तीय संकेतक नीचे दिए गए हैं :

  • एनपीवी : रु. 7.621 लाख
  • बीसीआर : 1.23:
  • आईआरआर : 34%

अस्वीकृति

इस मॉडल परियोजना में अभिव्यक्त किए गए विचार सलाह रूप में हैं। यदि कोई भी व्यक्ति इस रिपोर्ट को किसी उद्देश्य के लिए उपयोग करता है तो उसके प्रति नाबार्ड की कोई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं होगी। परियोजना की वास्तविक लागत एवं लाभ अलग-अलग परियोजना के आधार पर होगा जिसमें उक्त परियोजना की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाएगा।

जैविक खाद (200 टीपीए)

अनुबंध- I

पूंजी लागत

क्र.संमद विवरणराशि
प्रथम वर्षदूसरे वर्ष
क.भूमि एवं भवन
1भूमि (पट्टे पर)7500
2जैविक खाद शेडों हेतु भूमि का समतलीकरण व मिट्टी भराई250000
3घेराबंटी करना एवं गेट लगाना
4निम्नलिखित आवश्यकता की पूर्ति के लिए खुला शेड जिसमें ईंटों की कतार लगाकर क्यारी बनाई गयी हो तथा आर सी सी प्लेटफॉर्म/ एम एस पाइप के खंभे तथा घास-फूस से बना छप्पर/एच डी पी ई /स्थानीय रूप से उपलब्ध छत(1000/वर्ग मी।)
जैविक खाट कयारियाँ (15m x 1।5m x 24 = 540 वर्ग मी)560000
तैयार उत्पादों हेतु 30 वर्ग मी.30000
5गोदाम/स्टोर एवं ऑफिस250000
उप-योग872500
ख.उपकरण एवं मशीनरी
1आवश्यकतानुसार विविध प्रकार के फावड़े, क्रो-बार्स, लोहे की टोकरी, गोबर निकालने का फावड़ा, बाल्टियाँ, बांस की टोकरियाँ, कन्नी इत्यादि5000
2प्लंबिंग एवं फिटिंग टूल्स1500
3विद्युत चालित श्रेडर25000
4तीन तारों की जालीवाला मोटर सहित विद्युत चालित छलनी (आकार 0.6मी x 0.9मी )45000
5भार मापी (क्षमता 100कि.ग्रा.)2500
6बैग सील करनेवाली मशीन5000
7तराजू (प्लेटफॉर्म टाइप)6000
8प्लास्टिक की 04 कल्चर ट्रे (35 से.मी.x 45से.मी.)1600
9व्हील बरोज-12000
उप-योग103600

 

पानी का साधन- बोरवेल हैंडपम्प, पाइप, ड्रिप्पर के साथ75000
1विद्युत स्थापन10000
2फनींचर एवं फिक्सचर1500
3केंचुए (@ 1 kg प्रति घन मी। तथा 300/किग्रा,

उपयोग किया गया कुल क्यारी वॉल्यूम = 324 घन मी।

 

97200
कुल पंजी लागत1183300

वर्मी-कंपोस्टिंग यूनिट (200 TPA)

( एक वर्ष में 65-75 दिनों के 7 चक्रों के लिए कुल संचालन लागत )

बेड वॉल्यूम : 324 घन मी।

वसूली : 30 % संचालन लागत

क्र. सं.मद विवरणराशि
प्रथम वर्षंदूसरे वर्ष
1.कृषि कचरा (लागत, संग्रहण एवं वाहन) 51840 103680 @ 320कि। ग्रा। प्रति घन मी। तथा 200/МТ (15 x 1.5 x 0.6 x 24 x 5 х 320 x 200 ) 1000 [पहले वर्ष 50% पर ]51840103680
2.गोबर (लागत, संग्रहण तथा वाहन ) 16200 32400 @ 80 कि। ग्रा। प्रति घन मी। तथा 250/МТ (15 x 1।5 x 0।6 x 24 x 5 х 80 x 250 ) 1000 [पहले वर्ष 50% पर ]1620032400
3.दो कुशल स्थायी मजदूरों का वेतन मजदूरी 12000 12000 @ 6000/- प्रति माह1200012000
4.कृषि कचरे से वर्मी बेड बनाने, गोबर तथा 25000 50000 दैनिक आधार पर मजदूरी (थैलों की कीमत सहित) 250 mds @ 200/md) [पहले वर्ष में 50% पर ]2500050000
5.पम्प, मशीनरी एवं रोशनी इत्यादि के लिए 12000 24000 विद्युत प्रभार [पहले वर्ष में 50% पर ]1200024000
6.मरम्मत एवं रख-रखाव[पहले वर्ष में 50% पर ]3000060000
7.थैलों की कीमत तथा मार्केटिंग लागत पहले वर्ष में 50% पर ]1500030000
उप-योग156040312080
8.लीज रेंट, विविध व्यय इत्यादि3000030000
कुल संचालन लागत186040342080

 

वर्मी-कंपोस्टिंग यूनिट (200 टीपीए)

वित्तीय विश्लेषण

क्र.संलागतराशि
प्रथम वर्षदूसरे वर्ष
1.कुल पूंजी लागत1183300
2.कुल संचालन लागत186040342080
3.सम्पूर्ण लागत1369340342080
4.लाभ
4क.वर्मी-कम्पोस्ट

 

405000810000
4खकेंचुओं की बिक्री90000180000
4गकुल लाभ495000990000
5.शुद्ध लाभ(874340)647920
6डिस्काउंटिंग रेट-15 %
7पी वी सी—रु.2893538
8पी वी बी – रु.3655654
9एन पी बी- रु.76211610
10बी सी आर- रु. १.२२६
11आई आर आर- 34 %

वर्मी-कंपोस्टिंग यूनिट (200 टीपीए)

चुकौती अनुसूची

कुल वित्तीय खर्च : 1338132 (माना कि 13.50 लाख )

(पहले वर्ष के लिए पूंजी लागत+दो चक्रों का संचालन लागत + लीज रेंट)

बैंक ऋण : 1022500 337500

ब्याज दर : 13 %

वर्षबकाया ऋणशुद्ध आयमूलधनब्याजकुल निर्गमशुद्ध सरप्लस
1102250045658475000131625206625249959
2937500647920160000121875281875366045
3777500647920180000102075281075366845
459750064792020000077675277675370245
539750064792022000051675271675376245
617750064792017750023075200575447345

 

पहले वर्ष का शुद्ध आय = पहले वर्ष का कुल आय – एक चक्र का संचालन लागत + बीमा एवं लीज [क्योंकि दो संचालन चक्र एवं लीज रेंट को पूंजीकृत किया गया है। ]

वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प

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वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन देशी खाद का श्रेष्ठ विकल्प
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जीरा उत्पादन की उन्नत तकनीकी

Advanced technology of cumin production जीरा उत्पादन की उन्नत तकनीकी

सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी

Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी

अच्छी निर्यात मांग के कारण कीमतें बढ़ने के बाद मुनाफावसूली से जीरा में गिरावट आई

अच्छी निर्यात मांग के कारण कीमतें बढ़ने के बाद मुनाफावसूली से जीरा में गिरावट आई Jeera dropped on profit booking after prices rose due to good export demand

देवली टोंक कृषि मंडी आज के भाव

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आज के रायसिंहनगर कृषि मंडी भाव

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आज के गंगानगर मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के बारां कृषि मंडी भाव

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आज के बीकानेर मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के मेड़ता मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के फलोदी मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के ब्यावर मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के किशनगढ़ मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के सुरतगढ़ कृषि मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के भगत की कोठी मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के जोधपुर मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के डेगाना मंडी के भाव 10 जून 2023

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आज के नोहर मंडी के भाव 10 जून 2023

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राजस्थान की महत्वपूर्ण मंडियों के भाव

🌾 आज 20 मई के भाव ☘️ श्री विजयनगर मंडी के भाव सरसों 4200 से 4630, गेहूं 2050 से 2280, नरमा 7500 से 7840, ग्वार 5100 से 5301, बाजरी 2000 से 2200, मुंग 6800 से 7700, जौ 1600 से 1850, चना 4500 से 4680, कपास 8000 से 8200☘️ अनूपगढ़ मंडी के भाव सरसों 4000 से 4650, ग्वार 5000 से 5265, नरमा 7200 से 7881, मुंग 7000 से 7880, गेहूं 1980 से 2260, चना 4500 से 4760, बाजरी 2100 से 2150, कपास 7500 से 8100☘️ ऐलनाबाद मंडी का भाव नरमा 7500 से 7800, सरसों 4000 से 4741, ग्वार 4900 से 5290, कनक 2150 से 2345, अरिंड 5700 से 6100, चना 4400 से 4700, मुंग 6500 से 7800☘️ आदमपुर मंडी का भाव नरमा 7500 से 7700, सरसों 4200 से 4850, ग्वार 5000 से 5311,गेहूं 2060 से 2300,जौ 1650 से 1800 🌾 अपडेट के लिए पढते रहे AGRICULTUREPEDIA

आज के ग्वार भाव

🌾 आज 20 मई ग्वार के भाव मेड़ता मंडी ग्वार का भाव : 5050 से 5530 डेगाना मंडी ग्वार का भाव : 4500 से 5480 नागौर मंडी ग्वार का भाव : 4800 से 5450 नोखा मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5480 बीकानेर मंडी ग्वार का भाव : 5400 से 5460 बिलाड़ा मंडी ग्वार का भाव : 5200 से 5400 जोधपुर मंडी ग्वार का भाव : 4800 से 5465 फलोदी मंडी ग्वार का भाव : 4900 से 5451 ओसियां मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5460 किशनगढ़ मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5370 ब्यावर मंडी ग्वार का भाव : 4900 से 5441 बिजयनगर मंडी ग्वार का भाव : 4800 से 5430 भगत की कोठी मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5420 नोहर मंडी ग्वार का भाव : 5400 से 5460 सूरतगढ़ मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5450 श्रीगंगानगर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5651 रायसिंहनगर मंडी ग्वार का भाव : 5350 से 5501 आदमपुर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5480 गोलूवाला मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5450 अनूपगढ़ मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5460 पदमपुर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5440 करणपुर मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5435 ऐलनाबाद मंडी ग्वार का भाव : 5100 से 5466 गजसिंहपुर मंडी ग्वार का भाव : 5200 से 5435 बारां मंडी ग्वार का भाव : 5000 से 5435 🌾 अपडेट के लिए पढते रहे AGRICULTUREPEDIA
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