अधिक उत्पादन के लिए किसान इस तरह करें गेहूं की उन्नत खेती
विश्व भर में, भोजन के लिए उगाई जाने वाली धान्य फसलों में मक्का के बाद गेहूं दूसरी सबसे ज्यादा उगाई जाने वाले फसल है, धान का स्थान गेहूं के ठीक बाद तीसरे स्थान पर आता है। देश में गेहूं का सबसे अधिक उत्पादन छह राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में होता है । देश के कुल खाद्यान उत्पादन में गेहूं का योगदान लगभग 37 प्रतिशत है | गेहूं में प्रोटीन की मात्रा अन्य आनाजों की तुलना में सबसे अधिक होती है इसलिए खाद्यान के रूप में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है और इसकी मांग दुनियाभर में रहती है |
निरंतर बढती आबादी की मांग को पूरा करने के लिए गेहूं का उत्पादन और उत्पादकता को लगातार बढाना होगा | उत्पादन बढाने के लिए गेहूं को सही समय पर सिंचाई की आवश्यकता होती है | सर्दी के मौसम में देश में बारिश न के बराबर होती है जिसके चलते किसानों को सिंचाई के लिए अन्य संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है | ऐसे में देश के भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के विभन्न संस्थानों के वैज्ञानिकों के प्रयास से ऐसी किस्में विकसित की गई है | भारत में गेहूं उत्पादन में वृद्धि एवं गुणवत्ता के लिए करनाल में भारतीय गेहूं एवं जो अनुसन्धान केंद्र स्थापित किया गया है | बेहतर गेहूं उत्पादकता के लिए उन्नत किस्मों के साथ-साथ नई कृषि पद्धतियों को अपनाकर कुशल आदान प्रबंधन करने से लागत कम होगी | नीचे किसान समाधान आपके लिए गेहूं की नवीनतम तकनीक की जानकारी लेकर आया है |
गेहूं उत्पादन के लिए खेती की तैयारी
अधिकांश किसान धान के बाद ही ही गेहूं की बुआई अपने खेतों में करते हैं | अतः गेहूँ की बुआई में बहुधा देर हो जाती है | हम पहले से यह निश्चित कर लेना होगा की खरीफ में धान की कौन से प्रजाति का चयन करे रबी में उसके बाद गेहूँ की कौन से प्रजाति बोयें | गेहूँ की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए धान की समय से रोपाई आवश्यक हैं जिससे गेहूँ के लिए खेत अक्टूबर माह में खाली हो जायें | दूसरी बात ध्यान देने योग्य यह है कि धान में पड़लिंग में लेवा के कारण भूमि कठोर हो जाती हैं | भारी भूमि में पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई के बाद डिस्क हैरो से दो बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाकर ही गेहूँ की बुआई करना उचित होगा | डिस्क हैरो के प्रयोग से धान के ठुंठ छोटे-छोटे टुकड़ों में कट जाते हैं | इन्हे शीघ्र सडाने हेतु 15-20 किग्रा. नत्रजन (यूरिया के रूप में) प्रति हेक्टर खेत को तैयार करते समय पहली जुताई पर अवश्य दे देना चाहिए | ट्रेक्टर चालित रोटावेटर द्वारा एक ही जुताई में खेत पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है |
भारतीय कृषि विज्ञानिकों के द्वारा अलग-अलग मिट्टी एवं जलवायु क्षेत्रों के अनुसार कई किस्में विकसित की गई है किसान भाई अपने क्षेत्र के अनुसार उन गेहूं की सभी विकसित किस्मों की जानकारी अपने जिले में स्थित कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से प्राप्त कर सकते हैं | देश में गेहूं में लगने वाले विभन्न रोगों से बचाव के लिए बहुत सी अवरोधी किस्में भी विकसित की गई है | नीचे कुछ विकसित किस्में एवं उनकी विशेषताएं दी जा रही हैं | किसान भाई अपने क्षेत्र के अनुसार इन किस्मों का चयन कर सकते हैं |
गेहूं की उन्नत एवं विकसित किस्में |
किस्मों की विशेषताएं |
देवा(के.-9107)
वर्ष–1996 जारी
|
उत्पादकता 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130-135 दिन, पौधें की ऊँचाई – 105-110 सेमी.,रतुआ, झुलसा एवं करनाल बंट के लिए अवरोधी | |
के.-0307
वर्ष–2007 जारी |
उत्पादकता 55–60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 125-100 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-95 सेमी., रतुआ, झुलसा एवं करनाल बंट के लिए अवरोधी | |
एच.पी.-1731(राजलक्ष्मी)
वर्ष–1995 जारी |
उत्पादकता 55–60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130-140 दिन, पौधें की ऊँचाई- 85-96 सेमी. रतुआ,झुलसा एवं करनाल बंट के लिए अवरोधी | |
नरेन्द्र गेहूँ –1022
वर्ष –1998 जारी |
उत्पादकता 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 135-140 दिन, पौधें की ऊँचाई- 85-95 सेमी. रतुआ, झुलसा एवं करनाल बंट के लिए अवरोधी | |
उजियार (के.-9006)
वर्ष–1998 जारी |
उत्पादकता 50–55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130-135 दिन, पौधें की ऊँचाई – 105-110 सेमी. रतुआ, झुलसा एवं करनाल बंट के लिए अवरोधी | |
पूसा व्हीट 3237 (एच.डी.3237)
वर्ष–2029 जारी |
उत्पादकता 48.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 145 दिन, पौधें की ऊँचाई – 105-110 सेमी. पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी रोग एवं अच्छी | |
एच.यू.डब्लू.-468
वर्ष–1999 जारी (राज्य – बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश) |
उत्पादकता 55–60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130-140 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85–95 सेमी. |
डी.एल.-784–3 (वैशाली)
वर्ष –1993 जारी |
उत्पादकता 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130-135 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85–90 सेमी. |
यू.पी.-2382
वर्ष – 1999 जारी |
उत्पादकता 60–65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 135-140 दिन, पौधें की ऊँचाई – 95–100 सेमी. |
एच.पी.-1761
वर्ष–1997 जारी |
उत्पादकता 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 135-140 दिन, पौधें की ऊँचाई- 90-95 सेमी. |
डी.बी.डब्लू.-17
वर्ष – 2007 जारी (राज्य – दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड) |
उत्पादकता 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 125-135 दिन, पौधें की ऊँचाई – 95-100 सेमी. रतुआ अवरोधी | |
एच.यू.डब्लू.-510
वर्ष–1998 जारी |
उत्पादकता 50–55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 115-120 दिन, पौधें की ऊँचाई – 95-100 सेमी. |
पी.बी.डब्लू.-443
वर्ष – 2000 जारी (राज्य–असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश, ओंडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल) |
उत्पादकता 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 125-135 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-95 सेमी. रतुआ अवरोधी |
पी.बी.डब्लू.-343
वर्ष–1997 जारी |
उत्पादकता 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 125-140 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-95 सेमी. |
एच.डी.-2824
वर्ष–2003 जारी (राज्य – असम, बिहार, झारखण्ड, ओंडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल) |
उत्पादकता 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 125-135 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-100 सेमी. रतुआ अवरोधी |
सी.बी.डब्लू.-38
वर्ष – 2009 जारी |
उत्पादकता 44.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 112-129 दिन, पौधें की ऊँचाई – 80-105 सेमी. ताप सहिष्णु, चपाती एवं ब्रेड योग्य | आयरन एवं जिंक की अधिकता | |
के.-1006
वर्ष–2025 जारी |
उत्पादकता 47.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 88-90 सेमी. रतुआ एवं झुलसा अवरोधी | |
के.-607 (ममता)
वर्ष–2024 जारी |
उत्पादकता 42.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. रतुआ एवं झुलसा अवरोधी | |
डी.बी.डब्लू.-187 (करन वन्दना)
वर्ष – 2029 जारी |
उत्पादकता 48.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. पीला एवं भूरे रस्ट अवरोधी (बायो-फोर्टीफाईड प्रजाति-आयरन 43.1 प्रतिशत) |
पूसा यशस्वी (एच.डी.-3226)
वर्ष – 2029 जारी |
उत्पादकता 57.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 142 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. स्ट्रिप, लीफ एवं करनाल बंट तथा ब्लेक रस्ट, पाउडरी मिल्ड्यू, फ्लेग स्मट एवं फुटराट ले प्रति उच्च अवरोधी | |
के.आर.एल.283
वर्ष – 2028 जारी |
उत्पादकता 20.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 128-133 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. लीफ ब्लाइट, करनाल बंट एवं हिल बंट के प्रति अवरोधी | |
एच.आई.8759 (पूसा तेजस)
वर्ष – 2027 जारी |
उत्पादकता 56.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 117 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. उच्च प्रोटीन, जिंक एवं आयरन, पास्ता बनाने वाली प्रजाति | (बायो- फोर्टीफाईड प्रजाति- प्रोटीन 12.5 प्रतिशत, आयरन 41.1 पीपीएम, जिंक 42.8 पीपीएम) | |
एच.डी.3171
वर्ष – 2027 जारी |
उत्पादकता 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130–140 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. काला, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी, उच्च जिंक एवं आयरन (बायो- फोर्टीफाइड प्रजाति-जिंक 47.1 पीपीएम) |
पी.बी.डब्लू.-660
वर्ष–2026 जारी |
उत्पादकता 35.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 134-172 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी, अच्छी चपाती वाली | |
आर.ए.आई.-4238
वर्ष – 2026 जारी |
उत्पादकता 45.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 114 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. अच्छी चपाती वाली | |
यू.पी.-2784
वर्ष – 2026 जारी |
उत्पादकता 44.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120–130 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. पीला, भूरा रस्ट अवरोधी तथा लीफ ब्लाइट मध्यम अवरोधी | |
एच.आई.8737 (पूसा अनमोल)
वर्ष – 2025 जारी |
उत्पादकता 53.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. काला एवं भूरा रस्ट तथा करनाल बंट अवरोधी | |
डी.बी.डब्लू.107
वर्ष – 2025 जारी |
उत्पादकता 41.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 94-130 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. भूरा रस्ट अवरोधी तथा ताप सहिष्णु | |
एन.डब्लू.5054
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 47.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. भूरा रस्ट एवं फोलर ब्लाइट अवरोधी | |
एच.डी.3086 (पूसा गौतम)
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 54.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 143 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. पीले एवं भूरा रस्ट अवरोधी | |
एम.पी.3336 (जे.डब्लू.3336)
वर्ष – 2023 जारी |
उत्पादकता 44.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 107 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. ब्लेक एवं लीफ रस्ट सहिष्णु ब्रेड बनाने योग्य | |
डब्लू.1105 वर्ष – 2023 जारी
(राज्य – दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड) |
उत्पादकता 51.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 142 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. पीला रस्ट, लीफ ब्लाइट एवं पाउडरी मिल्ड्यू अवरोधी तथा ताप सहिष्णु | |
एच.आई.8713 (पूसा मंगल)
वर्ष – 2023 जारी (राज्य – छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य-प्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश) |
उत्पादकता 52.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 122 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. ड्युरम, क्षेत्रीय रोग अवरोधी | |
पी.बी.डब्लू.-644
वर्ष – 2022 जारी (राज्य – दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड) |
उत्पादकता 31.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 137-167 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. स्ट्रिप एवं लीफ रस्ट तथा लीफ ब्लाइट अवरोधी | चपाती योग्य | |
डी.पी.डब्लू.621-50 (पीबीडब्लू621 एवं डीबीडब्लू–50)
वर्ष–2021 जारी (राज्य – दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश) |
उत्पादकता 51.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 144 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. पीला एवं लीफ रस्ट अवरोधी | |
डब्लू.एच.डी.-943
वर्ष – 2021 जारी (राज्य – दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड) |
उत्पादकता 48.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 144 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. ड्युरम प्रजाति, पीला रस्ट अवरोधी, उच्च प्रोटीन | पास्ता बनाने योग्य | |
के.402
वर्ष – 2023 जारी |
उत्पादकता 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-88 सेमी. रतुआ, झुलसा अवरोधी |
डी.बी.डब्लू.-39
वर्ष – 2020 जारी (राज्य – असम, बिहार, झारखण्ड, ओंडिशा, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल) |
उत्पादकता 44.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 121–125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-105 सेमी. लीफ एवं स्ट्रिप रस्ट तथा लीफ ब्लाइट अवरोधी | बिस्किट एवं चपाती बनाने योग्य | |
एच.डी.2967
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 50.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 143 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-95 सेमी. रस्ट अवरोधी | |
पी.बी.डब्लू.-502
वर्ष – 2004 जारी (राज्य – हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश) |
उत्पादकता 45-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 126–134 दिन, पौधें की ऊँचाई – 80-90 सेमी. रस्ट अवरोधी | |
एन.डब्लू.-5054
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 122-124 दिन, पौधें की ऊँचाई – 100-105 सेमी. रस्ट एवं झुलसा अवरोधी | |
एच.डी.-3043
वर्ष–2022 जारी |
उत्पादकता 42.80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 143 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. लीफ एवं स्ट्रिप रस्ट अवरोधी, चपाती बनाने योग्य | |
डी.बी.डब्लू.-90
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 42.80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 121 दिन, पौधें की ऊँचाई – 76–105 सेमी. स्ट्रिप एवं लीफ रस्ट अवरोधी तथा ताप सहिष्णु | |
पी.बी.डब्लू.-1 जेड.एन.(एच.पी.बी.डब्लू.-02)
वर्ष – 2027 जारी |
उत्पादकता 51.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 141 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-100 सेमी. पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी, उच्च जिंक एवं आयरन (बायो-फोर्टीफाईड प्रजाति – आयरन 40 पीपीएम, जिंक 40.6 पीपीएम) |
डब्लू.बी.-2
वर्ष – 2027 जारी |
उत्पादकता 51.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-100 सेमी. पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी, उच्च जिंक एवं आयरन (बायो- फोर्टीफाईड प्रजाति-जिंक 42 पी.पी.एम., आयरन 40 पीपीएम) |
पी.बी.डब्लू.-723 (उन्नत पी.बी.डब्लू.-343)
वर्ष – 2027 जारी |
उत्पादकता 49.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 126–134 दिन, पौधें की ऊँचाई – 80-90 सेमी. पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी | |
जी.डव्लू.-366
जारी वर्ष- 2007 |
उत्पादकता 55-57 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110–115 दिन, |
एमपी 1106
जारी वर्ष-2003 |
उत्पादकता 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 115-120 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी | |
लोक-1
जारी वर्ष 1982 |
उत्पादकता 42-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 105-110 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी | |
जी.डव्लू.- 173
जारी वर्ष 1994 |
उत्पादकता 43-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 100-105 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी | |
डव्लू.एच- 1105
जारी वर्ष- 2023 दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड |
कोटा एवं उदयपुर को छोड़कर समस्त राजस्थान के सिंचित क्षेत्र के लिए पीली एवं भूरी रोली रोग रोधी., पकने की अवधि 135-142 दिन, प्राप्त उपज 48-50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर |
राज. 4073
|
सामान्य बुआई, गर्म जलवायु सहनशील, पकने की अवधि 120-130 दिन, प्राप्त उपज 55-60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर |
एच.डी.-3086 पूसा गौतमी
|
कोटा एवं उदयपुर खंड को छोड़कर समस्त राजस्थान के सिंचित क्षेत्र हेतु, पकने की अवधि 140-145 दिन, प्राप्त उपज 54-55 क्विंटल प्रति हैक्टेयर |
एच.डी.- 2967 | पकने की अवधि 135-140 दिन, प्राप्त उपज 48-51 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, सामान्य बुआई, करनाल बाँट व रोली रोधक किस्म |
राज. 4083
राजस्थान, कर्णाटक, महाराष्ट्र |
पकने की अवधि 115-118 दिन, प्राप्त उपज 40-45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, पछेती बुआई रोली रोधक |
राज. 4120
असम, बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान |
पकने की अवधि 117-124 दिन, प्राप्त उपज 48-58 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, सामान्य बुआई, रोली रोधक किस्म |
राज. 4079
राजस्थान |
पकने की अवधि 115-125 दिन, प्राप्त उपज 47-50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, गर्म तापक्रम सहनशीलता, रोली रोधक |
राज. 4238 | पकने की अवधि 115-120 दिन, प्राप्त उपज 40-48 क्विंटल प्रति हैक्टेयर,रोली, करनाल बंट रोधी, पछेती बुआई |
एच.आई. 8713 | पकने की अवधि 130-140 दिन, प्राप्त उपज 55-58 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, कठिया गेहूं, रोली रोधक किस्म |
गेहूं की किस्में |
गेहूं की किस्मों की विशेषताएं (विलम्ब से बुआई) |
डी.बी.डब्लू.-14
वर्ष–2002 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 108-128 दिन, पौधें की ऊँचाई – 70-95 सेमी. |
एच.यू.डब्लू.-234
वर्ष–1988 जारी |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-120 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. |
एच.आई.-1563
वर्ष–2021 जारी (राज्य – असम, बिहार, झारखण्ड, ओंडिशा, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल) |
उत्पादकता 37.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-115 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. लीफ रस्ट एवं लीफ ब्लाइट अवरोधी, चपाती, ब्रेड एवं बिस्किट योग्य प्रजाति, आयरन जिंक एवं कांपर की अधिकता | |
सोनाली एच.पी.-1633
वर्ष – 1992 जारी |
उत्पादकता 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 115-120 दिन, पौधें की ऊँचाई – 115-120 सेमी. | |
एच.डी.-2643 (गंगा)
वर्ष–1997 जारी |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-130 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-95 सेमी. |
के.-9162
वर्ष–2005 जारी (राज्य – उत्तरप्रदेश) |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-115 दिन, पौधें की ऊँचाई –90-95 सेमी. |
के.-9533
वर्ष – 2005 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 105-110 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. |
एच.पी.-1744
वर्ष – 1997 जारी |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-130 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-95 सेमी. | |
नरेन्द्र गेहूँ – 1024
वर्ष – 1998 जारी |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-115 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-100 सेमी. रतुआ एवं झुलसा अवरोधी | |
के.9423
वर्ष – 2005 जारी (राज्य – उत्तरप्रदेश) |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 85-100 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. | |
के.-7903
वर्ष – 2002 जारी |
उत्पादकता 30-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 85-100 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. | |
नरेन्द्र गेहूँ – 2036
वर्ष – 2002 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-115 दिन, पौधें की ऊँचाई – 80-85 सेमी. रतुआ अवरोधी | |
यू.पी.- 2425
वर्ष – 1999 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-95 सेमी. |
एच.डब्लू.-2045
वर्ष – 2002 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 115-120 दिन, पौधें की ऊँचाई – 95-100 सेमी. रतुआ झुलसा अवरोधी | |
नरेन्द्र गेहूँ – 1076
वर्ष – 2002 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-115 दिन, पौधें की ऊँचाई – 80-90 सेमी. रतुआ झुलसा अवरोधी | |
पी.बी.डब्लू.-373
वर्ष – 1997 जारी |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-135 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. |
डी.बी.डब्लू.-16
वर्ष – 2006 जारी (राज्य – दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश) |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 85-90 सेमी. |
ए.ए.आई.डब्लू.- 06
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-115 दिन, पौधें की ऊँचाई – 105-110 सेमी. लीफ रस्ट अवरोधी | |
एच.डी.-3059 (पूसा पछेती)
वर्ष – 2023 जारी |
उत्पादकता 39.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 157 दिन, पौधें की ऊँचाई – 93 सेमी. रस्ट अवरोधी, ताप सहिष्णु, उच्च प्रोटीन तथा ब्रेड, बिस्किट, चपाती योग्य | |
एच.डी.- 2985 (पूसा बंसत)
वर्ष – 2021 जारी |
उत्पादकता 35-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 105-110 दिन, पार्टीकल टाइप रोग अवरोधी | |
पी.बी.डब्लू.- 71
वर्ष – 2023 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 100-110 दिन, टाप अवरोधी | |
पी.बी.डब्लू.- 752
वर्ष 2029 जारी |
उत्पादकता 49.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 120 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी (बायो-फोर्टीफाईड प्रजाति-प्रोटीन 12.4%) |
पी.बी.डब्लू.-757
वर्ष – 2029 जारी |
उत्पादकता 36.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 104 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी (बायो-फोर्टीफाईड प्रजाति-जिंक 42.3 पीपीएम) |
डी.बी.डब्लू.-173
वर्ष – 2028 जारी |
उत्पादकता 47.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 122 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी तथा ताप सहिष्णु, प्रोटीन एवं आयरन में अधिकता | (बायो- फोर्टीफाईड प्रजाति-प्रोटीन 125 प्रतिशत, आयरन 40.7 पीपीएम) |
ए.ए.आई.डब्लू.-9
वर्ष – 2028 जारी |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110-115 दिन, लीफ रस्ट, लीफ ब्लाइट एवं लाजिंग एवं सैटिरिंग के प्रति अवरोधी | उच्च तापमान सहिष्णु | |
एच.डी. 3118 (पूसा वत्सला)
वर्ष – 2025 जारी |
उत्पादकता 41.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 109-120 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट के प्रति उच्च अवरोधी | |
डब्लू.एच.-1124
वर्ष – 2025 जारी |
उत्पादकता 42.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 123 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट अवरोधी एवं ताप सहिष्णु | |
डी.बी.डब्लू.-71
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 42.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 119 दिन, क्षेत्रीय रोंगों के प्रति अवरोधी एवं ताप सहिष्णु, उच्च प्रोटीन | |
डी.बी.डब्लू.-88
वर्ष – 2024 जारी |
उत्पादकता 54.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 143 दिन, पीला, भूरा रस्ट अवरोधी | |
एच.डी.-2985 (पूसा बसन्त )
वर्ष – 2021 जारी |
उत्पादकता 37.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 105-110 दिन, लीफ रस्ट एवं फोलियर ब्लाइट अवरोधी, बिस्किट एवं चपाती योग्य | |
एम.पी.—1203
वर्ष – 2009 जारी (राज्य – मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान) |
उत्पादकता 41.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 110 दिन, रोग अवरोधी एवं उच्च प्रोटीन | |
पी.बी.डब्लू.-590
वर्ष – 2009 जारी (राज्य – दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखण्ड) |
उत्पादकता 42.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 121 दिन, ताप सहिष्णु, लीफ रस्ट अवरोधी, उच्च प्रोटीन, चपाती योग्य | |
पूसा गेहूँ –111 (एच.डी.-2932)
वर्ष – 2008 जारी |
उत्पादकता 42.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 109 दिन, ब्लेक एवं भूरा रस्ट अवरोधी, उच्च आयरन जिंक | चपाती योग्य | |
के.आर.एल.-1-4
वर्ष – 1990 जारी |
उत्पादकता 30-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130–145 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-100 सेमी. |
के.आर.एल.-19
वर्ष – 2000 जारी (राज्य – बिहार, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, ओंडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल) |
उत्पादकता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 130-145 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-100 सेमी. |
के.-8434 (प्रसाद)
वर्ष – 2002 जारी |
उत्पादकता 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 135-140 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-95 सेमी. |
एन.डब्लू.-1067
वर्ष – 2005 जारी |
उत्पादकता 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 125-130 दिन, पौधें की ऊँचाई – 90-95 सेमी. रतुआ अवरोधी | |
के.आर.एल.-210
वर्ष – 2022 जारी (राज्य – असम, बिहार, दिल्ली, हरियाण, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, ओंडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड) |
उत्पादकता 33-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 112-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 65-70 सेमी. रतुआ अवरोधी | |
के.आर.एल.- 213
वर्ष – 2021 जारी (राज्य – असम, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, ओंडिशा, झारखण्ड, पंजाब, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखण्ड) |
उत्पादकता 32.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 117-125 दिन, पौधें की ऊँचाई – 60-72 सेमी. रतुआ अवरोधी (रस्ट) | |
एच.यू.डब्लू.-669 (मालवीय 669)
वर्ष – 2028 जारी |
उत्पादकता 24.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 132 दिन, सभी रस्ट एवं लीफ ब्लाइट के लिए अवरोधी | |
डब्लू.1142
वर्ष – 2025 जारी |
उत्पादकता 48.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकने की अवधि 150-156 दिन, पीला एवं भूरा रस्ट तथा सुखा एसवं लीजिंग के प्रति सहिष्णु | |
छत्तीसगढ़ के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्में
हर्षिता (HI – 1531), उर्जा (HP-2664), पूसा व्हिट-111(HD-2932), MP-1203, MPO(JW) , 1215 (MPO 1215), JW-3288, पूसा मंगल (HI 8713), MP 3336 (JW 3336)
हरियाणा के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्में
UP-2338, WH-896, श्रेष्ठ (HD-2687), UP-2425, KRL-1, PBW-396, WH-283, HD-2329, कुंदन (DL-153-2), RAJ-3077, WH-416, WH-542, DBW – 16, DBW-17, PBW-502, VL-GEHUN-832, WH-1021, PBW-550, PBW-590, MACS 6222, PDW 314, WHD-943, DPW 621-50(PBW 621 & DBW 50), WH-1080 , KRL-210, HD 3043, PBW 644, HD-2967, WH 1105, DBW-71, DBW 90, पूसा गौतमी (HD) 3086) DBW 88
बिहार के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्में
गंगा (HD-2643), मालवीय व्हिट -468 (HUW-468), PBW-443, HD-2733 (VSM, कौशाम्बी (HW-2045), HD-2307, HP-1493, HDR-77, सोनाली (HP-1633), शताब्दी (K-0307), HD 2733 (VSM), पूसा व्हिट-107 (HD-2888), DBW 14, नरेन्द्र व्हिट – 2036, MACS-6145, पूर्वा (HD 2824), RAJ-4120, DBW 39, पूसा प्राची (HI-1563), पूसा बसंत (HD 2985, KRL-210
झारखण्ड के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्में
कौशाम्बी (HW-2045), शताब्दी (K-0307), पूसा व्हिट-107 (HD-2888), DBW 14, नरेन्द्र व्हिट – 2036, MACS-6145, पूर्वा (HD 2824), RAJ-4120, DBW 39, पूसा प्राची (HI-1563), पूसा बसंत (HD 2985) दिल्ली के लिए
दिल्ली के लिए गेहूं की नई विकसित अनुशंसित किस्में
UP-2338 , श्रेष्ठ(HD-2687), UP-2425, KRL-19, PBW-396, HD-2329, WH-542, DBW – 16, WH-1021 , PBW-550, PBW-590, MACS 6222, PDW 314, WHD-943, DPW 621-50(PBW 621 & DBW 50), KRL-210, HD 3043, PBW 644, HD-2967, WH 1105, DBW-71, DBW 90, पूसा गौतमी (HD) 3086 ), DBW 88
गेहूँ की बुआई पर्याप्त नमी पर करना चाहिए | देर से पकने वाली प्रजातियों की बुआई समय से अवश्य कर देना चाहिए अन्यथा उपज में कमी हो जाती है | जैसे-जैसे बुआई में विलम्भ होता जाता है, गेहूँ की पैदावार में गिरावट की दर बढती चली जाती है | दिसम्बर से बुआई करने पर गेहूँ की पैदावार 3 से 4 कु./हे. एवं जनवरी में बुआई करने पर 4 से 5 कु./हे. प्रति सप्ताह की दर से घटती है | गेहूँ की बुआई सिडड्रिल से करने पर उर्वरक एवं बीज बचत की जा सकती है |
- जीरा उत्पादन की उन्नत तकनीकी
- सौंफ की उन्नत खेतीबाड़ी
- अधिक उत्पादन के लिए किसान इस तरह करें गेहूं की उन्नत खेती : गेहूं की वैज्ञानिक खेती
- असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की यह किस्में लगाकर इस तरह करें गेहूं की उन्नत खेती
- कम सिंचाई में अधिक पैदावार के लिए किसान करें कठिया Durum गेहूं की खेती
- ग्वार उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक
- चना उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक
- मसूर उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक
बीज दर एवं बीज शोधन :
लाइन में बुआई करने पर सामान्य दशा में 100 किग्रा. तथा मोटा दाना 125 किग्रा. प्रति है, तथा छिडकाव बुआई की दशा में सामान्य दाना 125 किग्रा. मोटा-दाना 150 किग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करना चाहिए | बुआई से पहले जमाव प्रतिशत अवश्य देख ले | राजकीय अनुसंधान केन्द्रों पर सुविधा नि:शुल्क उपलब्ध है | यदि अंकुरण क्षमता कम हो तो उसी के अनुसार बीज दर बढ़ा ले तथा यदि बीज प्रमाणित न हो तो उसका शोधन अवश्य करें | बीजों का कार्बाक्सिन, एजेटोवैक्टर व पी.एस.वी. से उपचारित कर बोआई करें | सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में रेज्ड वेड विधि से बुआई करने पर सामान्य दशा में 75 किग्रा. मोटा दाना 100 किग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करे |
- पंक्तियों की दुरी : सामान्य दशा में 18 सेमी. से 20 सेमी. एवं गहराई 5 सेमी. |
- विलाम्ब से बुआई की दशा में : 15 सेमी. से 18 सेमी. तथा गहराई 4 सेमी. |
विधि :
बुआई हल के पीछे कूंडो या फर्टीसीडड्रिल द्वारा भूमि की उचित नमी पर करें | पलेवा करके ही बोना श्रेयकर होता है यह ध्यान रहे की कल्ले निकलने के बाद प्रति वर्गमीटर 400 से 500 बालियुक्त पौधे अवश्य हों अन्यथा इसकी उपज पर कुप्रभाव पड़ेगा | विलम्ब से बचने के लिये पंतनगर जीरोट्रिल बीज व ड्रिल से बुआई करें | ट्रेक्टर चालित रोटो टिल ड्रिल द्वारा बुआई अधिक लाभदायक है | बुन्देलखण्ड (मार व कावर मृदा) में बिना जुताई के बुआई कर दिया जाय ताकि जमाव सही हो |
गेहूँ की मेड़ पर बुआई (बेड प्लान्टिंग) :
इस तकनीकी द्वारा गेहूँ की बुआई के लिए खेत पारम्परिक तरीके से तैयार किया जाता है और फिर मेड़ बनाकर गेहूँ की बुआई की जाती है | इस पद्धति में एक विशेष प्रकार की मशीन (बेड प्लान्टर) का प्रयोग नाली बनाने एवं बुआई के लिए किया जाता है | मेंडो के बीच की नालियों से सिंचाई की जाती है तथा बरसात में जल निकासी का काम भी इन्ही नालियों से होता है एक मेड़ पर 2 या 3 कतारों में गेहूँ की बुआई होती है | इस विधि से गेहूँ की बुआई कर किसान बीज खाद एवं पानी की बचत करते हुये अच्छी पैदावार ले सकते है | इस विधि में हम गेहूँ की फसल को गन्ने की फसल के साथ अन्त: फसल के रूप में ले सकते है इस विधि से बुआई के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है तथा अच्छे जमाव के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिये | इस तकनीक की विशेषतायें एवं लाभ इस प्रकार है |
- इस पद्धति में लगभग 25 प्रतिशत बीज की बचत की जा सकती है | अर्थात 30-32 किलोग्राम बीज एक एकड़ के लिए प्रयाप्त है |
- यह मशीन 70 सेंटीमीटर की मेड़ बनाती है जिस पर 2 या 3 पंक्तियों में बोआई की जाती है | अच्छे अंकुरण के लिए बीज की गहराई 4 से 5 सेंटीमीटर होनी चाहिये |
- मेड़ उत्तर-दक्षिण दिशा में होनी चाहिये ताकि हर एक पौधे को सूर्य का प्रकाश बराबर मिल सके |
- मशीन की कीमत लगभग 70,000 रूपये है |
- इस पद्धति से बोये गये गेहूँ में 25 से 40 प्रतिशत पानी की बचत होती है | यदि खेत में पर्याप्त नमी नहीं हो तो पहली सिंचाई बोआई के 5 दिन के अन्दर कर देनी चाहिये |
- पद्धति में लगभग 25 प्रतिशत नत्रजन भी बचती है अतः 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फस्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेर पर्याप्त होता है |
मेड़ पर बोआई द्वारा फसल विविधिकरण :
गेहूँ के तुरन्त बाद पुरानी मेंडो को पुनः प्रयोग करके खरीफ फसल में मूंग, मक्का, सोयाबीन, अरहर, कपास आदि की फसलों उगाई जा सकती है | इस विधि से दलहन एवं तिलहन की 15 से 20 प्रतिशत अधिक पैदावार मिलती है |
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना उचित होता है | बौने गेहूँ की अच्छी उपज के लिए मक्का, धान, ज्वार, बाजरा की खरीफ फसलों के बाद भूमि में 150:60:40 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से तथा विलम्ब से 80:40:30 क्रमश: नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए | सामान्य दशा में 120:60:40 किग्रा. नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश एवं 30 किग्रा. गंधक प्रति है. की दर से प्रयोग लाभकारी पाया गया है | जिन क्षेत्रों में डी.ए.पी. का प्रयोग लगातार किया जा रहा है उनमें 30 किग्रा. गंधक का प्रयोग लाभदायक रहेगा | यदि खरीफ में खेत परती रहा हो या दलहनी फसलें बोई गई हों तो नत्रजन की मात्रा 20 किग्रा. प्रति हेक्टर तक कम प्रयोग करें | अच्छी उपज के लिए 60 कुन्तल प्रति हे. गोबर की खाद का प्रयोग करें | यह भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने में मदद करती है |
लगातार धान-गेहूँ फसल चक्र वाले क्षेत्रों में कुछ वर्षों बाद गेहूँ की पैदावार में कमी आने लगती है | अतः ऐसे क्षेत्रों में गेहूँ की फसल कटने के बाद तथा धान की रोपाई के बीच हरी खाद का प्रयोग करें अथवा धान की फसल में 10-12 टन प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें | अब भूमि में जिंक की कमी प्रायः देखने में आ रही है | गेहूँ की बुआई के 20-30 दिन के मध्य में पहली सिंचाई के आस-पास पौधों में जिंक की कमी के लक्षण प्रकट होते हैं, जो निम्न हैं :
- प्रभावित पौधे स्वस्थ पौधों की तुलना में बौने रह जाते हैं |
- तीन चार पत्ती नीचे से पत्तियों के आधार पर पीलापन शुरू होकर उपर की तरफ बड़ता है |
- आगे चलकर पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे दिखते है |
खड़ी फसल में यदि जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 5 किग्रा. जिंक सल्फेट तथा 16 किग्रा. यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर से छिडकाव करें | यदि यूरिया की टापड्रेसिंग की जा चुकी है तो युरिया के स्थान पर 2.5 किग्रा. बुझे हुए चूने के पानी में जिंक सल्फेट घोलकर छिडकाव करें (2.5 किग्रा. बुझे हुए चुने को 10 लीटर पानी में सांयकाल डाल दे तथा दुसरे दिन प्रातः काल इस पानी को निथार कर प्रयोग करे और चुना फेंक दे) ध्यान रखें कि जिंक सल्फेट के साथ यूरिया अथवा बुझे हुए चुने के पानी को मिलाना अनिवार्य है | धान के खेत में यदि जिंक सल्फेट का प्रयोग बेसल ड्रेसिंग के रूप में न किया गया हो और कमी होने की आशंका हो तो 20-25 किग्रा/हे. जिंक सल्फेट की टाप ड्रेसिंग करें |
समय व विधि :
उर्वरकीय क्षमता बड़ाने के लिए उनका प्रजोग विभिन्न प्रकार की भूमियों में निम्न प्रकार से किया जाये :-
- दोमट या मटियार, कावर तथा मार :नत्रजन की आधी, फास्फेट व पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय कुंड़ो में बीज के 2-3 सेमी. नीचे दी गई नत्रजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई के 24 घण्टे पहले या ओट आने पर दे |
- बलुई दोमट राकड व पड़वा बलुई जमीन में नत्रजन की 1/3 मात्रा, फास्फेट तथा पोटाश की पूरी मात्रा को बुआई के समय कूंडो में बीज के नीचे देना चाहिए | शेष नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई (20-25 दिन) के बाद (क्राउन रूट अवस्था) तथा बची हुई मात्रा दूसरी सिंचाई के बाद देना चाहिए | (एसी) मिट्टियों में टाप ड्रेसिंग सिंचाई के बाद करना अधिक लाभप्रद होता है जहाँ केवल 40 किग्रा. नत्रजन तथा दो सिंचाई देने में सक्षम हो, वह भारी दोमट भूमि में सारी नत्रजन बुआई के समय प्लेसमेन्ट कर दें किन्तु जहाँ हल्की दोमट भूमि हो वहाँ नत्रजन की आधी मात्रा के समय (प्लेसमेन्ट) कूंडो में प्रयोग करे और शेष पहली सिंचाई पर टापड्रेसिंग करें |
आश्वस्त सिंचाई की दशा में :
सामान्यत: बौने गेहूँ अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए हल्की भूमि में सिंचाईयां निम्न अवस्थाओं में करनी चाहिए | इन अवस्थाओं पर जल की कमी का उपज पर भारी कुप्रभाव पड़ता है, परन्तु सिंचाई हल्की करे |
- पहली सिंचाई : क्राउन रूट-बुआई के 20-25 दिन बाद (ताजमुल अवस्था)
- दूसरी सिंचाई : बुआई के 40-45 दिन पर (कल्ले निकलते समय)
- तीसरी सिंचाई : बुआई के 60-65 दिन पर (दीर्घ संधि अथवा गांठे बनते समय)
- चौथीं सिंचाई : बुआई के 80-85 दिन पर (पुष्पावस्था)
- पाँचवी सिंचाई : बुआई के 100-105 दिन पर (दुग्धावस्था)
- छठी सिंचाई : बुआई के 115-120 दिन पर (दाना भरते समय)
दोमट या भारी दोमट भूमि में निम्न चार सिंचाईयां करके भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है परन्तु प्रत्येक सिंचाई कुछ गहरी (8 सेमी.) करें |
- पहली सिंचाई बोने के 20-25 दिन बाद |
- दूसरी सिंचाई पहली के 30 दिन बाद |
- तीसरी सिंचाई दूसरी के 30 दिन बाद |
- चौथी सिंचाई तीसरी के 20-25 दिन बाद |
सिंचित तथा विलम्भ से बुआई की दशा में :
गेहूँ की बुआई अगहनी धान तोरिया, आलू, गन्ना की पेडी एवं शीघ्र पकने वाली अरहर के बाद की जाती है किन्तु कृषि अनुसन्धान की विकसित निम्न तकनीक द्वारा क्षेत्रों की भी उपज बहुत कुछ बढाई जा सकती है |
- पिछेती बुआई के लिए क्षेत्रीय अनुकूलतानुसार प्रजातियों का चयन करें जिनका वर्णन पहले किया जा चूका है |
- विलम्ब की दशा में बुआई जीरों ट्रिलेज मशीन से करें |
- बीज दर 125 किग्रा. प्रति हेक्टयर एवं संतुलित मात्रा में उर्वरक (80:40:30) अवश्य प्रयोग करें |
- बीज को रात भर पानी में भिगोकर 24 घन्टे रखकर जमाव करके उचित मृदा नमी पर बोयें |
- पिछेती गेहूँ में सामान्य की अपेक्षा जल्दी-जल्दी सिंचाईयों की आवश्यकता होती है पहली सिंचाई जमाव के 15-20 दिन बाद करके टापड्रेसिंग करें | बाद की सिंचाई 15-20 दिन के अन्तराल पर करें | बाली निकलने से दुग्धावस्था तक फसल को जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहे | इस अवधि में जल की कमी का उपज पर विशेष कुप्रभाव पड़ता है | सिंचाई हल्की करें | अन्य शस्य क्रियायें सिंचित गेहूँ की भांति अपनायें |
- सकरी पत्ती : गेहूँसा एवं जंगली जई |
- चौडी पत्ती : बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी-मटरी, अकरा-अकरी, जंगली गाजर, ज्याजी, खरतुआ, सत्याशी आदि |
नियंत्रण के उपाय :
गेहूँसा एवं जंगली जई के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. बुआई के 20-25 दिन के बाद फ्लैटफैन नाजिल से छिडकाव करना चाहिए | सल्फोसल्फ्यूरान हेतु पानी की मात्रा 300 लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए |
- आइसोप्रोटयूरान 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 25 किग्रा. प्रति हे. |
- सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत डब्लू.जी. की 33 ग्राम (5 यूनिट) प्रति हे. |
- फिनोक्साप्राप–पी इथाइल 10 प्रतिशत ई.सी. की 1 लीटर प्रति हे. |
- क्लोडीनाफांप प्रोपैर्जिल 15 प्रतिशत डब्लू.पी. की 400 ग्राम प्रति हे. |
चौड़ी पत्ती के खरपतवार बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी–मटरी, अकरा-अकरी, जंगली गाजर, गजरी, प्याजी, खरतुआ, सत्यानाशी आदि के नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. बुआई के 25-30 दिन के बाद फ्लैटफैन नाजिल से छिडकाव करना चाहिए |
- 2-4डी मिथाइल एमाइन साल्ट 58 प्रतिशत एस.एल. की 1.25 लीटर प्रति हे. |
- कर्फेंन्टाजॉन मिथाइल 40 प्रतिशत डी.एफ. की 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर |
- 2-4डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत टेकनिकल की 625 ग्राम प्रति हे. |
- मेट सल्फ्यूरान इथाइल 20 प्रतिशत डब्लू.पी. की 20 ग्राम प्रति हे. |
सकरी एवं चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण हेतु निम्नलिखित खरपतवारनाशी रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को लगभग 300 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर फ्लैटफैन नाजिल से छिडकाव करना चाहिए मैट्रीब्युजिन हेतु पानी की मात्रा 500-600 लीटर प्रति हे. होनी चाहिए
- पेंडीमेथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 30 लीटर प्रति हे. बुआई के 3 दिन के अन्दर |
- सल्फोसल्फ़यूरान 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 33 ग्राम (5 यूनिट) प्रति हे. बुआई के 20-25 दिन के बाद |
- मैट्रीब्युजिन 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 250 ग्राम प्रति हे. बुआई के 20-25 दिन के बाद |
- सल्फोसल्फ्यूरान 75 प्रतिशत + मेट सल्फोसल्फ्यूरान मिथाइल 5 प्रतिशत डब्लू.जी. 40 ग्राम (50 यूनिट) बुआई के 20 से 25 दिन बाद |
- गेहूँ की फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु क्लोडीनोफाप 15 प्रतिशत डब्लू.पी. + मेट सल्फ्यूरान 1 प्रतिशत डब्लू.पी. की 400 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 5 मिली. सर्फेकटेंट 375 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए |
गेहूं की फसल में लगने वाले सभी रोग
गेहूं में बीमारियों सुत्रकृमियों तथा हानिकारक कीटों के कारण 5–10 प्रतिशत उपज की हानि होती है और दानों तथा बीजों की गुणवत्ता भी खराब होती है | जिससे लागत तो बढती ही है उत्पादन कम होने से किसानों की आय पर भी फर्क पड़ता है | किसानों को इसलिए बीज उपचार कर एवं रोग प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग ही करना चाहिए | गेहूं की फसल में पर्ण रतुआ / भूरा रतुआ, धारीदार रतुआ या पीला रतुआ, तना रतुआ या काला रतुआ, करनाल बंट खुला कंडुआ या लूज स्मट, पर्ण झुलसा या लीफ ब्लाईट, चूर्णिल आसिता या पौदरी मिल्ड्यू, ध्वज कंड या फ्लैग समट, पहाड़ी बंट या हिल बंट, पाद विगलन या फुट राँट आदि रोग लगते हैं | गेहूं की फसल में लगने वाले इन सभी रोगों एवं उनकी रोकथाम के लिए दी गई लिंक पर जानकारी देखें |
गेहूं की फसल में लगने वाले रोगों की विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें
खड़ी फसल में बहुत से रोग लगते हैं,जैसे अल्टरनेरिया, गेरुई या रतुआ एवं ब्लाइट का प्रकोप होता है जिससे भारी नुकसान हो जाता है इसमे निम्न प्रकार के रोग और लगते हैं जैसे काली गेरुई, भूरी गेरुई, पीली गेरुई सेंहू, कण्डुआ, स्टाम्प ब्लाच, करनालबंट इसमें मुख्य रूप से झुलसा रोग लगता है पत्तियों पर कुछ पीले भूरे रंग के लिए हुए धब्बे दिखाई देते हैं, ये बाद में किनारे पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं: इनकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० प्रति हैक्टर की दर से या प्रापिकोनाजोल 25 % ई सी. की आधा लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए, इसमे गेरुई या रतुआ मुख्य रूप से लगता है,गेरुई भूरे पीले या काले रंग के, काली गेरुई पत्ती तथा तना दोनों में लगती है इसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 2 किग्रा० या जिनेब 25% ई सी. आधा लीटर, 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए। यदि झुलसा, रतुआ, कर्नाल बंट तीनो रोगों की शंका हो तो प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करना अति आवश्यक है।
प्रमुख कीट
- दीमक : यह एक सामाजिक कीट है तथा कालोनी बनाकर रहते हैं | एक कालोनी में लगभग 90 प्रतिशत श्रमिक, 2-3 प्रतिशत सैनिक, एक रानी व राजा होते हैं | श्रमिक पीलापन लिये हुए सफ़ेद रंग के पंखहीन होते है जो फसलों के क्षति पहुंचाते है | दीमक नियंत्रण से जुडी जानकारी के लिए दी गई लिंक पर देखें |
- गुजिया विविल : यह कीट भूरे मटमैले रंग का होता है जो सुखी जमीन में ढेलें एवं दरारों में रहता है | यह कीट उग रहे पौधों को जमीन की सतह से काटकर हानि पहुंचाता है |
- माहूँ : हरे रंग के शिशु एवं प्रौढ माँहू पत्तियों एवं हरी बालियों से रस चूस कर हानि पहुंचाते है | माहूँ मधुश्राव करते हैं जिस पर काली फफूंद उग आती है जिससे प्रकास संश्लेषण में बाधा उतपन्न होती है |
नियंत्रण के उपाय :
- बुआई से पूर्व दीमक के नियंत्रण हेतु क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. अथवा थायोमेथाक्सम 30 प्रतिशत एफ.एस. की 3 मिली. मात्रा प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज को शोधित करना चाहिए |
- ब्यूवेरिया बैसियाना 15 प्रतिशत बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा. प्रति हे. 60-70 किग्रा. गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है |
- खड़ी फसल में दीमक / गुजिया के नियंत्रण हेतु क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. 5 ली. प्रति हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए |
- माहूँ कीट के नियंत्रण हेतु डाइमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. अथवा आंक्सीडेमेटान-मिथाइल 25 प्रतिशत ई.सी. की 0 ली. मात्रा अथवा थायोमेथाक्सम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. 50 ग्राम प्रति हे. लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए | एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) 0.15 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जा सकता है |
खेत का चूहा (फील्ड रैट) मुलायम बालों वाला खेत का चूहा (साफ्ट फर्ड फील्ड रैट) एंव खेत का चूहा (फील्ड माउस) |
नियंत्रण के उपाय :
गेंहूँ की फसल को चूहे बहुत अधिक क्षति पहुंचाते है | चूहे की निगरानी एंव फास्फाइड 80 प्रतिशत से नियंत्रण का साप्ताहिक कार्यक्रम निम्न प्रकार सामूहिक रूप से किया जाए तो अधिक सफलता मिलती है :
- पहला दिन – खेत की निगरानी करें तथा जितने चूहे के बिल हो उसे बंद करते हुए पहचान हेतु लकड़ी के डंडे गाड दे |
- दूसरा दिन – खेत में जाकर बिल की निगरानी करें जो बिल बंद हो वहाँ से गड़े हुए डंडे हटा दें जहाँ पर बिल खुल गये हो वहाँ पर डंडे गड़े रहने दे | खुले बिल में एक भाग सरसों का तेल एंव 48 भाग भुने हुए दाने का बिना जहर का बना हुआ चारा बिल में रखे |
- तीसरा दिन – बिल की पुनः निगरानी करे तथा बिना जहर का बना हुआ चारा पुनः बिल में रखें |
- चौथा दिन – जिंक फास्फाइड 80 प्रतिशत की 1.0 ग्राम. मात्रा को 1.0 ग्राम. सरसों का तेल एंव 48 ग्राम. भुने हुए दाने में बनाये गये जहरीले चारे का प्रयोग करना चाहिए |
- पाँचवा दिन – बिल की निगरानी करे तथा मरे हुए चूहों को जमीन में खोद कर दबा दें |
- छठा दिन – बिल को पुनः बन्द कर दे तथा अगले दिन यदि बिल खुल जाये तो इस साप्ताहिक कार्यक्रम में पुनः अपनायें |
ब्रोमोडियोलोंन 0.0005 प्रतिशत के बने बनाये चारे की 10 ग्राम मात्रा प्रत्येक जिन्दा बिल में रखना चाहिए | इस दवा से चूहा 3-4 बार खाने के बाद मरता है |
अनाज को धातु की बनी बखारियों अथवा कोठिलों या कमरे में जैसी सुविधा हो भण्डारण कर लें | वैसे भण्डारण के लिए धातु की बनी बखारी बहुत ही उपयुक्त है | भण्डारण के पूर्व कोठिलों तथा कमरे को साफ कर ले और दीवालो तथा फर्श पर मैलाथियान 50 प्रतिशत के घोल (1:100) को 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिडकें | बखारी के ढक्कन पर पालीथीन लगाकर मिट्टी का लेप कर दें जिससे वायुरोधी हो जाये |
असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की खेती, किस्में एवं अन्य जानकारी के लिए क्लिक करें
जीरो ‘टिलेज’ द्वारा गेंहूँ की खेती का उन्नत विधियाँ :
धान गेंहूँ फसल चक्र में विशेषतौर पर जहाँ गेंहूँ की बुआई में विलाम्ब हो जाता है, गेंहूँ की खेती जीरो टिलेज विधि द्वारा करना लाभकारी पाया गया है | इस विधि में गेंहूँ की बुआई बिना खेत की तैयारी किये एक विशेष मशीन (जीरों टिलेज मशीन) द्वारा की जाती है |
जीरो टिलेज विधि से बुआई करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है
- बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए | यदि आवश्यक हो तो धान काटने के एक सप्ताह पहले सिंचाई कर देनी चाहिए | धान काटने के तुरन्त बाद बोआई करनी चाहिए |
- बीज दर 125 किग्रा. प्रति हे. रखनी चाहिए |
- दानेदार उर्वरक (एन.पी.के.) का प्रयोग करना चाहिए |
- पहली सिंचाई, बुआई के 15 दिन बाद करनी चाहिए |
- खरपतवारों के नियंत्रण हेतु त्रणनाशी रसायनों का प्रयोग करना चाहिए |
- भूमि समतल होनी चाहिए |
लाभ : इस विधि में निम्न लाभ पाए गए है :
- गेंहूँ की खेती में लागत की कमी (लगभग 2000 रुपया. प्रति हे.) |
- गेंहूँ बुआई 7-10 दिन जल्द होने से उपज में वृद्धि |
- पौधों की उचित संख्या तथा उर्वरक का श्रेष्ट प्रयोग सम्भव हो पाता है |
- पहली सिंचाई में पानी न लगने के कारण फसल बढ़वार में रुकावट की समस्या नहीं रहती है |
- गेंहूँ के मुख्य खरपतवार, गेंहूँसा के प्रकोप में कमी हो जाती है |
- निचली भूमि नहर के किनारे की भूमि एंव ईट भट्टे की जमीन में इस मशीन समय से बुआई की जा सकती है |
नोट : गेंहूँ फसल कटाई के पश्चात फसल अवशेष को न जलाया जाये |