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by | May 27, 2023 | рдЦрд░реАреЮ рдХреА рдлрд╕рд▓, рдЙрдиреНрдирдд рдЙрддреНрдкрд╛рджрди рддрдХрдиреАрдХ

नमस्कार किसान भाइयो, कृषक मित्र आपका हमारी वेबसाईट AGRICULTUREPEDIA.IN पर हृदय से स्वागत करता हैं | इस आर्टिकल में हम कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक (Advanced Production Technology of Cotton) के बारे में जानेंगे | यहाँ हम जानने प्रयास करेंगे कि कपास के लिए किस प्रकार मिटटी तैयार करनी हैं और किस्म बुहाई करनी हैं कौनसा खाध्य और पेस्टिसाईड उपयोग में लाना हैं कब और कितने समय अन्तराल में सिंचाई करनी चाहिए आदि बाते –

Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

तापमान, वर्षा,मृदा एवं सिंचाई

कपास के उत्तम जमाव के लिए न्यूनतम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान, फसल बढ़वार के समय 21-27 डिग्री सेल्सियस तापमान व उपयुक्त फलन के लिए दिन में 27 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा रात्रि में ठंडक का होना आवश्यक है। गूलरों के फटने के लिए चमकीली धूप व पालारहित ऋतु आवश्यक है। कपास के लिए कम से कम 50 सें.मी. वर्षा का होना जरूरी है।

कपास के लिए उपयुक्त मृदा में अच्छी जलधारण एवं जल निकास क्षमता होनी चाहिए। जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों वहां बलुई और बलुई दोमट मृदा में इसकी खेती की जा सकती है। इसके लिए उपयुक्त पी-एच मान 5.5-6.0 है। इसकी खेती 8.5 पी-एच मान तक वाली मृदा में भी की जा सकती है। 

कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

  • कपास रेशे वाली फसल हैं यह कपडे़ तैयार करने का नैसर्गिक रेशा हैं।
  • मध्यप्रदेश में कपास सिंचित एवं असिंचित दोनों प्रकार के क्षेत्रों में लगाया जाताहैं।
  • प्रदेश में कपास फसल का क्षेत्र 7.06 लाख हेक्टेयर था तथा उपज 426.2 किग्रा लिंट/हे.
  • बीटी कपास में रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिये 2-3छिडकाव कर नापर्याप्त होता हैं जबकि पहले में देश की कुल कीटनाशक खपत का लगभग आधाभाग लग जाता था।
  • बी.टी.कपास से अधिकतम उपज दिसम्बर मध्य तक लेली जाती हैं जिससे रबी मौसम गेहूँ का उत्पादन भी लिया जा सकता हैं।

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जातियाँ :

आजकल अधिकतर किसान बीटी. कपास लगा रहे हैं जी.ई.सी. द्वारा लगभग 250 बी.टी. जातियाँ अनुमोदित हैं। हमारे प्रदेश में प्रायः सभी जातियाँ लगायी जा रही हैं। बीटी कपास में बीजी-1 एवं बीजी-2 दो प्रकार की जातियाँ आती हैं। बीजी-1 जातियों में तीन प्रकार के डेन्डू छेदक इल्लियोंए चितकबरी इल्ली, गुलाबी डेन्डू छेदक एवं अमेरिकन डेन्डू छेदक के लिए प्रतिरोधकता पायी जाती है जबकि बीजी-2 जातियाँ इनके अतिरिक्त तम्बाकू की इल्ली की भी रोक करती हैं म.प्र.में प्रायः तम्बाकू की इल्ली कपास पर नहीं देखी गई अतः बीजी.-1जातियाँ ही लगाना पर्याप्त हैं।

संकर किस्मउपयुक्त क्षेत्र जिलेविशेश
डी.सी.एच. 32 (1983)धार, झाबुआ, बड़वानी खरगौनमहीन रेशेकी किस्म,
एच-8 (2008)खण्डवा, खरगौन व अन्य क्षेत्रजल्दी पकने वाली किस्म 130-135दिन 25-30क्विं/हे
जी कॉट हाई.10 (1996)खण्डवा, खरगौनव अन्यक्षेत्रअधिकउत्पादन 30-35 क्विं/हे
बन्नी बी टी (2002)खण्डवा खरगौन व अन्य क्षेत्रमहीन रेशा, अच्छी गुणवत्ता 30-35 क्विं/हे
डब्लू एच एच 09बीटी (1996)खण्डवा, खरगौनव अन्यक्षेत्रमहीन रेशा, अच्छी गुणवत्ता 30-35क्विं/हे
आरसीएच 2बीटी (2000)अधिक उत्पादन, सिंचिंत क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
जे के एच-1 (1982)अधिक उत्पादन, सिंचिंत क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
जे के एच 3 (1997)जल्दी पकने वाली किस्म 130-135 दिन
Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

कपास की उन्नत किस्में 

जेके.-4 (2002)असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त 18-20 क्विं/हे
जेके.-5, (2003)अच्छी गुणवत्ता, मजबूत रेशा 18-20 क्विं/हे
जवाहर ताप्ती (2002)रस चूसक कीटो के लिए प्रतिरोधी 15-18 क्विं/हे
Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

देश में वर्तमान में बी.टी. कपास अधिक प्रचलित है। जिसकी किस्मों का चुनाव किसान भाई अपने क्षेत्र व परिस्थिति के अनुसार कर सकते हैं। लेकिन कुछ प्रमुख नरमा, देशी और संकर कपास की अनुमोदित किस्में क्षेत्रवार विवरण नीचे दिया गया है।
उत्तरी क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्में

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उत्तरी क्षेत्र के लिए अनुमोदित किस्में

राज्यनरमा (अमरीकन) कपासदेशी कपाससंकर कपास
पंजाबएफ- 286, एल एस- 886, एफ- 414, एफ- 846, एफ- 1861, एल एच- 1556, पूसा- 8-6, एफ- 1378एल डी- 230, एल डी- 327, एल डी- 491, पी एयू- 626, मोती, एल डी- 694फतेह, एल डी एच- 11, एल एच एच- 144
हरियाणाएच- 1117, एच एस- 45, एच एस- 6, एच- 1098, पूसा 8-6डी एस- 1, डी एस- 5, एच- 107, एच डी- 123धनलक्ष्मी, एच एच एच- 223, सी एस ए ए- 2, उमा शंकर
राजस्थानगंगानगर अगेती, बीकानेरी नरमा, आर एस- 875, पूसा 8 व 6, आर एस- 2023आर जी- 8राज एच एच- 116 (मरू विकास)
पश्चिमी उत्तर प्रदेशविकासलोहित यामली—Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
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मध्य क्षेत्र हेतु अनुमोदित किस्में-

राज्यनरमा (अमेरिकन) कपासदेशीसंकर
मध्य प्रदेशकंडवा- 3, के सी- 94-2माल्जरीजे के एच वाई 1, जे के एच वाई 2
महाराष्ट्रपी के वी- 081, एल आर के- 516, सी एन एच- 36, रजतपी ए- 183, ए के ए- 4, रोहिणीएन एच एच- 44, एच एच वी- 12
गुजरातगुजरात कॉटन- 12, गुजरात कॉटन- 14, गुजरात कॉटन- 16, एल आर के- 516, सी एन एच- 36गुजरात कॉटन 15, गुजरात कॉटन 11एच- 8, डी एच- 7, एच- 10, डी एच- 5

दक्षिण क्षेत्र हेतु अनुमोदित किस्में-

राज्यनरमा (अमेरिकन) कपासदेशीसंकर
आंध्र प्रदेशएल आर ए- 5166, एल ए- 920, कंचनश्रीसाईंलम महानदी, एन ए- 1315सविता, एच बी- 224
कर्नाटकशारदा, जे के- 119, अबदीताजी- 22, ए के- 235डी सी एच- 32, डी एच बी- 105, डी डी एच- 2, डी डी एच- 11
तमिलनाडुएम सी यू- 5, एम सी यू- 7, एम सी यू- 9, सुरभिके- 10, के- 11सविता, सूर्या, एच बी- 224, आर सी एच- 2, डी सी एच- 32
Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

अन्य प्रमुख प्रजातियां : पिछले 10 से 12 वर्षों में बी टी कपास की कई किस्में भारत के सभी क्षेत्रों में उगाई जाने लगी हैं। जिनमें मुख्य किस्में इस प्रकार से हैं, जैसे- आर सी एच- 308, आर सी एच- 314, आर सी एच- 134, आर सी एच- 317, एम आर सी- 6302, एम आर सी- 6304 आदि है।

कपास की उन्नत खेती में बीजोपचार

  • कपास के बीज में छुपी हुई गुलाबी सुंडी को नष्ट करने के लिए बीजों को धूमित करना चाहिए। 40 किलोग्राम तक बीज को धूमित करने के लिए एल्यूमीनियम फॉस्फॉइड की एक गोली बीज में डालकर उसे हवा रोधी बनाकर चौबीस घंटे तक बंद रखें। धूमित करना संभव न हो तो तेज धूप में बीजों को पतली तह के रूप में फैलाकर 6 घंटे तक तपने देवें। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
  • बीज जनित रोग से बचने के लिये बीज को 10 लीटर पानी में एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या ढाई ग्राम एग्रीमाइसिन के घोल में 8 से 10 घंटे तक भिगोकर सुखा लीजिये इसके बाद बोने के काम में लेवें।
  • जहां पर जड़ गलन रोग का प्रकोप होता है, ट्राइकोड़मा हारजेनियम या सूडोमोनास फ्लूरोसेन्स जीव नियंत्रक से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें या रासायनिक फफूंदनाशी जैसे कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी, 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी से 2 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  • बीजों से रेशे हटाने के लिएं जहां संभव हो, 10 किलोग्राम बीज के लिए एक लीटर व्यापारिक गंधक का तेजाब पर्याप्त होता है। मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में बीज डालकर तेजाब डालिए तथा एक दो मिनट तक लकड़ी से हिलाइए। बीज काला पड़ते ही तुरंत बीज को बहते हुए पानी में धो डालिएं एवं ऊपर तैरते हुए बीज को अलग कर दीजिए। गंधक के तेजाब से बीज के उपचार से अंकुरण अच्छा होगा। यह उपचार कर लेने पर बीज को प्रधूमन की आवश्यकता नहीं रहेगी।
  • रेशे रहित एक किलोग्राम नरमे के बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस या 4 ग्राम थायोमिथोक्साम 70 डब्ल्यू एस से उपचारित कर पत्ती रस चूसक हानिकारक कीट और पत्ती मरोड़ वायरस को कम किया जा सकता है। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
  • असिंचित स्थितियों में कपास की बुवाई के लिये प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम एजेक्टोबेक्टर कल्चर से उपचारित कर बोने से पैदावार में वृद्धि होती है।

कपास की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी

उत्तरी भारत में कपास की खेती मुख्यत: सिंचाई आधारित होती है। इन क्षेत्रों में खेत की तैयारी के लिए एक सिंचाई कर 1 से 2 गहरी जुताई करनी चाहिए एवं इसके बाद 3 से 4 हल्की जुताई कर, पाटा लगाकर बुवाई करनी चाहिए। कपास का खेत तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत पूर्णतया समतल हो ताकि मिट्टी की जलधारण एवं जलनिकास क्षमता दोनों अच्छे हों। यदि खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या न हो तो बिना जुताई या न्यूनतम जुताई से भी कपास की खेती की जा सकती है। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक


दक्षिण व मध्य भारत में कपास वर्षा-आधारित काली भूमि में उगाई जाती है। इन क्षेत्रों में खेत तैयार करने के लिए एक गहरी जुताई मिटटी पलटने वाले हल से रबी फसल की कटाई के बाद करनी चाहिए, जिसमें खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और वर्षा जल का संचय अधिक होता है। इसके बाद 3 से 4 बार हैरो चलाना काफी होता है। बुवाई से पहले खेत में पाटा लगाते हैं, ताकि खेत समतल हो जाए।

कपास की बुआई

पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में इसकी बुआई आमतौर पर गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल-मई में की जाती है। अप्रैल-मई में बुआई करना अधिक लाभकर रहता है। कपास की बुआई के लिए बीज को पंक्तियों में बोना सदैव अच्छा रहता है। पंक्तियों में बुआई के लिए सीड ड्रिल या देसी हल के पीछे कूंड में बीज बोया जाता है। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

अमेरिकन, देसी और संकर कपास की क्रमशः 15-20, 15-16 और 2-2.5 कि.ग्रा./हैक्टर बीज पर्याप्त होता है। देसी कपास अथवा अमेरिकन कपास के लिए 60×30 सें.मी. तथा संकर किस्मों के लिए 90×60 सें.मी. पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी रखनी चाहिए। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

  • सिंचित क्षेत्रों के लिए फसलचक्र जैसे कपास-सूरजमुखी, कपास-मूंगफली, कपास-बरसीम/सेंजी/जई, कपास-गेहूं/ जौ, कपास-बरसीम/सेंजी/जई आदि। उत्तर भारत में कपास-मटर, कपास-ज्वार और कपास-गेहूं तथा दक्षिणी भारत में कपास-ज्वार, कपास-मूंगफली, धान-कपास और कपास-धान फसल चक्र मुख्य हैं। उत्तरी भारत में कपास के बाद गेहूं की फसल लेने के लिए कपास की जल्दी पकने वाली प्रजाति और गेहूं की देर से बोने वाली प्रजाति बोनी चाहिए। 
  • विभिन्न क्षेत्रों के लिए अमेरिकन कपास(गोसीपियम हिर्सुटम)की उन्नतशील किस्में जैसे-एफ. 286, एल.एस. 886, एफ. 414, एफ. 846, एफ. 1861, एल.एच. 1556, पूसा 8-6, एफ. 1378,एच. 1117, एच.एस. 45, एच.एस. 6, एच. 1098, गंगानगर अगेती, बीकानेरी नरमा।
  • देसी कपास (गोसीपियम आर्बोरिम) की उन्नत किस्में जैसे-एच. 777, एच.डी. 1, एच. 974, एच.डी. 107, डी.एस. 5, एल.डी. 694, एल.डी. 327, एल.डी. 230, एवं संकर कपास की उन्नत किस्में जैसे-फतेह, एल.डी.एच. 11, एल.एच. 144, धनलक्ष्मी, एच.एचएच. 223, सी.एस.ए.ए. 2,उमा शंकर, राज.एच.एच. 116, जे.के.एच.वाई. 1, जे.के. एच.वाई. 2 (जीरोटिलेज), एन.एच.एच. 44, एच एच वी 12, एच. 8 आदि भारत के सभी क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।
  • उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए। कपास की देसी किस्मों के लिए 50-70 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20-30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, अमेरिकन एवं देसी किस्मों के लिए 60-80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 20-30 कि.ग्रा. पोटाश और संकर किस्मों के लिए 150-60-60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर का प्रयोग लाभदायक पाया गया है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं बाकी उर्वरकों की पूरी मात्रा बुआई के समय डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की बाकी मात्रा फूल आने के समय सिंचाई के बाद देनी चाहिए। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
  • जहां सिंचाई की सुविधा हो, कपास की  बुआई 15-25 मई के बीच कर दें। इससे सही समय पर फसल तैयार हो जायेगी। बारानी क्षेत्रा में मानसून के साथ ही बुआई करना उचित होगा। कपास में 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। मृदा की नमी के अनुसार सिंचाई करें एवं अंतिम सिंचाई एक तिहाई टिंडे खुलने पर करें। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
  • कपास की अच्छी उपज लेने हेतु पूरी तरह खरपतवार नियंत्रण होना अति आवश्यक है। इसके लिए तीन-चार बार फसल बढ़वार के समय गुड़ाई बैलचालित त्रिफाली कल्टीवेटर या ट्रैक्टर चालित कल्टीवेटर द्वारा करनी चाहिए। पहली गुड़ाई सूखी हो, जिसे पहली सिंचाई के पूर्व (बुआई के 30-35 दिनों पहले) ही कर लेना चाहिए। फूल व गूलर बनने पर कल्टीवेटर का प्रयोग न किया जाए। इन अवस्थाओं में खुर्पी द्वारा खरपतवार निकाल देना चाहिए। 3.3 कि.ग्रा. पेंडीमेथलीन प्रति हैक्टर जमाव से पूर्व या बुआई के 2-3 दिनों के अंदर प्रयोग करें।

कपास की खेती के लिए मौसम/ जलवायु

यदि पर्याप्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध हैं तो कपास की फसल को मई माह में ही लगाया जा सकता है। सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मानसून की उपयुक्त वर्षा होते ही कपास की फसल लगा सकते हैं। कपास की उत्तम फसल के लिए आदर्श जलवायु का होना आवश्यक है। फसल के उगने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेंटीग्रेट और अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 32 से 34 डिग्री सेंटीग्रेट होना उचित है।

इसकी बढ़वार के लिए 21 से 27 डिग्री तापमान चाहिए। फलन लगते समय दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तथा रातें ठंडी होनी चाहिए। कपास के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर वर्षा का होना आवश्यक है। 125 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा का होना हानिकारक होता है। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

सघन खेती

कपास की सघन खेती में कतार से कतार 45 सेमी एवं पौधे से पौधे 15 सेमी पर लगाये जाते है, इस प्रकार एक हेक्टेयर में 1,48,000 पौधे लगते है। बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जाती है। इससे 25 से 50 प्रतिशत की उपज में वृद्धि होती है। इस हेतु उपयुक्त किस्में निम्न है:- एनएच 651 (2003), सुरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992) , एनएचएच 48 बीटी (2023) जवाहर ताप्ती, जेके 4 , जेके 5आदि। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

खाद एवं उर्वरक :

प्रजातिनत्रजन (किलोग्राम/हे. )फास्फोरस/हे.पोटाश/हे.गंधक (किग्रा/हे.)
उन्नत80-12040-6020-3025
संकर150754025
15% बुआई के समय एक चैथाई 30 दिन, 60 दिन, 90 दिन पर बाकी 120 दिन पर आधा बुआई के समय एवं बाकी 60 दिन परआधा बुआई के समय एवं बाकी 60 दिन परआधा बुआई के समय एवं बाकी 60 दिन परबुआई के समय
  • उपलब्ध होने पर अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट 7 से 10 टन/हे. (20 से 25 गाड़ी) अवश्य देना चाहिए ।
  • बुआई के समय एक हेक्टेयर के लिए लगने वाले बीज को 500 ग्राम एजोस्पाइरिलम एवं 500 ग्राम पी.एस.बी. से भी उपचारित कर सकते है जिससे 20 किग्रा नत्रजन एवं 10 किग्रा स्फुर की बचत होगी। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
  • बोनी के बाद उर्वरक को कालम पद्धति से देना चाहिए। इस पद्धति से पौधे के घेरे/परिधि पर 15 सेमी गहरे गड्ढे सब्बल बनाकर उनमें प्रति पौधे को दिया जाने वाला उर्वरक डालते है व मिट्टी से बंद कर देते है।

बी.टी. कपास में रिफ्यूजिया का महत्व

भारत सरकार की अनुवांषिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति (जी. ई.ए.सी.) की अनुशंसा के अनुसार कुल बीटी क्षेत्र का 20 प्रतिशत अथवा 5 कतारें (जो भी अधिक हो) मुख्य फसल के चारों उसी किस्म का नान बीटी वाला बीज लगाना (रिफ्यूजिया) लगाना अत्यंत आवष्यक हैं प्रत्येक बीटी किस्म के साथ उसका नान बीटी (120 ग्राम बीज) या अरहर का बीज उसी पैकेट के साथ आता हैं।

बीटी किस्म के पौधों में बेसिलस थुरेनजेसिस नामक जीवाणु का जीन समाहित रहता जो कि एक विषैला प्रोटीन उत्पन्न करता हैं इस कारण इनमें डेन्डू छेदक कीटों से बचाव की क्षमता विकसित होती हैं।

रिफ्यूजिया कतारे लगाने पर डेन्डू छेदक कीटों का प्रकोप उन तक ही सीमित रहता हैं और यहाँ उनका नियंत्रण आसान होता हैं। यदि रिफ्यूजिया नहीं लगाते तो डेन्डू छेदक कीटों में प्रतिरोधकता विकसित हो सकती हैं ऐसी स्थिति में बीटी किस्मों की सार्थकता नहीं रह जावेगी ।

कपास की फसल में निराई-गुड़ाई

  • निराई-गुड़ाई सामान्यत: पहली सिंचाई के बाद बतर आने पर कसौले से करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार एक या दो बार त्रिफाली चलाएं। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
  • रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथालीन 30 ई सी, 833 मिलीलीटर (बीजों की बुवाई के बाद मगर अंकुरण से पहले) या ट्राइलूरालीन 48 ई सी, 780 मिलीलीटर (बीजाई से पूर्व मिट्टी पर छिडक़ाव) को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से लेट फेन नोजल से उपचार करने से फसल प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवार विहीन रहती है। इनका प्रयोग बिजाई से पूर्व मिट्टी पर छिडक़ाव भली-भांति मिलाकर करें।
  • प्रथम सिंचाई के बाद कसोले से एक बार गुड़ाई करना लाभदायक रहता है। यदि फसल में बोई किस्म के अलावा दूसरी किस्म के पौधे मिले हुए दिखाई दें तो उन्हें निराई के समय उखाड़ दीजिए क्योंकि मिश्रित कपास का मूल्य कम मिलता है।
  • पहली निंदाई-गुड़ाई अंकुरण के 15 से 20 दिन के अंदर कर कोल्पा या डोरा चलाकर करना चाहिए। खरपतवारनाशकों में पायरेटोब्रेक सोडियम (750 ग्रा/हे) या फ्लूक्लोरिन /पेन्डामेथेलिन 1 किग्रा. सक्रिय तत्व को बुवाई पूर्व उपयोग किया जा सकता है।

कपास की खेती में फूल और टिंडों को गिरने से बचाना

स्वत: गिरने वाली पुष्प कलियों और टिंडों को बचाने के लिए एन ए ए 20 पी पी एम (2 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) का घोल बनाकर पहला छिडक़ाव कलियां बनते समय एवं दूसरा टिंडों के बनना शुरू होते ही करना चाहिए।

नरमा कपास की फसल में पूर्ण विकसित टिंडे खिलाने हेतु 50 से 60 प्रतिशत टिंडे खिलने पर 50 ग्राम ड्राप अल्ट्रा (थायाडायाजुरोन) को 150 लीटर पानी में घोल कर प्रति बीघा की दर से छिडक़ाव करने के 15 दिन के अन्दर करीब-करीब पूर्ण विकसित सभी टिंडे खिल जाते हैं।

ड्राप अल्ट्रा का प्रयोग करने का उपयुक्त समय 20 अक्टूबर से 15 नवंबर है। इसके प्रयोग से कपास की पैदावार में वृद्धि पाई गई है। गेहूं की बिजाई भी समय पर की जा सकती है।

कपास की खेती में सिंचाई प्रबंधन

  • बुवाई के बाद 5 से 6 सिंचाई करें, उर्वरक देने के बाद एवं फूल आते समय सिंचाई अवश्य करें।
  • दो फसली क्षेत्र में 15 अक्टूबर के बाद सिंचाई नहीं करें।
  • अंकुरण के बाद पहली सिंचाई 20 से 30 दिन में कीजिए। इससे पौधों की जडं़े ज्यादा गहराई तक बढ़ती है। इसी समय पौधों की छंटनी भी कर दीजिये। बाद की सिंचाईयां 20 से 25 दिन बाद करें।
  • नरमा या बीटी की प्रत्येक कतार में ड्रिप लाइन डालने की बजाय कतारों के जोड़े में ड्रिप लाइन डालने से ड्रिप लाइन का खर्च आधा होता है।
  • इसमें पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखते हुए जोडे में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें और जोडे से जोडे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखें। प्रत्येक जोडे में एक ड्रिप लाईन डाले तथा ड्रिप लाईन में ड्रिपर से ड्रिपर की दूरी 30 सेंटीमीटर हो और प्रत्येक ड्रिपर से पानी रिसने की दर 2 लीटर प्रति घण्टा हो।
  • सूखे में बिजाई करने के बाद लगातार 5 दिन तक 2 घण्टे प्रति दिन के हिसाब से ड्रिप लाईन चला देवें। इससे उगाव अच्छा होता है और बुवाई के 15 दिन बाद बून्द-बून्द सिंचाई प्रारम्भ करें।
  • बूंद-बूंद सिंचाई का समय संकर नरमा की सारणी के अनुसार ही रखे, वर्षा होने पर वर्षा की मात्रा के अनुसार सिंचाई उचित समय के लिये बंद कर दें। पानी एक दिन के अन्तराल पर लगावें।
  • दस मीटर क्यारी की चौड़ाई और 97.50 प्रतिशत कट ऑफ रेशियो पर अधिकतम उपज ली जा सकती है।
  • बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से सिफारिश किए गए नत्रजन की मात्रा 6 बराबर भागों में दो सप्ताह के अन्तराल पर ड्रिप संयंत्र द्वारा देने से सतही सिंचाई की तुलना में ज्यादा उपयुक्त पायी गयी है।
  • इस पद्धति से पैदावार बढऩे के साथ-साथ सिंचाई जल की बचत, रूई की गुणवत्ता में बढ़ौतरी और कीड़ों के प्रकोप में भी कमी होती है।

एकान्तर (कतार छोड़ ) पद्धति अपना कर सिंचाई जल की बचत करे। बाद वाली सिंचाईयाँ हल्की करें,अधिक सिंचाई से पौधो के आसपास आर्द्रता बढ़ती है व मौसम गरम रहा तो कीट एवं रोगों के प्रभाव की संभावना बढ़तीहै।

सिंचाई की क्रांतिक अवस्थाएँ

  • सिम्पोडिया, शाखाएँ निकलने की अवस्था एवं 45-50 दिन फूल पुड़ी बनने की अवस्था।
  • फूल एवं फल बनने की अवस्था 75-85 दिन
  • अधिकतम घेटों की अवस्था 95-105 दिन
  • घेरे वृद्धि एवं खुलने की अवस्था 115-125दिन

टपक सिंचाई से जल की बचत करें :-

टपक सिंचाई एक महत्वपूर्ण सिंचाई साधन है यह बिजली, मेहनत और लगभग 70 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत करता है। टपक सिंचाई को तीन दिन में एक बार चलाया जाना चाहिए । टपक सिंचाई की सहायता से पौधों को घुलनशील खाद एवं कीटनाशकों की आपूर्ति की जा सकती है। प्रत्येक पौधे को उचित ढंग से पर्याप्त जल व उर्वरक उपलब्ध होने के कारण उपज में वृद्धि होती है। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

कीटपहचानहानिनियंत्रणके उपाय
हरा मच्छरपंचभुजाकार हरे पीले रंग के अगले जोड़ी पंखे पर एक काला धब्बा पाया जाता हैशिशु -व्यस्क पत्तियों के निचले भाग से रस चूसते है। पत्तिया क्रमशः पीली पड़कर सूखने लगती है।1.पूरे खेत में प्रति एकड़ 10 पीले प्रपंच लगाये। 2.नीम तेल 5मिली.टिनोपाल/सेन्डोविट 1मिली.प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
3.रासायनिक कीटनाशी थायोमिथाक्ज़्म 25डब्लुजी – 100ग्रामसक्रियतत्व/हेएसिटामेप्रिड 20एस.पी. – 20ग्रामसक्रियतत्व/हे.इमिडाक्लोप्रिड 17.8एस.एल – 200मिली.सक्रियतत्व/हे ट्रायजोफास 40ईसी 400मिली सक्रियतत्व/हे.एक बार उपयोगमें लाई गई दवा का पुनःछिड़कावनहींकरें।
सफेदमक्खीहल्के पीले रंग की जिसका शरीर सफेद मोमीय पाउडर से ढंका रहता हैपत्तियोसे रस चूसतीहै एवं मीठा चिपचिपा पदार्थ पौधे की सतह पर छोड़ते है। से वायरस का संचरणभी करती है।
माहोअत्यंतछोटेमटमैलेहरे रंग का कोमलकिट है।पत्तियोकी निचली सतह से खुरचकरएवं घेटों पर समूह में रस चूसकर मीठा चिपचिपा पदार्थ उत्सर्जित करती है।
तेलाअत्यंत छोटे काले रंग के कीटपत्तियो की कनचली समह से खुरचकर हरे पदार्थ का रस पान करते है।
मिलीगबमादा पंखी विहीन,शरीर सफेद पाउडर से ढंका। पर के शरीर पर कालेरंग के पंख।तने,शाखाओं,पर्णवृतों,फूल पूड़ी एवं घेटोंपर समूह में रस चूसकर मीठा,चिपचिपा पदार्थ उत्सर्जित करती है।

Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

कपास के रोग के लक्षण एवं प्रबंधन

कपास के रोगरोग के लक्षणप्रबंधन
कपास का कोणीय धब्बा एवं जीवाणु झुलसा रोगरोग के लक्षण पौधे के वायुवीय भागों पर छोटे गोल जलसक्ति बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं। रोग के लक्षण घेटों पर भी दिखाई देते हैं। घेटों एवं सहपत्रों पर भी भूरे काले चित्ते दिखाई देते हैं। ये घेटियाँ समय से पहले खुल जाती है रोग ग्रस्त घेटों का रेशा खराब हो जाता है इसका बीज भी सिकुड़ जाता हैबोने से पूर्व बीजों को बावेस्टीन कवक नाशी दवा की 1ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करेकोणीय धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए बीज को बोनेसे पहले स्टेप्टोसाइक्लिन (1ग्राम दवा प्रति लीटर पानीमें) बीजोपचार करे ।
खेत में कोणीय धब्बारोग के लक्षण दिखाई देते ही स्टेप्टोसाइक्लिन का 100पी.पी.एम (1ग्राम दवा प्रति 10ली.पानी)घोल का छिड़काव 15दिन के अंतरपर दो बार करें।
कवक जनितरोगों की रोकथाम हेतु एन्टाकालया मेनकोजेबया काँपरऑक्सीक्लोराइड की 2.5ग्रामदवा को प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर फसल पर 2से 3बाद 10दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
जल निकास का उचित प्रबंध करें। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
मायरोथीसियम पत्ती धब्बा रोगइस रोग में पत्तियोंपर हल्के भूरे से गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। कुछ समय बाद ये धब्बे आपस में मिलकर अनियमित रूप से पत्तियों का अधिकांश भाग ढँक लेतेहैं,धब्बों के बीच का भाग टूटकर नीचे गिर जाता है। इस रोग से फसल की उपज में लगभग 20-25प्रतिशततक कमी आंकीगई है ।
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोगइस रोग में पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के संकेंद्रित धब्बे बनते हैं व अन्त में पत्तियाँ सूखकर झड़ने लगती है। वातावरण में नमी की अधिकता होने पर ही यह रोग दिखाई देता है एवं उग्ररूप से फैलता है,।
पौध अंगमारीरोगपौध अंगमारी रोग में बीजांकुरों के बीज पत्रों पर लाल भूरेरंग के सिकुड़े हुए धब्बे दिखाई देते हैं एवं स्तम्भ मूल संधि क्षेत्र लाल भूरे रंग का हो जाता है। रोगग्रस्त पौधे की मूसला जड़ोंको छोड़कर मूल तन्तु सड़ जाते हैं। खेत में उचित नमी रहते हुए भी पौधों का मुरझा कर सूखनाइस बीकारी का मुख्य लक्षण है।
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न्यू विल्ट (नया उकठा)

न्यू विल्ट से ग्रसित पौधपौधे में लक्षण उकठा (विल्ट) रोग की तरह दिखाई देते हैं पौधे के सूखने की गति तेज होती है। अचानक पूरा पौधा मुरझाकर सूख जाता है । एक ही स्थान पर दो पौधों में से एक पौधों का सूखना एवं दूसरा स्वस्थ होना इस रोग का मुख्य लक्षण है। इस रोग का प्रमुख कारण वातावरणीय तापमान में अचानक परिवर्तन, मृदा में नमी का असन्तुलन तथा पोशक तत्वों की असंतुलित मात्रा के कारण होता है।
नया उकठा रोग के नियंत्रण के लिए यूरिया का 1.5 प्रतिशत घोल (100 लीटर पानी में 1500 ग्राम यूरिया) 1.5 से 2 लीटर घोल प्रति पौधा के हिसाब से पौधों की जड़ के पास रोग दिखने पर एवं 15 दिन के बाद डालें।
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न्यू विल्ट से ग्रसित पौधा :

  • कपास की जैविक खेती करने से कपास में रसायनो का प्रभाव नहीं रहता है। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक
  • मिट्टी व पर्यावरण शुद्ध रहेगा,
  • एक्सपोर्ट क्वालिटी का होने के कारण बाजार भाव अच्छा (लगभग डेढ गुना )मिलेगा।
  • जैविक खेती करने के लिए निम्न किस्मों का उपयोग कर सकते है।
  • एनएच 651 (2003), सुरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992) ,
  • ी.सी.एच. 32 , एच-8 , जी कॉट 10 , जेके.-4, जेके.-5 जवाहर ताप्ती,
  • बीजोपचार हेतु एजोस्पीरिलियम/ एजेटोबेक्टर , पी.एस.बी., ट्राइकोडर्मा माईकोराइजा उपयोग करे।
  • ोशक तत्व प्रबन्धन हेतु जैविक खादों / हरी खाद का प्रयोग करे।
  • डोरा कुल्पा चलाकर खरपतवार नियंत्राण करे।
  • कीट नियंत्रण हेतु नीम की खली को भूमि में उपयोग करे, नीम का तेल का छिड़काव करें , चने की इल्ली नियंत्रण हेतु एचएनपीवी एवं बीटी लिक्विड फामूलेशन का प्रयोग करे।

उपज

देशी/उन्नत जातियों की चुनाई प्रायः नवम्बर से जनवरी-फरवरी तक, संकर जातियों की अक्टूबर-नवम्बर से दिसम्बर-जनवरी तक तथा बी.टी. किस्मों की चुनाई अक्टूबर से दिसम्बर तक की जाती है। कहीं-कहीं बी.टी. किस्मों की चुनाई जनवरी-फरवरी तक भी होती है।

देशी/उन्नत किस्मों से 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, संकर किस्मों से 13-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथी बी.टी. किस्मों से 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज प्राप्त होती है।

कपास की चुनाई के समय रखन वाली सावधानियाँ

  • कपास की चुनाई प्रायः ओस सूखन के बाद ही करनी चाहिए।
  • अविकसित, अधखिले या गीले घेटों की चुनाई नहीं करनी चाहिए ।
  • ुनाई करते समय कपास के साथ सूखी पत्तियाँ, डण्ठल, मिट्टी इत्यादि नहीं आना चाहिए।
  • चुनाई पश्चात् कपास को धूप में सुखा लेना चाहिए क्योंकि अधिक नमी से कपास में रूई तथा बीज दोनों की गुणवत्ता में कमी आती है । कपास को सूखाकर ही भंडारित करें क्योंकि नमी होने पर कपास पीला पड़ जायेगा व फफूंद भी लग सकती हैं।

कपास

  • सामान्यतः उन्नत जातियों का 2.5 से 3.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन/डिलिन्टेड) तथा संकर एवं बीटी जातियों का 1.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन) प्रति हेक्टेयर की बुवाई के लिए उपयुक्त होता हैं।
  • उन्नत जातियों में चैफुली 45-60X45-60 सेमी. पर लगायी जाती हैं (भारी भूमि में 60*60, मध्य भूमि में 60*45, एवं हल्की भूमि में ) संकर एवं बीटी जातियों में कतार से कतार एवं पौधे से पौधे के बीच की दूरी क्रमशः 90 से 120 सेमी. एवं 60 से 90 सेमी रखी जाती हैं
  • उर्वरकों को बुआई के समय देने पर व जड़ क्षेत्र में होने पर ही सबसे अधिक उपयोग-दक्षता प्राप्त होती है। अतः आधार खाद को बुआई के समय ही व बुआई की गहराई पर प्रदाय करना चाहिए।
  • जिले की मिटटी में ज़िंक एवं सल्फर की कमी पाई गई है। अतः आखरी बखरनी के बाद जिंक सल्फेट 25 किग्रा./हेक्टेयर डालना चाहिए। या मृदा परीक्षण के परिणामों के आधार पर सुक्ष्म तत्वों का उपयोग करना चाहिए।
  • सिंचाई हेतु टपक सिंचाई पद्धति अपनाकर कपास में अच्छा परिणाम मिलता है।
  • न्यू विल्ट रोग की रोकथाम हेतु उचित जल निकासी के साथ यूरिया का 1.5 प्रतिशत घोल , 1 लीटर द्ध का पौधों के पास भूमि में डालना
  • कपास की जैविक खेती करने से कपास में रसायनो का प्रभाव नहीं रहता है। मिट्टी व पर्यावरण शुद्ध रहेगा, एक्सपोर्ट क्वालिटी का होने के कारण बाजार भाव अच्छा (लगभग डेढ गुना )मिलेगा। जैविक खेती करने के लिए निम्न किस्मों का उपयोग कर सकते है।एनएच 651 (2003), सुरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992) , डी.सी.एच. 32 , एच-8 , जी कॉट 10 , जेके.-4, जेके.-5 जवाहर ताप्ती,
  • सघन खेती: कपास की सघन खेती में कतार से कतार 45 सेमी एवं पौधे से पौधे 15 सेमी पर लगाये जाते है, बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जाती है। इससे 25 से 50 प्रतिशत की उपज में वृद्धि होती है। इस हेतु उपयुक्त किस्में निम्न है:- एनएच 651 (2003), सुरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992) , एनएचएच 48 बीटी (2023) जवाहर ताप्ती, जेके 4 , जेके 5 आदि।

कपास की खेती में अतिरिक्त लाभ के लिए सहफसली खेती

किसान भाई कपास की फसल के साथ सह फसली खेती करके अतिरिक्त लाभ अर्जित कर सकते हैं। कपास एक लंबी अवधि वाली फसल है और प्रारंभिक अवस्था में इसके पौधों में बढ़वार की धीमी गति से होती है। इसके अलावा कपास की  पंक्तियों के मध्य खाली स्थान भी अधिक होता है। कपास की दो पंक्तियों के मध्य मूंग,उड़द, मूंगफली, सोयाबीन आदि फसलों की बुवाई कर अतिरिक्त मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।  

सहफसली खेती से कपास में खरपतवार, कीट रोग का प्रकोप भी कम होता है।  कपास के साथ दलहनी फसलों की सह फसली खेती भूमि की उर्वरा शक्ति में इजाफा करने और नमीं सरंक्षण में सहायक होती है। Advanced Production Technology of Cotton, कपास की उन्नत उत्पादन तकनीक

कपास की खेती सबसे ज्यादा कहां होती है

कपास एक नकदी फसल है। भारत विश्व में नंबर वन कपास उत्पादक देश बन गया है। 360 लाख गांठ कपास उत्पादन के साथ भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। भारत में वैश्विक उत्पादन का 25 प्रतिशत हिस्सा पैदा होता है। इससे पहले चीन में सबसे ज्यादा कपास की खेती होती थी। दुनिया का 38 फीसदी कपास उत्पादक क्षेत्र भारत में ही है। भारत की लगभग 9.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जाती है।

भारत में प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात,  महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उड़ीसा आदि हैं।

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рдЖрдЬ рдХреЗ рдЬреЛрдзрдкреБрд░ рдордВрдбреА рдХреЗ рднрд╛рд╡ 10 рдЬреВрди 2023 тШШя╕П Amazing Latest Jodhpur Mandi Ke Bhav 10-06-23 рдХрд╛ рдореБрдВрдЧ, рдореЛрда, рдЬреАрд░рд╛, рдЧреНрд╡рд╛рд░, рд╕реЛрдпрд╛рдмреАрди, рд░рд╛рдпрдбрд╛, рдкреАрд▓реА рд╕рд░рд╕реЛрдВ рдФрд░ рд╕реМрдВрдл рдЖрджрд┐ рдХрд╛ рднрд╛рд╡ рд╡рд┐рд╕реНрддрд╛рд░ рд╕реЗ рджреЗрдЦреЗ.

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рдЖрдЬ рдХреЗ рдбреЗрдЧрд╛рдирд╛ рдордВрдбреА рдХреЗ рднрд╛рд╡ 10 рдЬреВрди 2023 тШШя╕П Amazing Latest Degana Mandi Ke Bhav 10-06-23 рдХрд╛ рдореБрдВрдЧ, рдореЛрда, рдЬреАрд░рд╛, рдЧреНрд╡рд╛рд░, рд╕реЛрдпрд╛рдмреАрди, рд░рд╛рдпрдбрд╛, рдкреАрд▓реА рд╕рд░рд╕реЛрдВ рдФрд░ рд╕реМрдВрдл рдЖрджрд┐ рдХрд╛ рднрд╛рд╡ рд╡рд┐рд╕реНрддрд╛рд░ рд╕реЗ рджреЗрдЦреЗ

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рдЖрдЬ рдХреЗ рдиреЛрд╣рд░ рдордВрдбреА рдХреЗ рднрд╛рд╡ 10 рдЬреВрди 2023 тШШя╕П Amazing Latest Nohar Mandi Ke Bhav 10-06-23 рдХрд╛ рдореБрдВрдЧ, рдореЛрда, рдЬреАрд░рд╛, рдЧреНрд╡рд╛рд░, рд╕реЛрдпрд╛рдмреАрди, рд░рд╛рдпрдбрд╛, рдкреАрд▓реА рд╕рд░рд╕реЛрдВ рдФрд░ рд╕реМрдВрдл рдЖрджрд┐ рдХрд╛ рднрд╛рд╡ рд╡рд┐рд╕реНрддрд╛рд░ рд╕реЗ рджреЗрдЦреЗ.

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