Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी :- सौंफ मसाले की एक प्रमुख फसल है। इसका उपयोग औषधि के रुप में भी किया जाता है। भारतवर्ष में सौंफ की खेती मुख्यतः राजस्थान, गुजरात तथा उत्तरप्रदेश में होती है। सौंफ एपियेसी परिवार से संबंधित है। इस वार्षिक फसल का मूल स्थान यूरोप है। इसके बीज सुखाकर मसाले के तौर पर प्रयोग किए जाते हैं। सौंफ फाइबर, विटामिन सी और पोटाश्यिम का मुख्य स्त्रोत है। यह मांस व्यंजन , सूप आदि को स्वादिष्ट बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां सलाद पर गार्निश के लिए भी प्रयोग किया जाता है। Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
सौंफ की औषधिय विशेषताएं भी हैं। इसे पाचन, कब्ज के उपचार, डायरिया, गले का दर्द और सिरदर्द के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी खेती रबी फसल के तौर पर की जाती है। भारत में राज्यस्थान, आंध्र प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा मुख्य सौंफ उत्पादक राज्य है।
उन्नत किस्में –
- आर. एफ. 125 (2006) – इस किस्म के पौधे कम ऊंचाई के होते हैं । जिसका पुष्पक्रम संधन तथा लम्बे सुडौल एवं आकर्षक दानों युक्त होता है यह किस्म शीघ्र पकने वाली है इसकी औसत उपज 17 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है ।
- आर.एफ. 143 (2007) इस किस्म के पौधे सीधे एवं ऊँचाई 116–118 सेमी होती है। जिस पर 7-8 शाखाएं निकली हुई होती है। इसका पुष्पक्रम संधन होता है तथा प्रति पौधा अम्बल की संख्या 23-62 होती है। यह किस्म 140 – 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है इसकी औसत उपज 18 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है । इसमें वाष्पशील तेल अधिक (1.87 प्रतिशत) होता है।
- आर.एफ. 101 (2005 ) – यह किस्म दोमट एवं काली कपास वाली भूमियों के लिये उपयुक्त है। यह 150-160 दिन में पक जाती है। पौधे सीधे व मध्यम ऊंचाई वाले होते हैं । इसकी औसत उपज क्षमता 15-18 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है। इसमें वाष्पशील तेल की मात्रा भी अधिक (1.2 प्रतिशत) होती है। इस किस्म में रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता अधिक तथा तेला कीट कम लगता है ।
- Gujrat Fennel 1: यह किस्म 255 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म सूखे को सहनेयोग्य हैं इसकी औसतन पैदावार 6.6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
- RF 35: यह किस्म लंबी और 225 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म पत्तों के धब्बा रोग और शूगरी रोग की प्रतिरोधक है। इसकी औसतन पैदावार 5.2 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
- CO 1: यह किस्म मध्य लंबी और 220 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी खेती खारी और पानी रोकने वाली ज़मीनों में भी की जा सकती है। इसकी औसतन पैदावर 3 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
सौंफ की खेती में ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बातें
- सौंफ की खेती खरीफ एवं रबी दोनों ही मौसम में की जा सकती है। लेकिन रबी का मौसम सौंफ की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।
- खरीफ में इसकी बुवाई जुलाई माह में तथा रबी के सीजन में इसकी बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।
- मसाला फसल संसोधन केंद्र जगुदन के अनुसार सौंफ की खेती करते समय 4 से 5 किलो /हेक्टेयर के हिसाब से बीज की बुवाई करनी चाहिए।
- बीजों को उपचारित करके ही बोना चाहिए क्योंकि सौंफ की फसल जिससे इसका अच्छा उत्पादन मिल सके।
- बीज को बुवाई पहले फफूंद नाशक दवा (कार्बेन्डाजिम अथवा केप्टान से प्रति 2.5 से 3 ग्राम /प्रति किलो बीज) से अलावा सौंफ के बीज को ट्राईकोडरमा (जैविक फफूंद नाशक प्रति 8 से 10 ग्राम/प्रति किलो बीज) से बीज को आठ घंटे उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए।
- कार्यक्षम सिंचाई हेतु टपक सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करना जरूरी है। Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
- सौंफ की रबी की फसल में टपक पद्धति द्वारा सिंचाई करने के लिए 90 से.मी के अन्तराल में दो लेटरल और 60 से.मी अन्तराल के दो इमिटर, लगभग 1.2 किलो / वर्ग मीटर के दबाव वाली एवं 4 लीटर प्रति घंटा पानी के डिस्चार्ज का इस्तेमाल करना चाहिए।
जलवायु –
यह शरद ऋतु में बोयी जाने वाली फसल है। लेकिन सौंफ फूल आने के समय पाले से प्रभावित होती है, इसलिए इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये । शुष्क एवं सामान्य ठण्डा मौसम विशेषकर जनवरी से मार्च तक इसकी उपज व गुणवत्ता के लिये बहुत लाभदायक रहता है। फूल आते समय, लम्बे समय तक अधिक बादल या अधिक नमी से बीमारियों के प्रकोप को बढ़ावा मिलता है ।
भूमि एवं खेत की तैयारी –
सौंफ की खेती बलुई मिट्टी को छोड़कर प्रायः सभी प्रकार की भूमि में, जिसमें जीवांश पर्याप्त मात्रा में हो, की जा सकती है। लेकिन अच्छी पैदावार के लिये जल निकास की पर्याप्त सुविधा वाली, चूनायुक्त, दोमट व काली मिट्टी उपयुक्त होती है। भारी एवं चिकनी मिट्टी की अपेक्षा दोमट मिट्टी अधिक अच्छी रहती है । Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
अच्छी तरह से जुताई करके 15 से 20 सेन्टीमीटर गहराई तक खेत की मिट्टी को जुताई करके भुर भुरी बना लेना चाहिये। खेत की तैयारी के समय पर्याप्त नमी न हो तो पलेवा देकर खेत की तैयारी करनी चाहिये। जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करके सिंचाई की सुविधानुसार क्यारियां बनानी चाहिये ।
खाद व उर्वरक –
फसल की अच्छी बढ़वार के लिये भूमि में पर्याप्त मात्रा में जैविक पदार्थ का होना आवश्यक है । यदि इसकी उपयुक्त मात्रा भूमि में न हो, तो 10 से 15 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर खेत की तैयारी से पहले डाल देना चाहिये ।
इसके अतिरिक्त 90 किलो नाइट्रोजन एवं 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिये। 30 किलो नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की पूर्ण मात्रा खेत की अन्तिम जुताई के साथ ऊरकर देना चाहिये। शेष नत्रजन को दो भागों में बांट कर 30 किलो बुवाई के 45 दिन बाद एवं शेष 30 किलो नाइट्रोजन फूल आने के समय फसल की सिंचाई के साथ देवें Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 4-6 किलोग्राम प्रति एकड़ में डालें। फासफोरस की खाद का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें। यदि जांच में कमी आती है तो ही इसका प्रयोग करें।
जैविक पोषक तत्व प्रबन्धन – सौंफ में जैविक पोषक तत्व प्रबन्धन के लिए शत-प्रतिशत सिफारिश की गई नत्रजन की मात्रा गोबर की खाद द्वारा तथा साथ में जैव उर्वरक (एजेटोबेक्टर व फास्फोरस विलयकारी जीवाणु 5 कि. ग्राम प्रति हेक्टेयर), 250 कि. ग्राम जिप्सम, 250 कि. ग्राम तुम्बा की खली व सिफारिश की गई नत्रजन की 50 प्रतिशत मात्रा फसल अवशेष प्रति हेक्टेयर व फसल बचाव के लिए नीम आधारित उत्पाद एन्टोमोफेगस फफूंद अथवा बायोपेस्टीसाइड अथवा वानस्पतिक उत्पाद अथवा गौशाला उत्पाद एवं प्रीडेटर का उपयोग किया जा सकता है।
बिजाई का समय
लंबे समय की फसल होने के कारण इसकी बिजाई अक्तूबर के दूसरे पखवाड़े में पूरी कर लें। अच्छी उपज के लिए देरी से बिजाई करने पर परहेज़ करें।
फासला
बारानी हालातों में दो पंक्तियों में फासला 45 सैं.मी. और दो फसलों में 10 सैं.मी. का फासला होना चाहिए।
बीज की गहराई
3-4 सैं.मी. की गहराई में बीज बोने चाहिए।
बिजाई का ढंग
सौंफ की बिजाई सीधे तौर पर की जाती है। कुछ क्षेत्रों में इसकी पहले पनीरी लगाई जाती है और बाद में मुख्य खेत में रोपण कर दिया जाता है।
बीज की मात्रा एवं बुवाई –
सौंफ के लिये 8-10 किलोग्राम स्वस्थ बीज प्रति हैक्टेयर बुवाई हेतु पर्याप्त होता है । बुवाई अधिकतर छिटकवां विधि से की जाती है तथा निर्धारित बीज की मात्रा, एक समान छिटक कर हल्की दंताली चलाकर या हाथ से मिट्टी में मिला देते हैं। लेकिन सौंफ की बुवाई रोपण विधि द्वारा या सीधे कतारों में भी की जाती है। सीधी बुवाई के लिये 8-10 किलो बीज एवं रोपण विधि में 3-4 किलो बीज की प्रति हैक्टेयर आवश्यकता होती है । रोपण विधि से बुवाई के लिये जुलाई-अगस्त में 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में पौध शैया लगाई जाती है तथा सितम्बर में रोपण किया जाता है। इसकी बुवाई मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक की जाती है ।
बुवाई 40-50 सेन्टीमीटर के फासले पर कतारों में हल के पीछे कूड़ में 2-3 सेन्टीमीटर की गहराई पर करें। पौध को, पौधशाला में सावधानी पूर्वक उठायें, जिससे जड़ों को नुकसान नहीं हो । रोपण दोपहर बाद गर्मी कम होने पर करें तथा रोपण के बाद तुरन्त सिंचाई करें | सीधी बुवाई में, बुवाई के 7-8 दिन बाद दूसरी हल्की सिंचाई करें, जिससे अंकुरण पूर्ण हो जाये । Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
बीजोपचार एवं बुवाई का समय बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डेजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोयें । इसकी बुवाई का उपयुक्त समय मध्य सितम्बर है ।
सिंचाई –
सौंफ को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है । बुवाई के समय खेत में नमी कम हो तो बुवाई के तीन चार दिन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिये, जिससे बीज जम जाये । सिंचाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि पानी का बहाव तेज न हो अन्यथा बीज बह कर किनारों पर इकट्ठे हो जायेंगे। दूसरी सिंचाई बुवाई के 12-15 दिन बाद करनी चाहिये, जिससे बीजों का अंकुरण पूर्ण हो जाये। इसके बाद सर्दियों में 15-20 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिये । फूल आने के बाद फसल को पानी की कमी नहीं होनी चाहिये । Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
निराई-गुड़ाई –
सौंफ के पौधे जब 8-10 सेन्टीमीटर के हो जायें तब गुड़ाई करके खरपतवार निकाल दें। गुड़ाई करते समय जहां पौधे अधिक हों, वहां से कमजोर पौधों को निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 20 सेन्टीमीटर कर दें जिससे बढ़वार अच्छी हो। इसके बाद समय-समय पर आवश्यकतानुसार खरपतवार निकालते रहें । फूल आने के समय पौधों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देवें जिससे कि तेज हवा से पौधे नहीं गिरे।
सौंफ में एक किलो पेन्डीमिथेलिन सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर 750 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 1 से 2 दिन बाद छिड़काव करके भी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
प्रमुख कीट एवं व्याधियां –
- मोयला, पर्णजीवी (थ्रिप्स) एवं मकड़ी (बरुथी) – मोयला पौधे के कोमल भाग से रस चूसता है तथा फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। थ्रिप्स कीट बहुत छोटे आकार का होता है तथा कोमल एवं नई पत्तियों से हरा पदार्थ खुरचकर खाता है जिससे पत्तियों पर धब्बे दिखाई देने लगते हैं तथा पत्ते पीले होकर सूख जाते हैं। मकड़ी छोटे आकार का कीट है जो पत्तियों पर घूमता रहता है व रस चूसता है जिससे पौधा पीला पड़ जाता है ।
- नियंत्रण हेतु डाईमिथोएट 30 ई सी या मैलाथियॉन 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या एसीटामाप्रिड 20 प्रतिशत एसपी का 100 ग्राम प्रति हेक्टर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़कना चाहिये । यदि आवश्यक हो तो यह छिड़काव 15-20 दिन बाद दोहरायें ।
- छाछ्या (पाउडरी मिल्ड्यू) – रोग के लगने पर शुरू में पत्तियों एवं टहनियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है जो बाद में पूर्ण पौधे पर फैल जाता है। नियंत्रण हेतु 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर गंधक के चूर्ण का भुरकाव करना चाहिये या डाइनोकेप एल सी 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कना चाहिये। आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव दोहरायें ।
- जड़ व तना गलन – रोग के प्रकोप से तना नीचे से मुलायम हो जाता है व जड़गल जाती है। जड़ों पर छोटे बड़े काले स्कलेरोशिया दिखाई देते हैं ।
- नियंत्रण हेतु बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेण्डेजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करनी चाहिये या कैप्टान 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से भूमि को उपचारित करना चाहिये ।
- चेपा : यदि इसका हमला दिखे तो डाइमैथोएट 30 ई सी 2 मि.ली या मिथाइल डैमेटोन 25 ई सी 2 मि.ली को प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
कटाई –
सौंफ के दाने गुच्छों में आते हैं। एक ही पौधे के सब गुच्छे एक साथ नहीं पकते हैं । अतः कटाई एक साथ नहीं हो सकती है। जैसे ही दानों का रंग हरे से पीला होने लगे गुच्छों को तोड़ लेना चाहिये। सौंफ की उत्तम पैदावार के लिये फसल को अधिक पककर पीला नहीं पड़ने देना चाहिये। सूखते समय बार-बार पलटते रहना चाहिये वरना फफूंद लगने की सम्भावना रहती है। उत्तम किस्म की चबाने (खाने) के रूप में काम आने वाली सौंफ पैदा करने के लिए, जब दानों का आकार पूर्ण विकसित दानों की तुलना में आधा होता है |
इस समय छत्रकों की कटाई कर साफ जगह पर छाया में फैलाकर सुखाना चाहिये। इस विधि से कटाई करने से सुप्रसिद्ध लखनऊ – 1 किस्म की सौंफ प्राप्त होती है। बुवाई हेतु बीज प्राप्त करने के लिये मुख्य छत्रकों के दाने जब पूर्णतया पककर पीले पड़ने लगे तभी काटना चाहिये । Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
उपज –
सौंफ को अच्छी तरह से खेती की जाये तो 10-15 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर तक पूर्ण विकसित एवं हरे दाने वाली सौंफ की उपज प्राप्त की जा सकती है । साधारणतया 5-7.5 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर महीन किस्म की सौंफ आसानी से पैदा की जा सकती है।
भण्डारण
सौंफ का भण्डारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उसे नमी से बचाया जा सके । गोदामों में बोरों को रखने से पहले नीचे लकड़ी के फन्टे लगाने चाहिए । बोरों की दूरी दीवार से 50-60 सेमी. रखनी चाहिए । कीटनाशक का उपयोग कभी भी नहीं करना चाहिए । विशेषज्ञों की राय से धुआं देकर कीटों से बचाना चाहिए । लम्बे समय तक भण्डारित करने के लिए प्लास्टिक लगे बोरी में भरकर सुरक्षित स्थान पर भण्डारित करना चाहिए । व्यापारिक स्तर पर इसे कोल्ड स्टोरेज में भी रखा जाता है। Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
Improved Cultivation of Fennel / सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी से सम्बंधित FAQ
Q1: सौंफ के क्या फायदे हैं?
Ans: सौंफ में फाइबर, पोटेशियम, फोलेट, विटामिन सी, विटामिन बी -6 और फाइटोन्यूट्रिएंट सामग्री, कोलेस्ट्रॉल की कमी के साथ मिलकर, सभी हृदय स्वास्थ्य का समर्थन करते हैं। सौंफ में महत्वपूर्ण मात्रा में फाइबर होता है। फाइबर हृदय रोग के जोखिम को कम करता है क्योंकि यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल की कुल मात्रा को कम करने में मदद करता है।
Q2: सौंफ की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है ?
Ans: सौंफ की खेती बलुई मृदा को छोड़कर प्रायः सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है। अच्छे जल निकास वाली चूनायुक्त मृदा में भी इसकी पैदावार अच्छी होती है। मिट्टी की पी एच 6.5 से 8 तक होनी चाहिए।
Q3: सौंफ को बढ़ने में कितना समय लगता है?
Ans: बुवाई से लेकर कटाई योग्य आकार तक लगभग 65 दिन लगते हैं।
Q4: सौंफ की खेती किस मौसम में की जाती हैं?
Ans: सौंफ की खेती खरीफ एवं रबी दोनों ही मौसम में की जा सकती है। लेकिन रबी का मौसम सौंफ की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। खरीफ में इसकी बुवाई जुलाई माह में तथा रबी के सीजन में इसकी बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।
Q5: सौंफ के बीजों का अंकुरण होने में कितना समय लगता हैं?
Ans: सौंफ के बीज 8-14 दिनों में अंकुरित हो जाएंगे। इसके लिए मिट्टी को नम रखें और इसे पूरी तरह से सूखने न दें।
Q6: सौंफ का उपयोग चिकित्सकीय रूप से किस लिए किया जाता है?
Ans: सौंफ का उपयोग विभिन्न पाचन समस्याओं के लिए किया जाता है, जिसमें नाराज़गी, आंतों की गैस, सूजन, भूख न लगना और शिशुओं में पेट का दर्द शामिल है। इसका उपयोग ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण, खांसी, ब्रोंकाइटिस, हैजा, पीठ दर्द, बिस्तर गीला करना और दृश्य समस्याओं के लिए भी किया जाता है।
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