रूट-नॉट नेमाटोड : Symptoms prevention and treatment of root note nematode disease in pomegranate निमाटोड एक बहुत बारीक धागे जैसा कीड़ा होता है जो मिट्टी में रहता है। निमाटोड कई तरह के होते हैं और इनकी हर तरह की किस्म फसल को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रसिद्ध है। यह कई वर्षों तक मिट्टी में दबे रह सकते हैं और पौधों को नुकसान पहुचाते हैं यह पौधे की जड़ों का रस चूसते हैं जिसके कारण पौधों को मिट्टी में से खाद,पानी या पोषक तत्व भरपूर मात्रा में नहीं मिलते और पौधों की ग्रोथ रूक जाती है। निमाटोड के हमले से पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती हैं जिससे पौधे का विकास रूक जाता है और पौधा मर जाता है। यह लगभग हर फसल पर हमला कर देते हैं और इनसे कई तरह की बीमारियां भी फैलती हैं जैसे जड़ों में गांठे पड़ना, नींबू में सूखा रोग, जड़ गलना, जड़ का फूलना आदि प्रमुख हैं।
निमाटोड द्वारा प्रभावित होने वाली फसलें
इनके द्वारा जिन फसलों को नुकसान होता है वह हैं गेहूं, टमाटर, बैंगन, भिंडी, परमल, धान और फल जैसे अनार, नींबू, किन्नू, अंगूर आदि।
सूत्रकृमि का फसलों पर प्रभाव (Effect of Nematodes on crops)
सूत्रकृमि की प्रमुख रूप से तीन प्रजाति पाई जाती है जो पौधे को गंभीर नुकसान पहुंचाती है इनमें से मुख्य प्रजातियां मेलाइडोगाइनी, ग्लोबोडेरा और हेटरोडेरा हैं. ये सूत्रकृमि पौधे की जड़ों को गांठो में बदल देते हैं जिससे पौधा जल और पोषक तत्व लेने की अपनी क्षमता खो देता है. सूत्रकृमि के आक्रमण से पत्तियों में पीलापन, पौधे बौने व झाड़ीनुमा अविकसित रह जाते है. फसल की उपज पर विपरीत असर पड़ता है. सामान्यतौर पर सूत्रकृमि से फसल को 20-30 % नुकसान होना स्वाभाविक है लेकिन रोग की अधिकता से 70-80 % तक भी फसल को नुकसान हो जाता है.
इनकी पहचान क्या है
यदि फसल की वृद्धि नहीं हो रही और फसल सूख रही है और पौधों की जड़ों में गांठे बन रही हैं तो फसल में निमाटोड का हमला है। किसानों के फसलों के मौसमी आपदा (Loss Due To Weather And Pest) के अलावा कीट और रोगों से बहुत नुकसान होता है. निमेटोड (Nematode)भी एक तरह का पतला धागानुमा कीट होता है. यह जमीन के अन्दर पाया जाता है. निमेटोड कई तरह के होते हैं तथा हर किस्म के निमेटोड नामक ये कीड़े फसलो को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. ये वर्षो तक मिटटी के नीचे दबे रह सकते है और पौधो को नुकसान पहुचाते है. यह पौधो की जड़ो का रस चूसते है जिसके कारण पौधे को भूमि से खाद पानी या पोषक तत्व पूरी मात्रा में नही मिल पाता है जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है. निमेटोड लगने से जड़ो में गांठ बन जाती है जिससे पौधे का विकास रुक जाता है जिससे पौधा मर भी सकता है.
अनार में रूट नोट निमेटोड बिमारी लक्षण:
- जड़-गाँठ सूत्रकृमि जड़ों पर गांठ या गल बनाता है। जड़ प्रणालियां विकास मंदता, पत्ती के पीलेपन और परिपक्व पौधों के गिरने की अलग-अलग डिग्री दिखाती हैं।
- जैसे ही नेमाटोड की आबादी बढ़ती है, फीडर जड़ों पर हमला किया जाता है और जितनी जल्दी वे बनते हैं उतनी जल्दी नष्ट हो जाते हैं। पोषक तत्वों के सेवन में व्यवधान के कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और छोटे फल पैदा करते हैं।
- युवा सिंचित बगीचों में, अनार के पेड़ों की जड़ में गंभीर जलन और ध्यान देने योग्य क्षति आम घटना है।
- विल्ट फंगस के जुड़ाव के कारण पौधे की शाखा-दर-शाखा मुरझाना भी रूट-नॉट नेमाटोड का एक सामान्य लक्षण है।
निमेटोड कीट का प्रकोप सभी फसलों पर होता है. इसके कारण जड़ में गांठ रोग ,पुटटी रोग,नींबू का सूखा रोग,जड़ गलन रोग,जड़ फफोला रोग होता है. इसके कारण मुख्य रुप से गेंहू, टमाटर, मिर्च, बैंगन, भिंडी, परवल और धान के अलावा फलो में अनार,निम्बू, संतरा, अमरूद, अंजीर,किन्नू,अंगूर समेत अन्य पौधे प्रभावित होते हैं.
निमेटोड के प्रकोप को कैसे पहचाने
पौधों में निमेटोड का प्रकोप होने पर सबसे पहले पौधों की बढ़वार रुक जाती है. इसके बाद धीरे-धीरे पौधे मुरझाने लगते हैं और सूख जाते हैं. अगर निमेटोड के कारण पौधों की जड़ों गांठ पड़ जाती है कि इसके कारण उनमें फूल और फल की संख्या काफी कम हो जाती है.
प्रबंध:
- केवल नेमाटोड मुक्त स्टॉक और प्रतिरोधी फसल किस्मों का प्रचार करें।
- नेमाटोड आबादी को नियंत्रित करने के लिए इंटरक्रॉपिंग और क्रॉप रोटेशन जैसी सांस्कृतिक विधियों का उपयोग करें।
- इसके अलावा, स्वच्छ रोपण सामग्री और कृषि उपकरण का उपयोग प्रसार को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
- बुवाई के दौरान प्रति पौधा 10 ग्राम कार्बोफ्यूरान का उपयोग करने से भी नेमाटोड की वृद्धि को रोकने में मदद मिलेगी।
सूत्रकृमि से बचाव के उपाय (Preventive measures of Nematodes)
- सूत्रकृमि से फसल को बचने का एक उपाय फसल चक्र है. इसमें ऐसी फसलों का चयन किया जा सकता है जिसमें सूत्रकृमि की समस्या ना होती हो. ये फसलें है- पालक, चुकंदर, ग्वार, मटर, मक्का, गेहूं आदि हैं.
- कृषि यंत्रो और औजारों से और रोगग्रसित पौध से भी सूत्रकृमि का प्रसार हो सकता है अतः प्रभावित खेत वाले औजारों को उपयोग में लेते समय अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए तथा रोगरहित, साफ, पौध को ही खेत में लगाएं.
- नीम, सरसों, महुआ या अरंडी की खली 10-12 क्विंटल प्रति एकड़ खेत में डालने से सूत्रकृमि का प्रभाव कम हो जाता है.
- सूत्रकृमि की शत्रु फसल को खेत मेँ उगाकर सूत्रकृमि को नष्ट किया जा सकता है. इन फसलों मेँ सरसों, गेंदा और शतावर प्रमुख है. इन फसलों की जड़ों में ऐसे रसायनिक द्रव्य का रिसाव होता है जो सूत्रकृमि के लिए घातक सिद्ध होती है. आलू में सूत्रकृमि से होने वाला सिस्ट रोग को सफ़ेद सरसों लगाने से कम किया जा सकता है. इसी तरह टमाटर में फसल को सूत्रकृमि की समस्या से बचाने के लिए गेंदा को खेत में बीच-बीच में लगाएं.
- ग्रीष्मकाल में गहरी जुताई करने से सूत्रकृमि के साथ अन्य कीट और रोगों के बीजाणुओं को नष्ट किया जा सकता है. यह तरीका बड़ा प्रभावी है.
- मई-जून के महीनो मेँ गहरी जुताई करने के बाद खेत को सिंचाई करें और क्यारियां बनाकर पोलिथीन की शीट से ढककर पोलिथीन शीट के किनारों को भी मिट्टी में दबाने का काम करें. ताकि सूर्य की धूप से शीट के अंदर का ताप इतना अधिक हो जाए कि सूत्रकृमि नष्ट हो जाएं.
- बैगन, टमाटर, मिर्च, भिंडी, खीरा आदि फसल को खेत में 2-3 साल तक न लगाएं.
- कार्बोफ्यूरान 3 % दानों को रोपाई पूर्व 10 किलो प्रति एकड़ की दर से खेत में मिला दें.
- सूत्रकृमि के जैविक नियंत्रण के लिए 2 किलो वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम या 2 किलो पैसिलोमयीसिस लिलसिनस या 2 किलो ट्राइकोडर्मा हरजिएनम को 100 किलो अच्छी सड़ी गोबर के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिलाएं.
- सूत्रकृमि प्रतिरोधी किस्म का चयन करके सूत्रकृमि को नियंत्रित किया जा सकता है.
- टमाटर के लिए हिसार ललित, पूसा-120, अर्का वरदान, पूसा H-2,4, पी.एन.आर.-7, कल्याणपुर 1,2,3 है.
- बैंगन के लिए विजय हाइब्रिड, ब्लैक ब्युटी, ब्लैक राउंड, पूसा लॉन्ग पर्पल किस्म हैं.
- खरबूजा के लिए हारा मधु किस्म है.
- आलू के लिए कुफ़री स्वर्ण, कुफ़री थेनामलाई किस्म है.
- मिर्च के लिए पूसा ज्वाला, मोहिनी नामक किस्मों का लगाएं.
जैविक समाधान व पौध संरक्षण
निमेटोड को मिटटी में रसायन छिड़क कर मारने का प्रयास महंगा ह़ी नहीं बल्कि निष्प्रभावी भी होता है. निमेटोड और दीमक आदि कीड़ो को प्रभावी रूप से समाप्त करने के लिए नीमखाद पाउडर का इस्तेमाल ह़ी जरूरी है, इसके लिए नीम खली का तेल युक्त होना आवश्यक है,नीम खाद नीम खली के इस्तेमाल से निमेटोड बनना रूक जाते है. नीमखाद के इस्तेमाल से उपज में 40 प्रतिशत तक की वृद्धि भी होती है और फूलो का ज्यादा बनना तथा फलो की संख्या भी बढती है तथा फल अधिक स्वादिस्ट और चमकदार बनते हैं. उनका आकार भी बड़ा होता है.
अनार में सूत्रकृमी (नेमाटोड) का जैविक नियंत्रण
वर्तमान, में नेमाटोड सभी फसलों में प्रमुख समस्या है। लगातार नमी वाले जगहों की फसलों की जड़ों पर सूत्रकृमी (नेमाटोड) का संक्रमण दिखाई देता है। सूत्रकृमी (नेमाटोड) सूक्ष्म आकार के होते हैं और यह फसल की छोटी जड़ के आंतरिक भागों में रहकर जड़ों को नुकसान पहुंचाता है। इससे जड़ें प्रभावित होती हैं और पौधों का पोषण प्रभावित होने के साथ-साथ जड़ों पर गांठें बन जाती हैं। इस नुकसान के कारण पौधों की पत्तियां पीली हो जाती हैं। इसके अलावा, अन्य कवक जीवों को नेमाटोड के कारण होने वाले चोट से संक्रमित होने की अधिक संभावना रहती है।
इससे पौधे सूख जाते हैं और उकटा रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। सूत्रकृमी (नेमाटोड) के नियंत्रण के लिए जैविक प्रबंधन
- अनार के नए बाग लगाने से पहले, खेत की मिट्टी में अच्छी तरह से धूप लगने दें, जिससे मिट्टी में होने वाले नेमाटोड को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
- अनार में टमाटर, सब्जी, मिर्च, भिंडी, खीरा आदि फसल अंतर-फसल के रूप में ना लें।
- पौध रोपण के बाद, फसल के चारों ओर गेंदा लगाया जाना चाहिए।
- नीम की खल को प्रति पेड़ 2-3 किलो गड्ढे के चारों ओर गहराई से मिश्रित किया जाना चाहिए।
- गोबर खाद के साथ ट्रायकोडर्माप्लस जमीन में देना जाना चाहिए। इसका लगातार उपयोग करने की जरूरत है।
- पैसिलोमाइकोसिस लिलॅसिनस @2-4 किलो प्रति एकड़ ड्रिप द्वारा (बूंद-बूंद सिंचाई) देना चाहिए। संदर्भ – एगोस्टार एग्रोनॉमी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस
बायो कीटनाशक के साथ निमेटोड का उपचार
सबसे पहले जिस खेत में निमेटोड की प्रॉब्लम है, उस खेत पानी से अच्छी तरह भरको दे |पानी लगभग 1 से डेढ़ फीट नीचे तक पहुंचा होना चाहिए | इसके उपरांत है लगभग 2 लीटर पेसिलोमाइसेस बायो कीटनाशक को ड्रिप के माध्यम से खेत के बेड के ऊपर चलाएं | इसके 2 दिन उपरांत 2 लीटर ट्राईकोडर्मा बायो कीटनाशक भी ड्रिप के माध्यम से खेत के बेड के ऊपर चलाएं | इन दोनों बायो कीटनाशको को 7 दिन के बाद दो बार रिपीट करें | उसके उपरांत ही खेत में बेड के ऊपर फसल लगाएं |फसल लगाने से पहले बेड के ऊपर लगभग 2 क्विंटल नीम खली का बिखराव अवश्य करें
इस तरह करे नीम का इस्तेमाल
नीम की खल, है निमाटोड का पक्का हल : फसलों में निमेटोड का का उपचार के लिए गर्मियों के मौसम में ही खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए इसके बाद एक हफ्ते के लिए छोड़ देना चाहिए. बुवाई से पहले नीम खली 10 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से डाल कर फिर से जुताई करने के बाद ही खेत में फसलों की बुवाई करनी चाहिए. फलों में निमेटोड के प्रभाव को कम करने के लिए अनार, निम्बू, संतरा, अमरूद, अंजीर, किन्नू,अंगूर एवम समस्त प्रकार के फलों की रोपाई से समय एक मीटर गहरा गड्ढा खोद कर नीम खली एव सड़े गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर पौधे की रोपाई करें.
इसके अलावा जो पौधे बड़े हो रहे हैं तो भी पौधो की उम्र के हिसाब से नीम खाद की मात्रा संतुलित करे. 1 से 2 साल तक के पौधे में 1 किलो और 3 से 5 साल तक के पौधे में 2 से 3 किलो प्रति पौधे के हिसाब से डाल कर पौधे की जडो के पास थाला बना कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर पानी डाल दें. इसके अलावा ड्रिप के जरिए घुलनशील नीम तेल भी डाल सकते हैं.
निमेटोड संसार की हर फसल में पाया जाता है। यह कई वर्षों तक मिटटी के निचे दबे रहते हैं और पौधों को नुक्सान पहुंचाते हैं। यह पौधों की जड़ों में लग जाते हैं और उनका रस चूसते रहते हैं जिससे न्यूट्रीएटंस पौधे को नहीं मिल पाते हैं जिससे पौधों का विकास रुक जाता है और पौधा मर जाता है। मिट्टी में रसायन डाल कर ईनको (निमेटोड ) मारने का प्रयास महंगा ही नहीं बल्कि प्रभाव हीन भी होता है।
निमेटोड को प्रभावि रूप से समाप्त करने के लिए नीम खली का उपयोग ही बेहतर है। बुवाई से पहले नीमखली डाल कर गहरी जुताई करें फिर बुवाई करें।
फलदार पौधों में अनार, निम्बु, संतरा आदि में निमेटोड का अटैक ज्यादा होता है । इसके लिए पौधों को रोपने से पहले आधा किलो नीम खली प्रति पौधा के हिसाब से मिट्टी में मिला कर रोपाई करें और घुलनशील नीम तेल ड्रिप सिस्टम में डाल कर सींचाई करें। अगर पौधे पहले से लगा रखे हैं तो -
- अगर पौधे एक साल के हो तो आधा किलो नीम की खली प्रति पौधा के हिसाब से मिट्टी में मिला कर सींचाई करें।
- अगर पौधे दो साल के हो तो एक किलो नीम की खली प्रति पौधा के हिसाब से मिट्टी में मिला कर सींचाई करें।
- अगर पौधे डेढ़ साल से दो साल के हो तो दो किलो नीम की खली प्रति पौधा के हिसाब से मिट्टी में मिला कर सींचाई करें।
- अगर पौधे तीन से चार साल के हो तो चार पांच किलो नीम की खली प्रति पौधा के हिसाब से मिट्टी में मिला कर सींचाई करें
- और ड्रिप सिस्टम में घुलनशील नीम का तेल डालकर सींचाई करें।
फसल प्रणाली अनार के रोगों के प्रबंधन में कैसे मदद करती है?
- अनार के रोग फलों के विकास, उत्पादन और गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
- फसल की तकनीक के साथ, एन्थ्रेक्नोज, बैक्टीरियल लीफ स्पॉट और फ्यूजेरियम जैसी बीमारियां अब अनार के उत्पादन के लिए खतरा नहीं बनेंगी।
- फसल बागवानी फसलों के लिए एक आईओटी आधारित खुफिया मंच है। यह किसानों को उनके खेतों, फसलों और फसल के चरणों के अनुरूप कार्रवाई योग्य सिफारिशें देने के लिए ऑन-फार्म सेंसर से स्थितियों पर वास्तविक समय डेटा एकत्र करता है।
- एन्थ्रेक्नोज, फ्यूजेरियम विल्ट, और लीफ स्पॉट सहित बीमारियों को फसल तकनीक की मदद से ठीक से प्रबंधित किया जा सकता है। इससे किसान को स्प्रे लागत पर 50% तक की बचत करने में मदद मिलेगी।
- फसल प्रणाली फसल और उसके चरण के बाद सिंचाई को विनियमित करने, उपज की गुणवत्ता में सुधार करने और बीमारियों को रोकने में सहायता करती है।
- फसल प्रणाली के साथ, किसान अपने स्थान के लिए विशिष्ट मौसम पूर्वानुमान की मदद से अपने खेतों और श्रम को अधिक प्रभावी ढंग से व्यवस्थित कर सकते हैं और अपनी फसलों की स्थिति की निगरानी कर सकते हैं।